ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे

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गुरुवार, 10 नवंबर 2011

बालिके त्वाम् प्रणमामि

 बालिके त्वाम् प्रणमामि
 उम्र पौने चार साल और क्लिष्ट व्याकरण वाली संस्कृत भाषा का धाराप्रवाह से ऎसा प्रयोग, जो अच्छे-अच्छों के पसीने छुड़ा दे। बचपन में ऎसा करिश्मा प्रतापनगर निवासी नंदिनी पांडेय ने कर दिखाया है। वह न केवल मातृभाषा  के रूप से सहज तौर पर संस्कृत बोलती है, बल्कि मां से खाना मांगने, नहाने के लिए कहने और यहां तक कि रोते हुए भी संस्कृत शब्दों का ही प्रयोग करती है।

पूरे देश में घूम कर संस्कृत का प्रचार-प्रसार कर चुके नंदिनी के पिता रामानुज पांडेय राजकीय संस्कृत वरिष्ठ उपाध्याय उ.प्रा. विद्यालय कालसिया, सामोद में कार्यरत हैं। नंदिनी की मां डॉ. रचना तिवारी संस्कृत की ही अध्यापिका हैं। नंदिनी को हाल ही सर्वब्राह्मण महासभा की ओर से दिल्ली में हुए राष्ट्रीय सर्वब्राह्मण सम्मेलन में "ब्राह्मण शिरोमणि अवार्ड 2010" से सम्मानित किया गया।


इससे पूर्व भी नंदिनी को ऋषिकेश में "लघु संस्कृत शिशु" के सम्मान से नवाजा जा चुका है। ऋषिकेश में पूरे देश के संस्कृत विद्वानों का एक सम्मेलन "संस्कृत गिरी सम्मेलन" आयोजित किया गया था। उस सम्मेलन में भाग लेने वालों में नंदिनी सबसे कम उम्र की प्रतिभागी थी जो संस्कृत में बात करना जानती थी। इसी प्रकार राजस्थान पत्रिका समूह की ओर से भी उसे "संस्कृत शिशु सम्मान" प्रदान किया जा चुका है।

हिंदी तो क्रेच में सीखी

नंदिनी की मां डॉ. रचना तिवारी के मुताबिक नंदिनी बोलना सीखी है तबसे ही संस्कृत में बात कर रही है। जब उसे क्रेच में डाला था तब उसे हिंदी बोलना नहीं आता था और क्रेच वाले शिक्षकों को उसकी संस्कृत समझ नहीं आती थी लेकिन कुछ ही दिनों में नंदिनी ने हिंदी बोलना भी तेजी से सीख लिया। अब वह हिंदी बोलने वालों के साथ हिंदी में बात करती है और संस्कृत बोलने वालों के साथ संस्कृत में।

गर्भ में ही मिला ज्ञान!

रामानुज बताते हैं कि संस्कृत के प्रचार के सिलसिले में उनका कर्नाटक के एक गांव मुत्तुर जाना हुआ, वहां उन्होंने देखा कि छोटे- छोटे बच्चे संस्कृत में बात करते हैं। पूछताछ करने पर पता चला कि यदि गर्भधारण के समय से ही माता-पिता संस्कृत का प्रयोग करें तो बच्चा भी उसी भाषा में बात करता है। रामानुज के मुताबिक उन्होंने भी इसी नीति को अपनाया।

दादी को भी सिखा दी

नंदिनी के पिता रामानुज के मुताबिक नंदिनी कुछ दिन अपनी दादी के साथ रही। उस दौरान नंदिनी ने दादी मां को भी संस्कृत बोलना सिखा दिया।

"अम्बा भोजन ददातु"

रचना तिवारी के मुताबिक नंदिनी खाना मांगने के लिए "अम्बा भोजन ददातु" व बाथरूम में नहाने जाने के लिए "स्नानगृह स्नान करोमि" आदि शब्दों का प्रयोग करती है। आम बच्चे रोते समय मम्मी, पापा बोलते हैं वहीं नंदिनी अम्बा, तात बोलती है। नंदिनी सहजता से योग भी कर लेती है।(साभार नव भारत टाइम्स )
यह http://www.dailynewsnetwork.in/news/ से  लिया गया है मुझे अच्छा लगा जो आप लोगो को प्रस्तुत कर दिया

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