कालसर्पयोग के कारण एवं निवारण
नागों का अस्तित्व ब्रम्हा द्वारा रचित सृष्टि में आरंभ से है. पृथ्वी को शेषनाग पर धारण करवाया गया है. हमारे पालनहार भगवान विष्णु शेष शैय्या पर विराजमान होकर सृष्टि का पालन कर रहे हैं. आशुतोष भगवान शिव नागों को गले में डालकर नागेन्द्रहार कहलाएं. समुद्र मंथन के लिए नागराज वासुकी को देवताओं और असुरों ने रस्सी बनाया था. वेदों में भी कई सर्पो का उल्लेख मिलता है. अग्रिपुराण में 80 प्रकार के नागकुलों का वर्णन है. जिसमे वासुकी, तक्षक, पदम, महापदम प्रसिद्ध सर्प है. नागों का पृथक का अस्तित्व देवी देवताओं के साथ वर्णित है. जैन, बौद्ध देवताओं के सिर पर भी शेष छत्र होता है.
कल्याण वर्मा ने सारावली में सर्पयोग की विषद व्याख्या की है. कामरत्न के अध्याय 14 के श्लोक 41 में राहु को काल कहा गया है. कि शनि सूर्य राहु ये तीनो जन्म समय में लग्र से सातवें हो तो जातक सर्पदंश से पीडि़त होता है. धार्मिक ग्रंथों में सर्प में मुख में राहु का आधिपत्य तथा पूंछ में केतु काआधिपत्य है.
कब अनिष्टकारी होता है कालसर्प योग : -
दक्षिणामुखी शिवलिंग पर चांदी का नाग, स्वर्ण एवं शीशे का नाग बनाकर अभिषेक कराया जाता है. संकटनाशक एक काल को भी जीतने वाले महामृत्युंजय महाकाल शिवलिंग पर नाग की पूजा की जाती है.
पांच फन वाला चांदी का नाग लेकर शिवलिंग पर अभिषेक करवाकर घर में ही उसकी स्थापना करें व कालसर्प योग वाले जातक नियमित दीपक, अगरबत्ती लगाकर पूजा अर्चना करें.
महामृत्युंजय एवं अमोघ शिव कवच का पाठ करे।
भोलेनाथ की भक्ति करें, इसलिए कि वे ही महाकाल है. वे सदा गले में नाग लपेटे रहते हैं.
विभिन्न योग एवं निदान : -
जब जन्म कुंडली मे सारे ग्रह राहु से केतु के मध्य आ जाते हैं. तब कालसर्प योग का निर्माण होता है. इसकी शांति का श्रेष्ठï समय श्रावण कृष्ण पक्ष की पंचमी (नाग पंचमी अथवा अधिक मास के दुर्लभ संयोगों में भी शांति कराना बेहतर रहेगा) है. कुल 288 प्रकार के कालसर्प होते हैं. लेकिन मुख्य रूप से बारह प्रकार के कालसर्प योग होते हैं.
कल्याण वर्मा ने सारावली में सर्पयोग की विषद व्याख्या की है. कामरत्न के अध्याय 14 के श्लोक 41 में राहु को काल कहा गया है. कि शनि सूर्य राहु ये तीनो जन्म समय में लग्र से सातवें हो तो जातक सर्पदंश से पीडि़त होता है. धार्मिक ग्रंथों में सर्प में मुख में राहु का आधिपत्य तथा पूंछ में केतु काआधिपत्य है.
''ज्योतिषीय दृषि में राहू का जन्म नक्षत्र भरणी तथा केतु का जन्म नक्षत्र अश्लेषा है. राहु के जन्म नक्षत्र भरणी के देवता यम अर्थात काल है. तथा अश्लेषा केतु का नक्षत्र है, जिसका स्वामी सर्प है. इन्ही राहु केतु के नक्षत्र स्वामी को कालसर्प योग का निर्माण होता है. और इसतरह की कुंडलियों में जो परिणाम दृष्टिïगोचर होते हैं. वह लगभग एक समान होते हैं.''-
ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे
- जब सातों ग्रह पक्ष में होते हुए भी जातक को उचित फल प्राप्त न हो , अथक प्रयास के बावजूद हर कार्य में बाधा उत्पन्न हो, ऋणग्रस्तता हो, झूठे मुकदमे में झूठा आरोप हो, पारिवारिक संकट हो, संतान से पीड़ा हो या संतान न हो, जातक अपनी संपदा का उपयोग न कर पा रहे हैं. अचानक होने वाली घटनाएं घटित हो तो अनायास ही ध्यान जाता है कि कहीं राहु केतु के मध्य होकर कालसर्प योग तो नही बन रहा. तब मानना होता है कि यह भी एक केमद्रुम योग जैसा दुर्योग है. ज्योतिषीय मत से राहु को कालपुरुष का दुख माना गया है.
कब अनिष्टकारी होता है कालसर्प योग : -
- राहु शत्रुता रखता है सूर्य, चन्द्र, गुरु व मंगल से अत:
- राहु गुरु के साथ बैठकर चांडाल योग बनाएं. तब कालसर्प योग अनिष्टï फल देता है
- राहु, चन्द्र के साथ बैठकर ग्रहण योग बनाएं तो कालसर्प अनिष्टï करता है.
- राहु मंगल के साथ बैठकर अंगारक योग बनाएं तो कालसर्प वाला जातक अभावग्रस्त होकर पलायन करता है.
दक्षिणामुखी शिवलिंग पर चांदी का नाग, स्वर्ण एवं शीशे का नाग बनाकर अभिषेक कराया जाता है. संकटनाशक एक काल को भी जीतने वाले महामृत्युंजय महाकाल शिवलिंग पर नाग की पूजा की जाती है.
पांच फन वाला चांदी का नाग लेकर शिवलिंग पर अभिषेक करवाकर घर में ही उसकी स्थापना करें व कालसर्प योग वाले जातक नियमित दीपक, अगरबत्ती लगाकर पूजा अर्चना करें.
महामृत्युंजय एवं अमोघ शिव कवच का पाठ करे।
भोलेनाथ की भक्ति करें, इसलिए कि वे ही महाकाल है. वे सदा गले में नाग लपेटे रहते हैं.
विभिन्न योग एवं निदान : -
जब जन्म कुंडली मे सारे ग्रह राहु से केतु के मध्य आ जाते हैं. तब कालसर्प योग का निर्माण होता है. इसकी शांति का श्रेष्ठï समय श्रावण कृष्ण पक्ष की पंचमी (नाग पंचमी अथवा अधिक मास के दुर्लभ संयोगों में भी शांति कराना बेहतर रहेगा) है. कुल 288 प्रकार के कालसर्प होते हैं. लेकिन मुख्य रूप से बारह प्रकार के कालसर्प योग होते हैं.
ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे
1. तक्षक लक्षण कालसर्पयोगउपाय : राहु की वस्तुएं बहते जल में बुधवार को बहाएं।
कांसे के बर्तन में चांदी का टुकड़ा घर में पवित्र स्थान में रखें.
2. कर्कोटक कालसर्प योग : -
उपाय : ऊँ नम: शिवाय लिखा बेलपत्र शिवलिंग पर चढ़ाए.
43 दिन तक तांबे के खोटे सिक्के जल में बहाएं।
3. शंखनाद कालसर्प योग : -
उपाय : गृह के मुख्य द्वार पर चांदी का स्वास्तिक लगाएं.
हल्दी का तिलक करें.
4. पातक कालसर्प योग : -
उपाय : भगवान शिव पर चांदी के सर्पो का जोड़ चढ़ाएं
मसूर की दाल बहते जल में प्रवाहित करें।
5. विषाक्त कालसर्प योग : -
उपाय : भगवान शंकर का अभिषेक पंचामृत से करें.
चांदी के बर्तन में पानी या दूध पीएं.
6. शेषनाग कालसर्पयोग : -
उपाय : नाग की आकृति वाली चांदी की अंगूठी बनवाकर मध्यमा उंगली में धारण करें.
घर में काला कुत्ता पालें.
7. अनंत कालसर्पयोग : -
उपाय : बहते पानी में नारियल बहाएं तथा पंचमी व्रत करें।
गेहूं, गुड़ और कासे को मंदिर में दान करें.
8. कुलिक कालसर्प योग : -
उपाय : चांदी के नाग की अंगूठी कनिष्ठिका में पहने
चांदी की ठोस गोली हमेशा अपनी जेब में रखें.
9. वासुकि कालसर्पयोग : -
उपाय : नित्य महामृत्युंजयमंत्र का जाप करें.
पक्षियों को दाना डालें
गुड़ वाले जल से सूर्य को अध्र्य दें.
10 शंखपाल कालसर्प योग : -
उपाय : शिवलिंग पर चांदी का सर्प चढ़ाएं,
धनिये को बहते जल में बहाएं
चांदी धारण करें
11. पद्म कालसर्प योग : -
उपाय : शयन कक्ष में मोर पंख रखें
ताम्बे का सिक्का जेब में रखें.
साबुत मूंग पानी में बहाएं
12. महापद्म कालसर्प योग : -
उपाय : राहु यंत्र की पूजा करें
बहते जल में नारियल को बहाएं
ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे,०९८२७१९८८२८, भिलाई,दुर्ग,(छ.ग.)
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