ज्योतिष के नाम पर धोखा:
मित्रों, आज ज्योतिष शास्त्रज्ञ की कमी है, साथ ही कथित ज्योतिषीयों की बाढ़ है। सूर्यसिद्धांत और गोलाध्याय का दर्शन तक नहीं किया वे पंचांगकार बन बैठे हैं। परीणाम सामने है तिथीयों, उत्सवादिक पर्वों को लेकर जनमानस में द्विवीधा का माहौल होता है। यदि कोई सिद्धांत(गणित) भ्रमवश उन पंचांगकार महोदय से गलती हो भी जाती है तो वर्चस्व की लड़ाई में अपने दस-बीस चाटुकार साथियों को लेकर देश का सर्वोच्च ज्योतिष मठाधीश बनने की जूगत में लगकर अपने आपको ज्योतिष पुरोधा साबित करने का कठिन यत्न करते है। यहां तक की 10 -20 हजार रूपयों में खरीदे गये गोल्ड मेडल भी उनको गोल्डमेडलिस्ट के श्रेणी में तो आ ही जाते हैं। ऐसे में लोगों का ज्योतिष के प्रति अरूची होना लाज़मी है । मैं कल अपने ब्लाग में ज्योतिष के प्रमुख दो भाग होना बताया तो एक सज्जन को नागवार गुजरा । मै समझ गया कि अब इस संदर्भ में महाशय से बात करना अपना दीदा खोना जैसा है । मित्रों वेद के छः अंगो में से एक ज्योतिष को वेद का नेत्र कहा गया है (ज्योतिषां चत्क्षुः) और ज्योतिष के दो भाग अर्थात दो नेत्र एक गणित और दुसरा फलित , इन दोनों भाग के कई प्रभाग हैं। जैसे इसके क्रमिक विकास के क्रम को देखा जाय तो स्कंध त्रय होरा, सिद्धांत और तिसरा है संहिता, यदि और आगे का कर्म देखें तो यह स्कंधपंच हो होरा, सिद्धांत, संहिता के अलावा प्रश्न और शकुन आदि अंग हैं,जो आगामी कई ऋषियों ने अपने-अपने तरीके से शोधकर एक आमजन मानस को एक महत्त्वपूर्ण शास्त्र ज्योतिष के रूपमें लोगों को समर्पित किया।
मेरा अभिप्राय है की ज्योतिष का प्रभाव वैदिक काल से ही रहा है. वैदिक युग में मानव ने ज्योतिष सहित प्रत्येक ज्ञान को आम जन की भलाई के लिए ही प्रयोग किया.कुछ आसुरी प्रवृत्ति के लोगो ने इस ज्ञान का दुरुपयोग किया तो वे राक्षस कहलाये. स्वभावश सभी मनुष्य सुख-शान्ति एवं आनन्द प्राप्त करना चाहते हैं. इन सबकी प्राप्ति को सुलभ बनाने हेतु ही परमात्मा ने हमें ज्ञान के रूप में सर्वोत्तम उपहार दिया है. जीवन में तीन चीजें होती है : -
(1) साध्य : - मनुष्य जो इच्छा करता है या जीवन में जो भी प्राप्त करना चाहतै है. जहाँ पहुंचना चाहता है उसे साध्य कहते हैं.
(2) साधना : जिस माध्यम/तरीके से मनुष्य अपने साध्य की प्राप्ति करता है. वह साधना कहलाती है.
(3) साधन : - साधना में सहयोग/सहायता करने के लिए जिन-जिन वस्तुओं/उपकरणों की आवश्यकता पड़ती है. वे साधन के रूप में जाने जाते हैं.
साधन साधाना की पूर्णता के लिए होते हैं. अत: महत्ता साधना की होती है. साधन की नही, साधना की गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए कठोर तप(परिश्रम) करना पड़ता है. तप के द्वारा ही साधन में ऊर्जा दी जाती है. (चार्ज किया जाता है) तभी साधन सहायक के रूप में कार्य करने योग्य हो पाता है. वैदिक काल में एक तो साधन प्राकृतिक रूप से ऊर्जावान होते थे. दूसरे मनुष्य अपने तपबल की शक्ति से उन्हें जाग्रत कर देता था।
वैदिक काल की भांति ही वर्तमान युग में ज्योतिष की महत्ता बरकरार है. बल्कि यही कहा जाये कि आज के समय ज्योतिषअधिक प्रासंगिक है. तो अतिश्योक्ति नहीं होगी.संसार पर सदा से ही चतुर व्यक्तियों ने राज किया है चूंकि ज्योतिष आज बिकता है तो ऐसे अनाधिकृत व्यक्तियों (श्रद्धाविहीन) ने इसका व्यावसायिक दोहन शुरु कर दिया है. जिनका ज्योतिष शास्त्र में तनिक भी विश्वास नही. इस सन्दर्भ में यहां बहुत से उदाहरण दिये जा सकते हैं. परन्तु समयाभाव में ऐसा सम्भव नही इसलिए एकमात्र उदाहरण देकर ही हम इसे भली भांति स्पष्ट कर सकते हैं.
आजकल आप टीवी. के भिन्न-भिन्न चैनलों पर ज्योतिष सम्बन्धी सामग्री(साधनों) की बिक्री के बारे मे देख व सन सकते हैं कि इस विशे, यन्त्र या माला को खरीदने अथवा धारण करने से आपको विशेष लाभ होगा. तथा इस विशेष वस्तु को अपने पास रखने से आपको कष्टों से मुक्ति मिलेगी. जैसा कि मै पहले ही कह चुका हू कि साधन में शक्ति साधना के तप बल की होती है. मन्त्रों में शक्ति होती है. इस बात पर सन्देह करने का कोई कारण नही परन्तु यहां पर विचार करने योग्य प्रश्न यह है कि जो विद्वान किसी धातु के यन्त्र (ताम्बा इत्यादि) को सिद्ध करने का दावा करते हैं क्या वे तपस्वी, श्रद्धावान, ज्ञानी एवं आध्यात्मिक ऊर्जा से परिपूर्ण है या फिर केवल अर्थ लाभ के लिए सरल एवं पीडि़त व्यक्तियों की भावनाओं का शोषण करते हैं. किसी विषय का ज्ञान होना एक अलग बात है और उस ज्ञान को सत्यता की कसौटी पर परखना दूसरी बात है. साधना में ज्ञान के साथ-साथ क्रिया पर जोर दिया जाता है. साधना में एक और बात तो महत्वपूर्ण होती है. वह है तन,मन एवं बुद्धि की पवित्रता जोकि स्वयं को कष्ट देकर हो (तप द्वारा) प्राप्त की जा सकती है.
यहां एक अन्य प्रश्न भी सामने आता है कि क्या ? इन सब परिस्थितियों के लिए पाखण्डी या ठग ज्योतिषी के साथ-साथ हम सब बराबर के जिम्मेदार नही है. कोई भी मनुष्य दुखो का सामना अपने कर्मो या लापरवाही के कारण करता है. कर्तव्यपरायणता एवं न्यायोचित व्यवहार करने तथा दुर्गुणों से दूर रहने पर अधिकतर समस्याओं से बचा जा सकता है.यदि अनजाने में किसी से कोई पाप हो जाता है तो उसका प्रायश्चित भी उसी को करना पड़ेगा. भ्रष्टाचार की सम्भावना मनुष्य द्वारा बनाए गए प्रशासन में ही हो सकती है. परमात्मा के विधान में नही कि कोई व्यक्ति मात्र धन खर्च करके (अहांकारपूर्ण) अपने पापों से मुक्ति पा सकता है. दान देने से लाभ होता है. यह शास्त्रोक्त भी है व सत्य भी है. परन्तु यदि कोई व्यक्ति अहंकार से युक्त होकर धन के बल पर बिना ग्लानि के महसूस किये यदि यह समझता है कि वह अपने पापों से मुक्ति पा लेगा तो मुंगेरीलाल की भांति स्वप्न ही देख रहा होगा।
उपरोक्त प्रश्नों का सही समाधान यही है कि कष्टों के आने पर व्यक्ति को किसी योग्य ज्योतिषी के पास जाकर सही समाधान के बारे में जानना चाहिये तथा स्वयं कष्ट सहन करके शास्त्रोक्त विधि से विनम्रता पूर्वक साधना करनी चाहिये तभी मुसीबतों से छुटकारा संभव है. क्योंकि स्वयं के मरने पर ही व्यक्ति स्वर्गवासी कहलाता है. अत: हमें टी.वी. चैनलों पर दिखलाये जाने वाले झूठ व भ्रामक प्रचार से बचना चाहिये अन्यथा कुछ व्यवसायी एवं धोखेबाज ज्योतिषियों के कारण ज्योतिष विधा पर ऑच आ सकती है. तथा लोगों का विश्वास इस पर से उठ सकता है.
नोटः हमारे किसी भी लेख को कापी करना दण्डनीय अपराध है ऐसा करने पर उचित कार्यवायी करने को मजबूर हो जाऊंगा। समाचार पत्र पत्रिकाएं हमसे अनुमती लेकर प्रकाशित कर सकते हैं...!.ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे,09827198828,Bhilai,
मित्रों, आज ज्योतिष शास्त्रज्ञ की कमी है, साथ ही कथित ज्योतिषीयों की बाढ़ है। सूर्यसिद्धांत और गोलाध्याय का दर्शन तक नहीं किया वे पंचांगकार बन बैठे हैं। परीणाम सामने है तिथीयों, उत्सवादिक पर्वों को लेकर जनमानस में द्विवीधा का माहौल होता है। यदि कोई सिद्धांत(गणित) भ्रमवश उन पंचांगकार महोदय से गलती हो भी जाती है तो वर्चस्व की लड़ाई में अपने दस-बीस चाटुकार साथियों को लेकर देश का सर्वोच्च ज्योतिष मठाधीश बनने की जूगत में लगकर अपने आपको ज्योतिष पुरोधा साबित करने का कठिन यत्न करते है। यहां तक की 10 -20 हजार रूपयों में खरीदे गये गोल्ड मेडल भी उनको गोल्डमेडलिस्ट के श्रेणी में तो आ ही जाते हैं। ऐसे में लोगों का ज्योतिष के प्रति अरूची होना लाज़मी है । मैं कल अपने ब्लाग में ज्योतिष के प्रमुख दो भाग होना बताया तो एक सज्जन को नागवार गुजरा । मै समझ गया कि अब इस संदर्भ में महाशय से बात करना अपना दीदा खोना जैसा है । मित्रों वेद के छः अंगो में से एक ज्योतिष को वेद का नेत्र कहा गया है (ज्योतिषां चत्क्षुः) और ज्योतिष के दो भाग अर्थात दो नेत्र एक गणित और दुसरा फलित , इन दोनों भाग के कई प्रभाग हैं। जैसे इसके क्रमिक विकास के क्रम को देखा जाय तो स्कंध त्रय होरा, सिद्धांत और तिसरा है संहिता, यदि और आगे का कर्म देखें तो यह स्कंधपंच हो होरा, सिद्धांत, संहिता के अलावा प्रश्न और शकुन आदि अंग हैं,जो आगामी कई ऋषियों ने अपने-अपने तरीके से शोधकर एक आमजन मानस को एक महत्त्वपूर्ण शास्त्र ज्योतिष के रूपमें लोगों को समर्पित किया।
मेरा अभिप्राय है की ज्योतिष का प्रभाव वैदिक काल से ही रहा है. वैदिक युग में मानव ने ज्योतिष सहित प्रत्येक ज्ञान को आम जन की भलाई के लिए ही प्रयोग किया.कुछ आसुरी प्रवृत्ति के लोगो ने इस ज्ञान का दुरुपयोग किया तो वे राक्षस कहलाये. स्वभावश सभी मनुष्य सुख-शान्ति एवं आनन्द प्राप्त करना चाहते हैं. इन सबकी प्राप्ति को सुलभ बनाने हेतु ही परमात्मा ने हमें ज्ञान के रूप में सर्वोत्तम उपहार दिया है. जीवन में तीन चीजें होती है : -
(1) साध्य : - मनुष्य जो इच्छा करता है या जीवन में जो भी प्राप्त करना चाहतै है. जहाँ पहुंचना चाहता है उसे साध्य कहते हैं.
(2) साधना : जिस माध्यम/तरीके से मनुष्य अपने साध्य की प्राप्ति करता है. वह साधना कहलाती है.
(3) साधन : - साधना में सहयोग/सहायता करने के लिए जिन-जिन वस्तुओं/उपकरणों की आवश्यकता पड़ती है. वे साधन के रूप में जाने जाते हैं.
साधन साधाना की पूर्णता के लिए होते हैं. अत: महत्ता साधना की होती है. साधन की नही, साधना की गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए कठोर तप(परिश्रम) करना पड़ता है. तप के द्वारा ही साधन में ऊर्जा दी जाती है. (चार्ज किया जाता है) तभी साधन सहायक के रूप में कार्य करने योग्य हो पाता है. वैदिक काल में एक तो साधन प्राकृतिक रूप से ऊर्जावान होते थे. दूसरे मनुष्य अपने तपबल की शक्ति से उन्हें जाग्रत कर देता था।
वैदिक काल की भांति ही वर्तमान युग में ज्योतिष की महत्ता बरकरार है. बल्कि यही कहा जाये कि आज के समय ज्योतिषअधिक प्रासंगिक है. तो अतिश्योक्ति नहीं होगी.संसार पर सदा से ही चतुर व्यक्तियों ने राज किया है चूंकि ज्योतिष आज बिकता है तो ऐसे अनाधिकृत व्यक्तियों (श्रद्धाविहीन) ने इसका व्यावसायिक दोहन शुरु कर दिया है. जिनका ज्योतिष शास्त्र में तनिक भी विश्वास नही. इस सन्दर्भ में यहां बहुत से उदाहरण दिये जा सकते हैं. परन्तु समयाभाव में ऐसा सम्भव नही इसलिए एकमात्र उदाहरण देकर ही हम इसे भली भांति स्पष्ट कर सकते हैं.
आजकल आप टीवी. के भिन्न-भिन्न चैनलों पर ज्योतिष सम्बन्धी सामग्री(साधनों) की बिक्री के बारे मे देख व सन सकते हैं कि इस विशे, यन्त्र या माला को खरीदने अथवा धारण करने से आपको विशेष लाभ होगा. तथा इस विशेष वस्तु को अपने पास रखने से आपको कष्टों से मुक्ति मिलेगी. जैसा कि मै पहले ही कह चुका हू कि साधन में शक्ति साधना के तप बल की होती है. मन्त्रों में शक्ति होती है. इस बात पर सन्देह करने का कोई कारण नही परन्तु यहां पर विचार करने योग्य प्रश्न यह है कि जो विद्वान किसी धातु के यन्त्र (ताम्बा इत्यादि) को सिद्ध करने का दावा करते हैं क्या वे तपस्वी, श्रद्धावान, ज्ञानी एवं आध्यात्मिक ऊर्जा से परिपूर्ण है या फिर केवल अर्थ लाभ के लिए सरल एवं पीडि़त व्यक्तियों की भावनाओं का शोषण करते हैं. किसी विषय का ज्ञान होना एक अलग बात है और उस ज्ञान को सत्यता की कसौटी पर परखना दूसरी बात है. साधना में ज्ञान के साथ-साथ क्रिया पर जोर दिया जाता है. साधना में एक और बात तो महत्वपूर्ण होती है. वह है तन,मन एवं बुद्धि की पवित्रता जोकि स्वयं को कष्ट देकर हो (तप द्वारा) प्राप्त की जा सकती है.
यहां एक अन्य प्रश्न भी सामने आता है कि क्या ? इन सब परिस्थितियों के लिए पाखण्डी या ठग ज्योतिषी के साथ-साथ हम सब बराबर के जिम्मेदार नही है. कोई भी मनुष्य दुखो का सामना अपने कर्मो या लापरवाही के कारण करता है. कर्तव्यपरायणता एवं न्यायोचित व्यवहार करने तथा दुर्गुणों से दूर रहने पर अधिकतर समस्याओं से बचा जा सकता है.यदि अनजाने में किसी से कोई पाप हो जाता है तो उसका प्रायश्चित भी उसी को करना पड़ेगा. भ्रष्टाचार की सम्भावना मनुष्य द्वारा बनाए गए प्रशासन में ही हो सकती है. परमात्मा के विधान में नही कि कोई व्यक्ति मात्र धन खर्च करके (अहांकारपूर्ण) अपने पापों से मुक्ति पा सकता है. दान देने से लाभ होता है. यह शास्त्रोक्त भी है व सत्य भी है. परन्तु यदि कोई व्यक्ति अहंकार से युक्त होकर धन के बल पर बिना ग्लानि के महसूस किये यदि यह समझता है कि वह अपने पापों से मुक्ति पा लेगा तो मुंगेरीलाल की भांति स्वप्न ही देख रहा होगा।
उपरोक्त प्रश्नों का सही समाधान यही है कि कष्टों के आने पर व्यक्ति को किसी योग्य ज्योतिषी के पास जाकर सही समाधान के बारे में जानना चाहिये तथा स्वयं कष्ट सहन करके शास्त्रोक्त विधि से विनम्रता पूर्वक साधना करनी चाहिये तभी मुसीबतों से छुटकारा संभव है. क्योंकि स्वयं के मरने पर ही व्यक्ति स्वर्गवासी कहलाता है. अत: हमें टी.वी. चैनलों पर दिखलाये जाने वाले झूठ व भ्रामक प्रचार से बचना चाहिये अन्यथा कुछ व्यवसायी एवं धोखेबाज ज्योतिषियों के कारण ज्योतिष विधा पर ऑच आ सकती है. तथा लोगों का विश्वास इस पर से उठ सकता है.
नोटः हमारे किसी भी लेख को कापी करना दण्डनीय अपराध है ऐसा करने पर उचित कार्यवायी करने को मजबूर हो जाऊंगा। समाचार पत्र पत्रिकाएं हमसे अनुमती लेकर प्रकाशित कर सकते हैं...!.ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे,09827198828,Bhilai,
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