*#हनुमानजी ने सूर्य को ग्रास बनाया यानी निगल लिया, क्या यह सत्य है ? आइए इस विषय पर आज चर्चा करें🙏🏼*
आज तक केवल एक ही वैज्ञानिक सूर्य तक पहुंच पाया...वे हैं अंजनी मां के पुत्र हनुमानजी महाराज अर्थात मारुति... हैं।
आध्यात्मिक तौर पर यह पौराणिक केवल सामान्य किसी बंदर का कथा-प्रसंग नहीं है। बल्कि सूर्य गायत्री हैं....उन्हें भजन वाले को वे *बिम्बा* फल के समान होकर उनमें अपना स्थान ग्रहण कर लेते हैं और तेजस्वी वर्चस्वी बना देते हैं।
*...लेकिन इससे छद्म प्रकाश से जीवित सत्ता को परेशानी होती है, सत्ता इंद्र है, वह अपना वर्चस्व टूटता देखती है तो वज्र प्रहार करती है...वज्र ऋषि सत्ता है, उसे कोई सहन नहीं कर सकता....ऋषि सत्ता इंद्र सत्ता के लिए सहज उपलब्ध होती है.....तब केवल वायु अर्थात प्राण का आयाम ही जीवन को सुरक्षित कर सकता है....यह वायु का वेग मां की चीत्कार पर ही रुकता है...मां कुंडलिनी है...वायु के रुकते ही सत्ता का अपराध सामने आ जाता है...तब ब्रह्म गायत्री मूर्च्छा विभेद करती है...उनसे साधन सिद्ध होता है और समस्त देव कवच हो जाते हैं....यह ब्राह्मण का शस्त्र है और यही शास्त्र.।*
उपरोक्त विषय हमने *आध्यात्मिक* संदर्भ में व्यक्त किया। अब उसे व्यावहारिक जीवन में देखा जाए तो हम *एलईडी* बल्व को ही *सूर्य* समझने की भूल कर बैठते हैं, जबकि *"सूर्य" गायत्री* है, *बिम्बाफल* ही *एलईडी बल्व* है।
-आचार्य पण्डित विनोद चौबे, संपादक- 'ज्योतिष का सूर्य' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका, शांतिनगर, भिलाई
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