अंक ज्योतिष की निराली दूनीया
ज्योतिषाचार्य पं.विनोद चौबे, ०९८२७१९८८२८, भिलाई
कई बार हमारे जीवन में ऐसी घटनाएँ घटती हैं जो पहले पूर्ण रूप से उसी स्वरूप में बन चुकी होती हैं इतना ही नहीं इन घटनाओं की तारीखें, मास और समय भी पूर्ण रूप से वही होता है। मात्र वर्ष परिवर्तन होता है, परंतु तारीख, मास, वर्ष और उसके अंकों का योग भी पूर्ण रूप से पहले के अनुसार ही होता है। कई बार उस घटना के साथ जुड़े हुए व्यक्ति या उसका नाम भी या तो वही होता है या तो उसका नामांक भी वही होता है। यह सब कुछ हमको अंक ज्योतिष के प्रति आकर्षित होने के लिए मजबूर बनाता है। फिर भी यह विषय भारत में इतना विकसित नहीं हुआ है परंतु प्रदेशों में इसका बोलबाला है जिसे अंक ज्योतिष या न्यूमरोलॉजी के नाम से पहचाना जाता है।
वैसे तो अंक ज्योतिष हिब्रू लोगों का विषय है। इसके अनुसार इजिप्ट की जीप्सी विचरित जनजाति जो हमेशा रात को खुले आकाश के नियमित तारे गिनती रहती और दिन में उसके प्रत्याघात देखती रहती। इस शास्त्र को विकसित किए जाने का संपूर्ण योगदान इस जाति को दिया जाता है। अंक ज्योतिष शास्त्र में क, ख, ग, घ के अक्षरों और अंकों पर विचार किया जाता है। व्यक्ति के नाम के अक्षर अंग्रेजी में लिखकर प्रत्येक अक्षर की अंक ज्योतिषीय कीमत निश्चित करके नाम का नामांक प्राप्त किया जाता है। उसकी और जन्म तारीख, मास और वर्ष के अंकों का योग करके नामांक या जन्म तिथितांक प्राप्त किया जाता है और उसके ऊपर से भविष्यवाणी की जाती है।
इस शास्त्र में अंक 11, 22, 4, 2 आदि की जो नकारात्मक और विशेष असर देखने को मिलता है उसका सविस्तार अभ्यास भी क्रमशः किया गया है। उपरांत व्यक्ति के नामांक तिथितांक पर से भाग्यांक निकालकर भाग्यांक 1 से 11 और 22 के स्पेशल फल दिए गये हैं और उससे भविष्य जानने की जानकारी इस पुस्तक में उपलब्ध है। दूसरी ओर यदि किसी व्यक्ति की जन्म तारीख तो याद तो परंतु मास या वर्ष याद न हो तो उसका भविष्य देखने के लिए जन्म तारीख 1 से 31 तक में जन्मे व्यक्तियों का विशेष भविष्य भी
अंक ज्योतिषीय विषयों का आगे बढ़ाकर नामांक अर्थात् नाम में उपयोग में लिए जाते अक्षरों के मूल्यों पर से निश्चित किया जाता एक अंक विशेष उसके ऊपर से भविष्य किस तरह से निश्चित करना, यह समझाया है। उपरांत नामांक में से स्वरांक और व्यंजनांक को भी भविष्य अलग-अलग करके उस पर से सचोट भविष्य करने की प्रचुर जानकारी इस पुस्तक में उपलब्ध करवाई है।
इस पुस्तक के अंत में जन्मांक पर विशद चर्चा की गई है जिसमें सभी अंकों अर्थात् 1 से 9 तक के सभी जन्मांक, भाग्यांक और नामांक की जानकारी उपलब्ध करवाई है।
मेरे इस पुस्तक के पहले ज्योतिष शास्त्र के तथा अंक ज्योतिष शास्त्र के पुस्तकों को वाचकों ने बहुत ही प्रेम से स्वीकारा है उसे देखते हुए मुझे आशा है कि जो भूख और प्यास ज्योतिष शास्त्र के पुस्तकों द्वारा संतोष पाने में जो सफलता मिली है वैसी ही और शायद उससे विशेष सफलता संपूर्ण अंक ज्योतिष ग्रंथ के इस प्रकाशन द्वारा मुझे मिलेगी ऐसी मुझे आशा है।
अंक और अंकशास्त्र क्या है ? इसे समझने से पहले विचार करेंगे। अंक अर्थात् संख्याएँ, आँकड़े या नंबर। अंक के लिए अंग्रेजी शब्द Number या Figure है। अंक बहुत ही प्राचीन अर्थात् मानव जाति का इतिहास लिखने की शुरूआत से पहले के हैं। आदिमानव जब से एक-दूसरे के साथ विनिमय या आदान-प्रदान करने लगा तब से उसे गणना करने की आवश्यकता पड़ी होगी। यह गणना वह गुफाओं की दिवालों पर लीटीयाँ या रेखाएँ खींचकर पत्थर के टुकड़ों को गिनकर करता होगा। विद्वान मानते हैं कि मनुष्य की दस अंगुलियों पर से एक से दस की संख्याएँ तथा अंक गणित की दशांश पद्धति की शोध हुई होगी।
अंकों को संकेतों में लिखने की पद्धति प्राचीन समय के रसल्डीयनो, एसिरीयनो, सुमेरियनो, इजिप्सीयनो और चीनीओं के हिस्से में जाती है। वैदिक काल में हिन्दू भी यज्ञ की वेदी की रचना के लिए गणित और भूमिति का उपयोग करते थे।
विद्वानों के मतानुसार वर्तमान समय में उपयोग में लिए जाने वाले अंकों के दस संकेतों का जन्म स्थान भारत को माना जाता है। संख्याओं की दशांश पद्धति कि जिसमें संख्याओं को उनके स्थान के अनुसार मूल्य दिया जाता है, उसकी उत्पत्ति भी भारत में ही हुई थी। संख्याओं के दसवें संकेत शून्य ‘0’ की शुरूआत भी भारत में ही हुई थी। शून्य के लिए अरब लोग Cifr का उपयोग करते थे। यह शब्द इटली में Zero (जीरो), उत्तर यूरोप तथा जर्मनी में यह Cifra और अंग्रेजी में Ciphre (साइफर) के रूप में उपयोग में आया। बीज गणित का प्रारंभ भी भारत में ही हुआ था। प्रसिद्ध ज्योतिषी भास्कराचार्य को एक भी पुत्र नहीं था। उनको केवल लीलावती नाम की एक पुत्री थी। उन्होंने गणित शास्त्र के एक उत्तम ग्रंथ की रचना करके लीलावती को अर्पण किया और उस ग्रंथ का नाम भी ‘लीलावती’ रखा था। इस ग्रंथ में बीजगणित, भूमिति, अंकगणित और त्रिकोणमिति का समावेश किया गया है।
आधुनिक युग में अंकों या संख्याओं के बिना क्या आप जीवन की कल्पना कर सकते हैं ? अंक अर्थात् गणना और गणना अर्थात् गणित। अंकों या गणित के बिना खेतीबाड़ी, बाग-बगीचा, शिक्षा, विज्ञान, खगोल शास्त्र, प्रवास वाहन व्यवहार, संदेश व्यवहार, व्यापार वाणिज्य, छोटे-बड़े व्यवसाय, रोजगार उद्योग, बांधकाम, यंत्र, कारखाने आदि कार्य कर सकते हैं संख्याओं के बिना कृत्रिम गृह, उपग्रह, आकाशयान, मिसाइल्स, अंतरिक्ष, प्रयोगशालाओं आदि का क्या शोध होता ? आप प्रतिदिन अपने जीवन के बारे में घड़ीभर विचार करोगे तो मालूम होगा कि हमारा कोई भी दिन अंकों के बिना नहीं बीतता है। सच, अंकों के बिना अपना जीवन जीने के योग्य ही नहीं लगेगा। मिस्र के महान गणित शास्त्र पायथागोरस ने सत्य ही कहा “ Number rules the universe’’ अंक विश्व पर हुकूमत (राज) करते हैं।
अंक शास्त्र को कुछ लोग संख्या-शास्त्र भी कहते हैं। अंक अर्थात् नंबर (Number) और उस पर से इस शास्त्र को अंग्रेजी में Numerology कहते हैं। इस शास्त्र के समान ही मिलता जुलता दूसरा आंकड़ा शास्त्र (Statistics) भी है। जिसमें तथ्यों, घटनाओं, हकीकतों, गुणधर्मों आदि अंकों की जानकारी एकत्र करके उसका वैज्ञानिक और गणित के रूप में उपयोग किया जाता है। परंतु यह अंकशास्त्र (Statistics) अपने अंकशास्त्र ज्योतिष से बिल्कुल अलग है।
अति प्राचीन समय में अंकशास्त्र या संख्याशास्त्र का ज्ञान हिन्दुओं, ग्रीकों, खाल्डीओं, हिब्रुओं, इजिप्ट वासियों और चीनियों को था। अपने देश के प्रश्न विचार, स्वरोदम शास्त्र आदि प्राचीन ग्रंथों में अंकशास्त्र का अच्छा उपयोग हुआ है। अंकशास्त्र की व्याख्या देना बहुत ही कठिन है। इसके विषय में वोल्टर बी ग्रिब्सन द्वारा दी गई व्याख्या याद रखने जैसी है। “ The Science of Numerology is the practical application of the fundamental laws of mathematics to the material existance of a man.” ‘‘गणित शास्त्र के मूलभूत सिद्धांतों का मनुष्य के भौतिक अस्तित्व (या भौतिकी उत्कर्ष) के लिए होने वाला व्यवहारिक उपयोग ही अंकशास्त्र है।’’
अंकशास्त्र विद्वानों का मानना है कि अंकशास्त्र का प्रारंभ हिब्रू मूलाक्षरों से हुआ है। हिब्रू में 22 (बाईस) मूलाक्षर हैं और उसके प्रत्येक अक्षर को क्रम अनुसार एक से बाईस अंक दिए गए हैं। प्रत्येक अक्षर और अंक विशिष्ट आंदोलन का संवादी होता है। उस समय हिब्रू लोग अक्षरों के स्थान पर अंक और अंकों के स्थान पर अक्षरों का उपयोग करते थे। तदुपरांत इन अक्षरों और अंकों के अधिपतियों के रूप में अलग-अलग राशियों तथा ग्रहों को निश्चित किया गया था। इसलिए हिब्रू लोगों के समय से ही अक्षरों, अंकों, राशियों और ग्रहों के बीच संबंध स्थापित हुआ मान सकते हैं और यह संबंध ही अंकशास्त्र के आधाररूप है।
पाश्चात्य देशों में सेफारीअल, डॉक्टर, क्रोस, मोन्ट्रोझ, मोरीस सी. गुडमेन, जेम्स ली, हेलन हिचकोक, टेयलर (Taylor) आदि अंक शास्त्रियों ने अलग-अलग पद्धतियाँ अपनाई हैं। उसमें से हीरो, डॉक्टर क्रोस, मोन्ट्रोझ, सेफारीअल आदि की पद्धति को हिब्रू या पुरानी पद्धति के रूप में पहचानेंगे क्योंकि उसमें अंग्रेजी मूलाक्षरों को जो नंबर दिए गए हैं वह हिब्रू मूलाक्षरों के क्रम अनुसार है जबकि जेम्स ली, हेलन, हिचकोक, टेयलर, मोरिस सी. गुडमेन आदि पश्चिम के आधुनिक अंक शास्त्रियों ने अंग्रेजी मूलाक्षरों के आधुनिक क्रम अनुसार नंबर दिए हैं और इसलिए हम उनकी पद्धति को आधुनिक अंकशास्त्र के रूप में पहचानेंगे।
अंकशास्त्र में जन्म के समय की जानकारी न हो तब भी चलता है। आपकी जन्म तारीख और आपका अभी का नाम ये दो वस्तुओं के ऊपर से आपके अच्छे-बुरे दिनों, महत्त्व के वर्षों, व्यवसायों, मित्रों, भागीदारों, प्रेम, विवाह, मुलाकातों, अन्य व्यक्तियों या वस्तुओं के साथ संबंध लाभदायक होंगे या नुकसानदायक होंगे आदि जान सकते हैं।
अनुभव से हम जानते हैं कि कोई एक दिन या तारीख को किया गया कार्य निष्फल साबित होता है, जबकि दूसरी किसी तारीख या दिन को किया गया कार्य सफल होता है। ये सभी बातें हम अंकशास्त्र की मदद से जान सकते हैं। उसके लिए ज्योतिष शास्त्र जैसी कठिन गणना या असंख्य सिद्धांत याद रखने की आवश्यकता नहीं है। नाम लिखने जैसी अंग्रेजी का ज्ञान तथा गणित के सरल जोड़ या घटाव आते हों तो आप अवश्य ही अंकशास्त्र की ज्योतिष में निपुण बन सकोगे।
प्राचीन और अर्वाचीन अंकशास्त्रप्राचीन अंकशास्त्र का प्रारंभ जॉन हेडन (John Haydon) के समय से हुआ मान सकते हैं। उसने अपनी पुस्तक Holy guide (होली गाइड) में अंतःप्रेरणा से अंकों और ग्रहों के बीच संबंध स्थापित किया। यह संबंध पुरानी हिब्रू पद्धति के किरो, मोन्ट्रोझ, डॉक्टर क्रोस जैसे विद्वानों ने स्वीकार्य किया था। यह संबंध निम्नानुसार हैं
1. सूर्य का धनात्मक अंक -1
सूर्य का ऋणात्मक अंक -4
2. चंद्रमा का धनात्मक अंक -7
चंद्रमा का ऋणात्मक अंक -2
3. मंगल का अंक -9
4. बुध का अंक -5
5. गुरु का अंक -3
6. शुक्र का अंक -6
7. शनि का अंक -8
8. युरेनस का अंक -4
9. नेपच्यून का अंक -7
जबकि आधुनिक अंकशास्त्री जैसे कि टेयलर, जेम्स ली, हेलन हिचकोक, गुडमेन आदि उपरोक्त संबंध रूप को स्वीकार नहीं करते, परंतु उसमें कुछ परिवर्तन करते हैं। उनके मतानुसार अलग-अलग ग्रहों के अंक निम्नानुसार हैं।
1. सूर्य का अंक -1
2. चंद्र का अंक -2
3. गुरु का अंक -3
4. शनि का अंक -4
5. बुध का अंक -5
6. शुक्र का अंक -6
7. युरेनस का अंक -7
8. मंगल का अंक -8
9. नेपच्यून का अंक -9
10. प्लूटो का अंक -0 या नहीं
कुछ आधुनिक अंकशास्त्री तो अंकों को ग्रहों के साथ संबंधित किए बिना ही उसके गुणधर्म आदि का वर्णन करते हैं।
उपरोक्त अंतर के उपरांत अंग्रेजी मूलाक्षरों को अंकों-नंबरों के साथ में संबंधित करने में भी निम्मनानुसार का मतभेद है।
हिब्रू या पुरानी पद्धति में मूलाक्षरों को निम्नानुसार के अंक दिए गए हैं। यह क्रम हिब्रू मूलाक्षर के क्रम अनुसार होने से अंग्रेजी मूलाक्षर के आधुनिक क्रम से सुसंगत नहीं है।
A, B, C, D, E, F, G, H, I, J, K, L, M
1, 2, 3, 4, 5, 8, 3, 5, 1, 1, 2, 3, 4,
N, O, P, Q, R, S, T, U, V, W, X, Y, Z,
5, 7, 8, 1, 2, 3, 4, 6, 6, 6, 5, 1, 7
इस पुरानी पद्धति में किसी भी अक्षर को 9 (नौ) का अंक नहीं दिया है तथा इसमें कोई निश्चित क्रम न होने से उसे याद रखना कठिन है।
आधुनिक पद्धति नीचे दी गई है और उसमें अक्षरों को उनके क्रमानुसार ही अंक दिए गए होने से उन्हें याद रखना सरल पड़ता है। इसमें क्रमानुसार ही अक्षरों को 1 से 9 तक के अंक दिए गए हैं।
A, B, C, D, E, F, G, H, I,
1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9,
J, K, L, M, N, O, P, Q, R,
1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9,
S, T, U, V, W, X, Y, Z,
1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8,
अंकशास्त्र की पुरानी पद्धति में 11, 12 और 33 के अंकों को विशिष्ट स्थान नहीं दिया गया है। परंतु आधुनिक या अर्वाचीन पद्धति में 11, 22 और 33 के अंकों को मास्टर नंबर के रूप में विशिष्ट स्थान दिया गया है।
हम यहाँ अर्वाचीन अंकशास्त्र की ज्योतिष पद्धति का क्रमशः अभ्यास करेंगे। इसके बाद मुख्य और मिश्र अंकों के बारे में देखेंगे।
मुख्य और मिश्र अंकदुनिया के अधिकांशतः देशों में अंकों या संख्याओं को लिखने के लिए दशांश पद्धति का उपयोग किया जाता है। इस पद्धति में 1 से 9 और 0 (शून्य) इस प्रकार दस अंकों के संकेतों का उपयोग किया जाता है। 0 और 1 से 9 तक के अंकों को मुख्य या मूल अंक कहा जाता है। कुछ अंकशास्त्री 0 को अंक के रूप में स्वीकार नहीं करते। फिर भी उसके अंकशास्त्र में महत्त्व को स्वीकारते हैं। उपरोक्त नौ अंकों के अलावा अर्थात् दस से अनंत तक के अंकों का योग (जोड़) की क्रिया से मुख्य अंकों में बदल सकते हैं। इस प्रकार अंकों के दो प्रकार हैं। (1) 1 से 9 तक के मुख्य या मूल अंक और (2) 10 और उसके बाद के अनंत तक के मिश्र अंक।
कई बार मिश्रांकों को मूलों या मूख्यांकों में बदलने की आवश्यकता पड़ती है। उसके लिए नीचे कुछ उदाहरण दिए हैं।
(1) 33 = 3+3 =6
(2) 854 = 8+5+4 = 1+7 = 8
(3) 2896 = 2+8+9+6 =25 = 2+5 =7
(4) 85797 = 8+5+7+9+7 = 36 = 3+6 = 9
उपरोक्त उदाहरण की पद्धति से आप भी आवश्यकता पड़ने पर मिश्रांकों को मुख्य अंकों में सरलता से बदल सकते हैं। कुछ मिश्रांकों के प्रतीकों टेरट कार्ड्स (Tarot cards) में मिश्र प्रतीकों के स्वरूप गूढ़ रूप से अंकित हुए मिलते हैं। बहुत ही प्राचीन चित्र होने से उनका प्रारंभ काल नहीं कहा जा सकता है। कीरो, सेफारीअल, मोन्ट्रोझ आदि इस शास्त्र के निष्णातो ने इन चित्रों के ऊपर से अंकों के जो अर्थ ढूंढ़ निकाले हैं वे मिश्र अंकों के पाठ में दिए जाएँगे।
आधुनिक अंकशास्त्री 11, 22 और 33 के मिश्र अंकों को विशेष महत्त्व देकर उन्हें (Master Numbers) सर्वोत्तम नंबर या सर्वोत्तम अंक मानते हैं। इन मास्टर नंबरों को (11, 22 और 33 को) पुरानी हिब्रू पद्धति में विशिष्ट स्थान नहीं दिया गया है। अधिकांशतः आधुनिक अंकशास्त्री 11 और 22 को ही मास्टर नंबर के रूप में नहीं स्वीकारते हैं। जीवन विकास के तीन अलग-अलग स्तरों या चरणों के साथ में इन तीन सर्वोत्तम अंकों को जोड़ा गया है। 1 से 11 वर्ष की आयु तक मनुष्य का शारीरिक विकास अधिक प्रमाण में होता है और इसलिए मिश्रांक 11 को मास्टर नंबर माना गया है। 21 वर्ष पूरे होने के बाद 22वें वर्ष में व्यक्ति को मत देने का अधिकार प्राप्त होता है। तदुपरांत 11 से 22 वर्ष तक में व्यक्ति का मानसिक विकास भी अधिक होता है और 22वें वर्ष तक में तो व्यक्ति सामान्य रूप से उच्च शिक्षा (कॉलेज शिक्षा) भी पूरी करता है और इस तरह से 22 के मिश्रांकों को सर्वोत्तम नंबर माना जाता है। 22वें वर्ष से 33 वें वर्ष तक में व्यक्ति की उच्च प्रकार की चेतना शक्ति का (Consciousness) विकास अधिक प्रमाण में होता है और इसलिए 33 को भी मास्टर नंबर माना गया है। (Florence Campbell) फ्लोरन्स केम्पबेल इन अंकों के बारे में निम्नानुसार लिखते हैं।
“Those who have these Master Number (11 and 22) in their name or in the birth-date may know that they are endowed with qualities of leadership and inspiration that are not given to the majority.”
‘‘जिनके नाम या जन्म तारीख में ये मास्टर नंबर (11 और 22) आए हुए होते हैं वो जान लें कि नेतृत्व और अंतःप्रेरणा के गुण कि जो बहुतायत लोगों को नहीं मिले होते हैं, उससे वे संपन्न हैं।
ऊपर के मास्टर नंबरों के गुणधर्मों का वर्णन पूर्ण जन्मांक, जीवन चक्रांक, भाग्यांक, नामांक आदि की चर्चा में दिया जाएगा।
(1) प्रत्येक मनुष्य की जन्म तारीख निश्चित अर्थात् कभी भी न बदली जा सके ऐसी वस्तु है, जबकि उसका नाम इच्छा हो तब अर्थात् जब चाहे बदल सकते हैं।
(2) कुछ व्यक्ति एक से अधिक नामों से पहचाने जाते हैं। ऐसी परिस्थितियों में कौन सा नाम नामांक के लिए लेना उसका निर्णय करना कठिन बनता है।
(3) मनुष्य की जन्म तारीख उसके जन्म समय के ग्रहों की स्थिति और असर दर्शाती है और यह असर जीवनभर रहता है।
पूर्ण जन्म तारीख अर्थात् तारीख, मास और वर्ष के साथ वाली जन्म तारीख 1 जन्म तारीख पर से भाग्यांक, जीवनचक्रांक या जीवन पथ नीचे दर्शायी गई पद्धति से ढूंढ़ या निकाल सकते हैं। उसके लिए कुछ उदाहरण नीचे दर्शाए गए हैं।
(1) श्री लाल बहादुर शास्त्री की जन्म तारीख 2-10-1904 थी। उनका भाग्यांक 2+1+0+1+9+0+4 = 17 = 1+7 = 8
(2) डॉ.सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जन्म तारीख 2-9-1888 थी। उनका भाग्यांक 2+9+1+8+8+8 = 36 = 3+6 = 9 है।
(3) भूतपूर्व वित्तमंत्री तथा गृहमंत्री श्री एच.एम.पटेल। जन्म तारीख 27-8-1904 है। उनका भाग्यांक 2+7+8+1 +9+0+4 = 31 = 3+1 =4 होता है।
अब सभी लोग अपनी पूर्ण जन्म तारीख से उपरोक्त तरीके से अपना भाग्यांक, जीवनचक्रांक या जीवन पथ ढूंढ़ सकेंगे। व्यक्ति के भाग्यांक का असर अर्थात् भाग्यांक के आंदोलन का असर उसके जन्म से या मृत्यु पर्यन्त अर्थात् कि पूरे जीवन पर्यंत रहती है। भाग्यांक की मदद से व्यक्ति अपने स्वभाव, चरित्र, व्यक्तित्व, विशिष्ट शक्तिओं और कमजोरियों, गुणों और अवगुणों, वृत्तिओं, अभिरूचियों आदि को जान सकता है। अंग्रेजी में एक सुभाषित है “CHARACTER IS DESTINY” ‘‘चरित्र ही भाग्य है।’’ मनुष्य अपने स्वभाव और चरित्रानुसार अपने भाग्य का निर्माण कर सकता है।
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