क्या है सोमरस (शोधपूर्ण आलेख)...?????
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संकेत . — मित्रं हुव....... साधन्ता ! (ऋग्वेद 1/2/7)
अर्थ- घृत यानी घी के समान पुष्ट, प्राणप्रद प्रकाशक हितैषी पवित्र सूर्य देवता और समर्थ वरुण देवता का आवाहन करता हूँ! वे हमारी बुद्धि को उर्वरा बनाएं!
ऊपर दिये वैदिक मन्त्र में सूर्य को घी के समान पोष्टिक, प्राणदायक और पवित्र कहा गया है। अब जरा दादी नानी के नुस्खे याद कीजिये। हमारी कमजोर सेहत को देखते हुए आप के खाने में ढेर सारा घी डालते हुए वो कहा करती थी, बेटा खा ले, मोटा हो जाएगा।
घी की शक्ति का प्रमाण मिल जाने के बाद मन्त्र के आगे के भाग पर ध्यान दें तो पता चलता है कि घी के समान गुण वाला सूर्य को कहा गया है। मतलब यह है कि सूर्य कि ऊर्जा हमारे लिए उतनी ही लाभदायक है जितनी कि घी।
अब विज्ञान की बातें याद करें तो वह भी यही कहता है कि सूर्य कि किरणों में अनके लाभदायक विटामिन्स होते हैं जो स्वास्थ्य के लिए अति लाभदायक होते हैं। वरुण यानी पानी के लिए समर्थ शब्द का प्रयोग किया गया है। क्योंकि पानी में भी कई औषधीय गुण होते हैं।
बहुत दिनों के पहले हमने सोमरस पर एक लेख लिखा था जिसमें कई वैदेशिक विद्वानों के मतों का उल्लेख तथा यथाशक्य उनका दुराग्रह खण्डन किया गया था । किन्तु पर्याप्त अध्ययन के अभाव में लेख पूर्णता को प्राप्त नहीं हुआ । किन्तु अब जब कि ईश्वर की कृपा से शोध के सन्दर्भ में वेद भगवान के अध्ययन का सौभाग्य प्राप्त हुआ तो कई बातें स्पष्ट होती जा रही हैं ।
इसी क्रम में सोम के विषय में प्रचलित कुछ अपवादों का निराकरण निम्नोक्त मन्त्रों के द्वारा करने का प्रयास कर रहा हूँ ।
मन्त्र: – सुतपात्रे ………………………………………….. दध्याशिर: ।। (ऋग्वेद-1/5/5)
मन्त्रार्थ: – यह निचोडा हुआ शुद्ध दधिमिश्रित सोमरस , सोमपान की प्रबल इच्छा रखने वाले इन्द्र देव को प्राप्त हो ।।
मन्त्र: – तीव्रा: सोमास…………………………………….. तान्पिब ।। (ऋग्वेद-1/23/1)
मन्त्रार्थ: – हे वायुदव यह निचोडा हुआ सोमरस तीखा होने के कारण दुग्ध में मिश्रित करके तैयार किया गया है । आइये और इसका पान कीजिये ।।
मन्त्र: – शतं वा य: शुचीनां सहस्रं वा समाशिराम् । एदु निम्नं न रीयते ।। (ऋग्वेद-1/30/2)
मन्त्रार्थ: - नीचे की ओर बहते हुए जल के समान प्रवाहित होते सैकडो घडे सोमरस में मिले हुए हजारों घडे दुग्ध मिल करके इन्द्र देव को प्राप्त हों ।।
मन्त्र: - सुतपात्रे सुता इमे शुचयो यन्ति वीतये । सोमासो दध्याशिर: ।। (ऋग्वेद-1/5/5)
मन्त्रार्थ: - एष: सुत: (निचोडा हुआ) शुद्धीकृत:, दधिमिश्रित: पवित्रं सोमरस:, सोमपानस्य इच्छुक: इन्द्रदेवाय गच्छेत् ।।
मन्त्र: - तीव्रा: सोमास आ गह्याशीर्वन्त: सुता इमे । वायो तान्प्रस्थितान्पिब ।। (ऋग्वेद-1/23/1)
मन्त्रार्थ: - भो वायुदेव: । अभिषुत: सोमरस: तिक्तं सति दुग्धस्य मिश्रणं कृत्वा सज्जीकृतम् अस्ति । आगच्छ अस्य सोमरसस्य पानं कुरू ।।
मन्त्र: - शतं वा य: शुचीनां सहस्रं वा समाशिराम् । एदु निम्नं न रीयते ।। (ऋग्वेद-1/30/2)
मन्त्रार्थ: - अध: गच्छन् जलसदृशं प्रवहमानं शताधिकघटसोमरस:, सहस्राधिकघटदुग्धेषु मिश्रितं भूत्वा इन्द्रं प्रति गच्छति ।।
उपर्युक्त मन्त्रों में सोम में दधि और दुग्ध मिश्रण की बात कही गयी है । आजतक मैने किसी भी व्यक्ति को शराब में दूध या दही मिलाते हुए नहीं देखा है अत: इस बात का तो सीधा निराकरण हो जाता है कि सोम शराब है । कुछ विद्वानों ने सोम को एक विशेष प्रकार का कुकुरमुत्ता माना है । किन्तु क्या आपने कुकुरमुत्ते की सब्जी में दूध या दही मिलाये जाते देखा है । मैने तो नहीं देखा । खैर कदाचित् ऐसा कहीं होता भी तो कुकुरमुत्ते की सब्जी तो सुनी थी पर किसी ने कुकुरमुत्ते को निचोड कर पिया हो ऐसा तो कभी नहीं सुना है और उपर साफ वर्णित है कि सोम को ताजा निचोडा जाता है ।
ऋग्वेद में आगे सोम का और भी वर्णन है , एक जगह पर सोम की इतनी उपलब्धता और प्रचलन दिखाया गया है कि मनुष्यों के साथ गायों तक को सोमरस भरपेट खिलाये और पिलाये जाने की बात कही गई है । कुकुरमुत्ता तो पशु खाते ही नहीं फिर तो समस्या स्वयं ही और भी निराकृत हो जाती है ।
विचार करने पर सोम आज के चाय की तरह ही कोई सामान्य प्रचलित पेय पदार्थ लगता है, जिसे सामान्य जन भी प्रतिदिन पान किया करते थे
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ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे
एक वैज्ञानिक तथ्य बन चुका है कि प्रात:कालीन सूर्य किरणें और घी हमारे स्वास्थ्य के लिये बेहद लाभदायक होते हैं। आधुनिक विज्ञान भी घी और सूर्य की किरणों को उर्जा का स्रोत कहता है। और आज सभी लोग इस बात को बगैर संकोच के स्वीकार करते हैं। किन्तु यही बात हमारे ऋषि-मुनियों ने हजारों साल पहले ही बता दी थी, जबकि उस समय सूर्य किरणों और घी का वैज्ञानिक विश्लेषण करने के लिये आज की तरह की वैज्ञानिक प्रयोगशालाएं भी नहीं थीं। हजारों साल पहले रचे गए ऋग्वैद जो कि निर्विवादित रूप से दुनिया की सबसे पुरानी किताब है, में सूर्य किरणों और घी को सेहत के लिये बेहद पोष्टिक बताया गया है जो कि ऋग्वेद के इस सूक्त से स्पष्ट हो जाता है-
संकेत . — मित्रं हुव....... साधन्ता ! (ऋग्वेद 1/2/7)
अर्थ- घृत यानी घी के समान पुष्ट, प्राणप्रद प्रकाशक हितैषी पवित्र सूर्य देवता और समर्थ वरुण देवता का आवाहन करता हूँ! वे हमारी बुद्धि को उर्वरा बनाएं!
ऊपर दिये वैदिक मन्त्र में सूर्य को घी के समान पोष्टिक, प्राणदायक और पवित्र कहा गया है। अब जरा दादी नानी के नुस्खे याद कीजिये। हमारी कमजोर सेहत को देखते हुए आप के खाने में ढेर सारा घी डालते हुए वो कहा करती थी, बेटा खा ले, मोटा हो जाएगा।
घी की शक्ति का प्रमाण मिल जाने के बाद मन्त्र के आगे के भाग पर ध्यान दें तो पता चलता है कि घी के समान गुण वाला सूर्य को कहा गया है। मतलब यह है कि सूर्य कि ऊर्जा हमारे लिए उतनी ही लाभदायक है जितनी कि घी।
अब विज्ञान की बातें याद करें तो वह भी यही कहता है कि सूर्य कि किरणों में अनके लाभदायक विटामिन्स होते हैं जो स्वास्थ्य के लिए अति लाभदायक होते हैं। वरुण यानी पानी के लिए समर्थ शब्द का प्रयोग किया गया है। क्योंकि पानी में भी कई औषधीय गुण होते हैं।
बहुत दिनों के पहले हमने सोमरस पर एक लेख लिखा था जिसमें कई वैदेशिक विद्वानों के मतों का उल्लेख तथा यथाशक्य उनका दुराग्रह खण्डन किया गया था । किन्तु पर्याप्त अध्ययन के अभाव में लेख पूर्णता को प्राप्त नहीं हुआ । किन्तु अब जब कि ईश्वर की कृपा से शोध के सन्दर्भ में वेद भगवान के अध्ययन का सौभाग्य प्राप्त हुआ तो कई बातें स्पष्ट होती जा रही हैं ।
इसी क्रम में सोम के विषय में प्रचलित कुछ अपवादों का निराकरण निम्नोक्त मन्त्रों के द्वारा करने का प्रयास कर रहा हूँ ।
मन्त्र: – सुतपात्रे ………………………………………….. दध्याशिर: ।। (ऋग्वेद-1/5/5)
मन्त्रार्थ: – यह निचोडा हुआ शुद्ध दधिमिश्रित सोमरस , सोमपान की प्रबल इच्छा रखने वाले इन्द्र देव को प्राप्त हो ।।
मन्त्र: – तीव्रा: सोमास…………………………………….. तान्पिब ।। (ऋग्वेद-1/23/1)
मन्त्रार्थ: – हे वायुदव यह निचोडा हुआ सोमरस तीखा होने के कारण दुग्ध में मिश्रित करके तैयार किया गया है । आइये और इसका पान कीजिये ।।
मन्त्र: – शतं वा य: शुचीनां सहस्रं वा समाशिराम् । एदु निम्नं न रीयते ।। (ऋग्वेद-1/30/2)
मन्त्रार्थ: - नीचे की ओर बहते हुए जल के समान प्रवाहित होते सैकडो घडे सोमरस में मिले हुए हजारों घडे दुग्ध मिल करके इन्द्र देव को प्राप्त हों ।।
मन्त्र: - सुतपात्रे सुता इमे शुचयो यन्ति वीतये । सोमासो दध्याशिर: ।। (ऋग्वेद-1/5/5)
मन्त्रार्थ: - एष: सुत: (निचोडा हुआ) शुद्धीकृत:, दधिमिश्रित: पवित्रं सोमरस:, सोमपानस्य इच्छुक: इन्द्रदेवाय गच्छेत् ।।
मन्त्र: - तीव्रा: सोमास आ गह्याशीर्वन्त: सुता इमे । वायो तान्प्रस्थितान्पिब ।। (ऋग्वेद-1/23/1)
मन्त्रार्थ: - भो वायुदेव: । अभिषुत: सोमरस: तिक्तं सति दुग्धस्य मिश्रणं कृत्वा सज्जीकृतम् अस्ति । आगच्छ अस्य सोमरसस्य पानं कुरू ।।
मन्त्र: - शतं वा य: शुचीनां सहस्रं वा समाशिराम् । एदु निम्नं न रीयते ।। (ऋग्वेद-1/30/2)
मन्त्रार्थ: - अध: गच्छन् जलसदृशं प्रवहमानं शताधिकघटसोमरस:, सहस्राधिकघटदुग्धेषु मिश्रितं भूत्वा इन्द्रं प्रति गच्छति ।।
उपर्युक्त मन्त्रों में सोम में दधि और दुग्ध मिश्रण की बात कही गयी है । आजतक मैने किसी भी व्यक्ति को शराब में दूध या दही मिलाते हुए नहीं देखा है अत: इस बात का तो सीधा निराकरण हो जाता है कि सोम शराब है । कुछ विद्वानों ने सोम को एक विशेष प्रकार का कुकुरमुत्ता माना है । किन्तु क्या आपने कुकुरमुत्ते की सब्जी में दूध या दही मिलाये जाते देखा है । मैने तो नहीं देखा । खैर कदाचित् ऐसा कहीं होता भी तो कुकुरमुत्ते की सब्जी तो सुनी थी पर किसी ने कुकुरमुत्ते को निचोड कर पिया हो ऐसा तो कभी नहीं सुना है और उपर साफ वर्णित है कि सोम को ताजा निचोडा जाता है ।
ऋग्वेद में आगे सोम का और भी वर्णन है , एक जगह पर सोम की इतनी उपलब्धता और प्रचलन दिखाया गया है कि मनुष्यों के साथ गायों तक को सोमरस भरपेट खिलाये और पिलाये जाने की बात कही गई है । कुकुरमुत्ता तो पशु खाते ही नहीं फिर तो समस्या स्वयं ही और भी निराकृत हो जाती है ।
विचार करने पर सोम आज के चाय की तरह ही कोई सामान्य प्रचलित पेय पदार्थ लगता है, जिसे सामान्य जन भी प्रतिदिन पान किया करते थे
2 टिप्पणियां:
Bahut Achhi jankari....
मोनिका जी सहृदय धन्यवाद
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