ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे

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शनिवार, 5 नवंबर 2011

तुलसी विवाह: मुहूर्त, सामग्री और पूजन विधि


तुलसी विवाह: मुहूर्त, सामग्री और पूजन विधि

 

भगवान विष्णु के स्वरुप शालिग्राम और माता तुलसी के मिलन का पर्व तुलसी विवाह हिन्दू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है. देवप्रबोधिनी एकादशी के दिन मनाए जानेवाले इस मांगलिक प्रसंग के सुअवसर पर सनातन धर्मावलम्बी घर की साफ़-सफाई करते हैं और रंगोली सजाते हैं. शाम के समय तुलसी चौरा के पास गन्ने का भव्य मंडप बनाकर उसमें साक्षात् नारायण स्वरुप शालिग्राम की मूर्ति रखते हैं और फिर विधि-विधानपूर्वक उनके विवाह को संपन्न कराते हैं. पौराणिक कथानुसार एक बार सृष्टि के कल्याण के उद्येश्य से भगवान विष्णु ने राजा जालंधर की पत्नी वृंदा के सतीत्व को भंग कर दिया. इस पर सती वृंदा ने उन्हें श्राप दे दिया और भगवान विष्णु पत्थर बन गए, जिस कारणवश प्रभु को शालिग्राम भी कहा जाता है और भक्तगण इस रूप में भी उनकी पूजा करते हैं. इसी श्राप से मुक्ति पाने के लिए भगवान विष्णु को अपने शालिग्राम स्वरुप में तुलसी से विवाह करना पड़ा था और उसी समय से तुलसी विवाह का यह अनूठा रस्म प्रत्येक साल मनाया जाता है.
तुलसी विवाह के सुअवसर पर व्रत रखने का बड़ा ही महत्व है. आस्थावान भक्तों के अनुसार इस दिन श्रद्धा-भक्ति और विधिपूर्वक व्रत करने से व्रती के इस जन्म के साथ-साथ पूर्वजन्म के भी सारे पाप मिट जाते हैं और उसे पुण्य की प्राप्ति होती है.

 तुलसी की पूजा से घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है, धन की कोई कमी नहीं होती। इसके पीछे धार्मिक कारण है। तुलसी में हमारे सभी पापों का नाश करने की शक्ति होती है, इसकी पूजा से आत्म शांति प्राप्त होती है। तुलसी को लक्ष्मी का ही स्वरूप माना गया है। विधि-विधान से इसकी पूजा करने से महालक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और इनकी कृपा स्वरूप हमारे घर पर कभी धन की कमी नहीं होती।

कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की एकादशी को तुलसी विवाह का उत्सव मनाया जाता है। इस एकादशी पर तुलसी विवाह का विधिवत पूजन करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

तुलसी पूजन की सामान्य सामग्री

तुलसी पूजा के लिए गन्ना (ईख), विवाह मंडप की सामग्री, सुहागन स्त्री की संपूर्ण सामग्री, घी, दीपक, धूप, सिंदूर, चंदन, नैवद्य और पुष्प आदि।

तुलसी पूजन का श्रेष्ठ मुहूर्त: शाम 7.50 से 9.20 तक शुभ चौघडिय़ां में तुलसी पूजन करें।

तुलसी के आठ नाम

धर्मशास्त्रों के अनुसार तुलसी के आठ नाम बताए गए हैं- वृंदा, वृंदावनि, विश्व पूजिता, विश्व पावनी, पुष्पसारा, नन्दिनी, तुलसी और कृष्ण जीवनी।

तुलसी विवाह की पूजन विधि
1.तुलसी विवाह के लिए तुलसी के पौधे का गमले को गेरु आदि से सजाएं।

2. गमले के चारों ओर ईख (गन्ने) का मंडप बनाएं।

3.अब गमले के ऊपर ओढऩी या सुहाग की प्रतीक चुनरी ओढ़ाएं।

4.गमले को साड़ी में लपेटकर तुलसी को चूड़ी पहनाकर उनका श्रंगार करें।

5. श्री गणेश सहित सभी देवी-देवताओं का तथा श्री शालिग्रामजी का विधिवत पूजन करें।

6. पूजन के करते समय तुलसी मंत्र (तुलस्यै नम:) का जप करें।

7.इसके बाद एक नारियल दक्षिणा के साथ टीका के रूप में रखें।

8. भगवान शालिग्राम की मूर्ति का सिंहासन हाथ में लेकर तुलसीजी की सात परिक्रमा कराएं।

9. आरती के पश्चात विवाहोत्सव पूर्ण किया जाता है।

विवाह में जो सभी रीति-रिवाज होते हैं उसी तरह तुलसी विवाह के सभी कार्य किए जाते हैं। विवाह से संबंधित मंगल गीत भी गाए जाते हैं।

तुलसीनामाष्टक का जप करें

अश्वमेघ यज्ञ से प्राप्त पुण्य कई जन्मों तक फल देने वाला होता है। यही पुण्य तुलसी नामाष्टक के नियमित पाठ से मिलता है। तुलसी नामाष्टक का पाठ पूरे विधि-विधान से किया जाना चाहिए।

तुलसी नामाष्टक

वृन्दा वृन्दावनी विश्वपूजिता विश्वपावनी।

पुष्पसारा नन्दनीच तुलसी कृष्ण जीवनी।।

एतभामांष्टक चैव स्त्रोतं नामर्थं संयुतम।

य: पठेत तां च सम्पूज् सौऽश्रमेघ फलंलमेता।।


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