ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे

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सोमवार, 26 दिसंबर 2011

ग्रहों का स्वास्थ्य से सम्बन्ध :

ग्रहों का स्वास्थ्य से सम्बन्ध :
मित्रो आज मई ग्रहों के द्वारा स्वस्थ्य के चर्चा करेंगे ! ग्रह नक्षत्रों का असर समाज, प्रकृति, पशु, पक्षी तक देखा जा सकता है ! जहाँ आप के जन्मांक में यदि स्थिति बेहतर होने से आपको बेहतर फल प्राप्त होते हैं वही आप की ग्रह स्थिति आपको बलवान बना सकती है और रोग ग्रस्त भी बना सकती है ! मृत्यु तुल्य कष्ट भी दे सकती है  अर्थात कहा जा सकता है कि आपके जन्मंश में षष्ट, षष्ठेश, लग्न, लग्नेश के आधार पे आपका स्वास्थ्य निर्भर करता है, यदि आपकी कुंडली में लग्न उत्तम है !लग्नेश केंद्र त्रिकोणगत है तो आपका स्वास्थ्य बेहतर रहेगा, षष्टेश की स्थिति से भी आप के रोगों का आकलन किया जा सकता है
! यह निहायत व्यवहारिक बात है कि षष्ठ स्थान का स्वामी यदि पाप ग्रह हो लग्न या अष्टम भाव में हो तो शरीर में फोड़ा, फुंसी आदि अधिक होते हैं! आपके शरीर के अंगों पर क्रमश: अपने अपने अंगों पर ग्रहों का अधिकार होता है ! व्यावहारिक पहलू यह है कि जो भी ग्रह कमजोर स्थिति में होगा उसी अंग को पीड़ा किसी न किसी रूप में पहुंचेगी ! भाव के आधार पे आकलन करने पर रोग के सम्बन्ध में स्थिति पूर्णत: स्पष्ट हो जाती है !
भाव                      राशि                 राशिश              प्रतिनिधित्व अंग और रोग
प्रथम                     मेष                   मंगल                 ललाट, सिर, दिमाग
द्वितीय                    वृष                   शुक्र                  दांत, जबान, मुह, कान, दाहिनी आँख
तृतीय                     मिथुन                बुध               कन्धा, गला, उंगलियाँ
चतुर्थ                     कर्क                   चन्द्र                   फेफड़े, छाती, मानसिक रोग
पंचम                     सिंह                   सूर्य                    पेट सम्बन्धी, आतों सम्बन्धी रोग, हृदय सम्बन्धी रोग
षष्ठ                       कन्या                   बुध                    हर्निया, अपेंडिक्स, पेट सम्बन्धी रोग
सप्तम                     तुला                   शुक्र                     गुप्त रोग, अंडकोष सम्बन्धी रोग, मूत्र सम्बन्धी रोग
अष्टम                     वृश्चिक                मंगल                  पीठ से कमर तक का भाग सम्बन्धी रोग
नवम                      धनु                    गुरु                      कमर से घुटनों के मध्य भाग सम्बन्धी रोग
दशम                      मकर                  शनि                    घुटना सम्बन्धी रोग, गठिया बाई, आदि
एकादश                   कुम्भ                  शनि                  घुटनों से पैर तक के मध्य का भाग एवं रोग
द्वादश                     मीन                    गुरु     पैर का तलवा, पैर की उंगलियाँ, पैर सम्बन्धी रोग, एवं बाई आंख सम्बन्धी रोग

भावों व ग्रहों की स्थिति का आकलन किया जाये तो मनुष्य के स्वाभाविक रोगों का आकलन किया जा सकता है :-
   1. सूर्य यदि कमजोर है तो हृदय रोग, आतों के रोग हो सकते हैं
!   2. चन्द्र  यदि कमजोर है तो सीने के रोग, टी0बी0, शीत विकार, ज्वर अनिद्रा, मानसिक रोग कि वृद्धि होगी !   3. मंगल रक्त विकार, तीव्र ज्वर, चेचक आकस्मिक दुर्घटना, घाव चोट, चोट, ब्लड प्रेशर, आदि रोगों का जन्मदाता होता है !   4. बुध एलर्जी कंधा गला हाथ कि उँगलियों पर किसी न किसी रोग का प्रकोप हो सकता है!   5. गुरु चर्बी कमर से जांघ तक, कफ एवं जिगर सम्बन्धी रोग हो सकते हैं !   6. शुक्र बाँझपन लिकोरिया, मूत्राशय सम्बन्धी रोग, नेत्र रोग मुख रोग, गुप्त रोगों कि उत्पत्ति करता है !   7. शनि वायुविकार, गैस, कफ जन्य रोग, घुटनों में दर्द, वातशूल, श्वंश रोग, शूल रोग, पाँव सम्बन्धी रोगों का जन्म दाता है !कारण:-  लग्न लग्नेश, षष्ठ, षष्ठेश, अष्टम, अष्टमेश, आदि पर अशुभ प्रभाव हो और अशुभ भाव में हो तो इसी दशा में ग्रह अपने अधिकार क्षेत्र के शारीरिक अंगों को प्रभावित करते हैं ! यह भी कह सकते हैं कि ग्रह सम्बन्धी रोगों की अधिकता मनुष्य को प्रभावित करती है !
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  ग्रह दोष निवारण:-
   1. सूर्य - यदि सूर्य अरिष्ट हो तो माणिक  धारण करे
! सूर्य मंत्र जप दान आदि करे !   2. चन्द्र- मोती धारण करे ! चन्द्र मंत्र का जाप करे व दान करे !   3. मंगल - मूंगा धारण करे ! मंगल स्त्रोत का पाठ करे ! लाल वस्तुओं का दान करे !   4. बुध- पन्ना धारण करे ! भगवन विष्णु की उपासना, गाय को हरा चारा, हरे वस्त्र, हरी सब्जियां दान करना !   5. ब्रहस्पति- पुखराज धारण करना ! पीला अन्न पीला वस्त्र दान करना, और ब्रहस्पतिवार का व्रत आदि करे !   6. शुक्र- हीरा धारण करे, दुर्गाशाप्त्स्हती का पाठ करे ! शुक्रवार का व्रत करे, कन्या पूजन कन्या भोज आदि करे 7
   7. शनि- नीलम धारण करे, शनि ग्रह का दान करे
! शनिवार का व्रत करे  व शनि मंत्र का जप करे !निष्कर्ष-
ग्रह चाहे अनुकूल स्थिति में हो या प्रतिकूल प्रत्येक दशा में मनुष्य को प्रभावित करते हैं यदि अनुकूल है तो अच्छा फल और प्रतिकूल हैं तो अनिष्ट करी स्थिति के जन्मदाता बन सकते हैं
! अर्थात यह कहा जा सकता है कि अनुकूल ग्रह को ज्यादा अनुकूल स्थिति देना तथा प्रतिकूल ग्रहों को बेहतर स्थिति में लाकर मनुष्य अनिष्ट समय को कट सकता है ! ग्रह हर हल में अपना फल करते हैं ! पूजन, उपचार आदि से उनका प्रभाव  कम या बढाया जा सकता है !
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