मित्रों सुप्रभात,
चार वेदों के बारे में सक्षिप्त जानकारी मैं आप सभी को देना चाहूंगा, जो काफी अहम है>
ज्योतिषाचार्य पं.विनोद चौबे .09827198828, भिलाई
चार वेदों के बारे में सक्षिप्त जानकारी मैं आप सभी को देना चाहूंगा, जो काफी अहम है>
ज्योतिषाचार्य पं.विनोद चौबे .09827198828, भिलाई
ऋग्वेद
ऋग्वेद देवताओं की स्तुति से सम्बंधित रचनाओं का संग्रह है।
यह 10 मंडलों में विभक्त है। इसमे 2 से 7 तक के मंडल प्राचीनतम माने जाते हैं। प्रथम एवं दशम मंडल बाद में जोड़े गए हैं। इसमें 1028 सूक्त हैं।
इसकी भाषा पद्यात्मक है।
ऋग्वेद में 33 देवी-देवतों का उल्लेख मिलता है।
प्रसिद्ध गायत्री मंत्र जो सूर्य से सम्बंधित देवी सावित्री को संबोधित है, ऋग्वेद में सर्वप्रथम प्राप्त होता है।
' असतो मा सद् गमय ' वाक्य ऋग्वेद से लिया गया है।
ऋग्वेद की रचना संभवतः पंजाब में हुई थी।
ऋग्वेद में मंत्र रचियताओं में स्त्रियों के नाम भी मिलते हैं, जिनमें प्रमुख हैं- लोपामुद्रा, घोषा, शाची, पौलोमी एवं काक्षावृती आदि
इसके उपवेद का नाम आयुर्वेद् है।
इसके पुरोहित क नाम होत्री है।
इसकी भाषा पद्यात्मक है।
ऋग्वेद में 33 देवी-देवतों का उल्लेख मिलता है।
प्रसिद्ध गायत्री मंत्र जो सूर्य से सम्बंधित देवी सावित्री को संबोधित है, ऋग्वेद में सर्वप्रथम प्राप्त होता है।
' असतो मा सद् गमय ' वाक्य ऋग्वेद से लिया गया है।
ऋग्वेद की रचना संभवतः पंजाब में हुई थी।
ऋग्वेद में मंत्र रचियताओं में स्त्रियों के नाम भी मिलते हैं, जिनमें प्रमुख हैं- लोपामुद्रा, घोषा, शाची, पौलोमी एवं काक्षावृती आदि
इसके उपवेद का नाम आयुर्वेद् है।
इसके पुरोहित क नाम होत्री है।
''यजुर्वेद'' की उपयोगिता एक नजर में-
आज बात करते हैं यजुर्वेद की , यजुर्वेद शब्द का तात्पर्य ''यजन'' से है अर्थात याचना करना अथवा प्रार्थना करना, स्तुती करना । जिस वेद में ईश्वरार्चना करने के तौर तरीके एवं सलीके(विधी) बताए गयें हों उस वेद को यजुर्वेद कहा जाता है।
यजुर्वेद की उपयोगिता एक नजर में-
यजु का अर्थ होता है यज्ञ। यजुर्वेद वेद में यज्ञ की विधियों का वर्णन किया गया है। इसमे मंत्रों का संकलन आनुष्ठानिक यज्ञ के समय सस्तर पाठ करने के उद्देश्य से किया गया है। इसमे मंत्रों के साथ साथ धार्मिक अनुष्ठानों का भी विवरण है जिसे मंत्रोच्चारण के साथ संपादित किए जाने का विधान सुझाया गया है। यजुर्वेद की भाषा पद्यात्मक एवं गद्यात्मक दोनों है। यजुर्वेद की दो शाखाएं हैं- कृष्ण यजुर्वेद तथा शुक्ल यजुर्वेद। कृष्ण यजुर्वेद की चार शाखाएं हैं- मैत्रायणी संहिता, काठक संहिता, कपिन्थल तथा संहिता। शुक्ल यजुर्वेद की दो शाखाएं हैं- मध्यान्दीन तथा कण्व संहिता। यह 40 अध्याय में विभाजित है। इसी ग्रन्थ में पहली बार राजसूय तथा वाजपेय जैसे दो राजकीय समारोह का उल्लेख है।
आज बात करते हैं यजुर्वेद की , यजुर्वेद शब्द का तात्पर्य ''यजन'' से है अर्थात याचना करना अथवा प्रार्थना करना, स्तुती करना । जिस वेद में ईश्वरार्चना करने के तौर तरीके एवं सलीके(विधी) बताए गयें हों उस वेद को यजुर्वेद कहा जाता है।
यजुर्वेद की उपयोगिता एक नजर में-
यजु का अर्थ होता है यज्ञ। यजुर्वेद वेद में यज्ञ की विधियों का वर्णन किया गया है। इसमे मंत्रों का संकलन आनुष्ठानिक यज्ञ के समय सस्तर पाठ करने के उद्देश्य से किया गया है। इसमे मंत्रों के साथ साथ धार्मिक अनुष्ठानों का भी विवरण है जिसे मंत्रोच्चारण के साथ संपादित किए जाने का विधान सुझाया गया है। यजुर्वेद की भाषा पद्यात्मक एवं गद्यात्मक दोनों है। यजुर्वेद की दो शाखाएं हैं- कृष्ण यजुर्वेद तथा शुक्ल यजुर्वेद। कृष्ण यजुर्वेद की चार शाखाएं हैं- मैत्रायणी संहिता, काठक संहिता, कपिन्थल तथा संहिता। शुक्ल यजुर्वेद की दो शाखाएं हैं- मध्यान्दीन तथा कण्व संहिता। यह 40 अध्याय में विभाजित है। इसी ग्रन्थ में पहली बार राजसूय तथा वाजपेय जैसे दो राजकीय समारोह का उल्लेख है।
सामवेद
सामवेद की रचना ऋग्वेद में दिए गए मंत्रों को गाने योग्य बनाने हेतु की गयी थी।
इसमे 1810 छंद हैं जिनमें 75 को छोड़कर शेष सभी ऋग्वेद में उल्लेखित हैं।
सामवेद तीन शाखाओं में विभक्त है- कौथुम, राणायनीय और जैमनीय।
सामवेद को भारत की प्रथम संगीतात्मक पुस्तक होने का गौरव प्राप्त है।
सामवेद तीन शाखाओं में विभक्त है- कौथुम, राणायनीय और जैमनीय।
सामवेद को भारत की प्रथम संगीतात्मक पुस्तक होने का गौरव प्राप्त है।
अथर्ववेद
अथर्ववेद की रचना अथर्वा ऋषि ने की थी।
इसमें प्राक्-ऐतिहासिक युग की मूलभूत मान्यताओं, परम्पराओं तथा अंधविश्वासों का चित्रण है।अथर्ववेद 20 अध्यायों में संगठित है। इसमें 731 सूक्त एवं 6000 के लगभग मंत्र हैं।
इसमें रोग तथा उसके निवारण के साधन के रूप में जादू, टोनों आदि की जानकारी दी गयी है।
अथर्ववेद की दो शाखाएं हैं- शौनक और पिप्लाद।
इसे अनार्यों की कृति माना जाता है।इसमें रोग तथा उसके निवारण के साधन के रूप में जादू, टोनों आदि की जानकारी दी गयी है।
अथर्ववेद की दो शाखाएं हैं- शौनक और पिप्लाद।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें