राजनीतिक लहलहाती फसल में अन्ना पौधा मुरझा गया...
राजनीतिक लहलहाती फसल में अन्ना पौधा मुरझा गया।
लेकिन धूल से धूसरीत इस तूफान को, ओस नहीं कह सकते,
जब लगी थी लंका में आग तो रावणी मूंछ पर ताव आ गया।
लेकिन हश्र हुआ वही, जो विभीषण बयां नहीं कर सकते।।
अन्ना की आंधी में पानी है आग नहीं ,
जनता के महंगाई झाग से निकलेगी आग।
अब विषैली वाणी, देश सुन सकता नहीं,
राह बहुत कठिन राहुल अब से भी जाग।।
मैं आग हुं अन्ना नहीं, चुनाव का चंदा नहीं,
वोट की ओट में शहीदी-चितओं की राजनीति।
गर शर्म से बेशर्म लोकशाही शर्माती नहीं,
महंगे भ्रष्ट के चोट से, हो ग्रस्त-त्रस्त-अनीति।।
मत चुको राजतिलक से पारंपरीक युवराज,
मनीष की मचल चाल, दिग्गी का ढ़ाल।
मत चलो मदमस्त चाल, जनता का है आगाज़,
जो आज है कल नहीं रहेगा, नहीं गलेगी तेरी दाल।।
चाहें जो हो रंग लाल, काला, हरा हो या पीला,
केसरीया का सशक्त रंग भगवा ही रहेगा।
होली के रंग में, भारत के अंग अंग में,
अल्हड़ का हो रंग हरा, काला भगवा ही रहेगा।।
-ज्योतिषाचार्य पं.विनोद चौबे , भिलाई दिनांक 28-12-2011
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