हिन्दूओं के अलावा मुश्लिमों के भी हैं आराध्य शनिदेव
ज्योतिषाचार्य पं.विनोद चौबे 09827198828, भिलाई
पुराणों में जहां शनि को सूर्यपूत्र, छायात्मज, नील, असित तथा मन्दगति आदि अनेकानेक नामों से सम्बोधित किया गया है. ज्योतिष शास्त्रीय ग्रन्थों में क्रूर तथा मन्द रूप में वर्णित किया गया है. उसे मकर राशि एवं पुष्य नक्षत्र का स्वामी भी कहा गया है. परन्तु जैसा कि पौराणिक साहित्य के अध्ययन से ज्ञान होता है. शनि दयालु, सौम्य, कृष्णभक्त व शिवशिष्य के रूप में भी जाने तथा माने जाते हैं. जनकल्याण की दृष्टि से भी शनि के माध्यम से अनेक कार्य पौराणिक ग्रन्थों में वर्णित है. महाराज दशरथ ने उन्हें स्वतराज स्त्रोत्र से प्रसन्न कर रोहिणी सकट भेदन करने से रोका था।
यद्यपि पौराणिक वांगमय में शनि देव को मृत्युलोक का प्रत्यक्ष दण्डाधिकारी माना गया है. तथापित प्राय: वे उन्ही लोगों को दण्डित करते है जो पाप या दुष्कर्म में संलग्न रहते हैं. जो लोग अच्छे कर्म करते हैं. जो लोग सत्कर्म करते है जो लोग सत्कर्म में लगे रहते हैं. उन्हें साढ़े साती में भी लाभ- ही-लाभ है. शनि कोप से बचने के लिये भी पश्चाताप और प्रायश्चित विधान में दान-पुण्य, दीन दु:खियों तथा अपंगो की सेवा और सहायता आदि की चर्चा है,ऐसा करने पर शनि की साढ़ेसाती भी अपनी मारक दशा से प्रभावित को मुक्त कर सकती है. धर्मात्मा तथा पुण्यात्मा को उससे कत्तई डरने की आवश्यकता नहीं है।
भविष्य पुराण में वर्णित 25 श्लोकों के शनैश्चरस्तव राज स्तोत्र में धर्मराज युधिष्ठिर ने शनि की अनेक विशेषताओं का वर्णन है. शनि की अनेक धनात्मक विशेषताओं को व्यक्त करने वाले श्लोक भी इसमें सम्मिलित है. जहां उन्हें घोर, भयद, दुर्निरीक्ष्यो, विभीषण: कालदृष्टि, कराली, क्रूरमर्मविधाताओं तथा यम जैसे घातक रूपों में चित्रित किया गया है. वही उन्हें ग्रहराज, राज्येश, राज्यदायक, धनप्रद, ग्रहेश्वर, सर्वरोगहर, स्थिरासन तथा कामद: जैसे सुखद सम्बोधनों से भी सम्बोधित किया गया है. देवर्षि नारद ने इस स्तोत्र का फल बताते हुए कहा है-
रक्षामेतां पठेन्नित्यं सौरेनभिबलैर्युताम्।
सुखी पुत्री चिरायुश्च स भवेन्नात्र संशय:।।
विष्णुर्हरा गणपति: कुमारो काम ईश्वर:।
कर्ता हर्ता पालयिता राज्येशो राज्यदायक:।।
तुष्टो रुष्ट: कामरूप: कामदो रविनन्दन:।
ग्रहपीडाहर: शान्तो नक्षत्रेशो ग्रहेश्वर:।।
इसी प्रकार ब्रह्मण्डपुराण के महाराजदशरथकृत शनैश्चर स्तोत्र शनिदेव की अनेक विशेषताओं का उल्लेख है । शनि के दस प्रचलित नामों के साथ स्तुति की गयी है. शनैेश्चरकृत पीड़ा विनिर्मुक्ति इस स्तुति का फल है. ब्राह्मण्डपुराण में ही ब्रह्मा नारद संवाद में शनि पर व्यापक विवरण प्राप्त होता है.उन्हें चतुर्भुज, प्रसन्न, वरद:, प्रशान्त:, वैवस्वत:, भास्कर, स्निग्धकष्ट , महाभुज, शुभप्रद, ग्रहपति, पिप्पल तथा सुर्यनन्द आदि नामों से स्मरण किया गया है. कुछ लोगों की ऐसी भी मान्यता है कि कुछ पुराणों की रचना 1500 ई. के आसपास हुई। यवनों अथवा मुसलमानों का भी उनमें उल्लेख मिलता है. अकबर के संरक्षक तथा महान भारत विद्या प्रेमी अब्दुर्रहीम-खाने -खानान् (अर्थात कवि रहीम) का स्मरण भी इस अवसर पर आ जाता है. ग्रह नक्षत्रों पर उनके ग्रन्थ खेटकोतुकम का अवलोकन इस सन्दर्भ में कुछ जानकारी अवश्य देता है. वे लिखते हैं.
यदा मुश्तरी केन्द्रखाने त्रिकोणे यदा वक्तखाने रिपौआफताब:।
अतरिद्वलग्ने नरो वख्तपूर्णस्तदा दीनदाराह्यथवा बादशाह:।।
अर्थात-जिसके जन्मकाल में बृहस्पति केन्द्र में अथवा त्रिकोण में और सूर्य छठे घर में और बुध लग्न मे, हो तो वह मनु ष्य अपने समय का महान व्यक्ति या राजा बनेगा। करीब 12 श्लोकों में उन्होंने शनिफलम भी लिखा है. एक और उदाहरण : -
बख्तबुलन्द: श्रीमान शीरीसखुनश्च मानवो यदि वै।
जुहली बख्तमकाने बेतालश्च हि कृपालुरपि भवति।।
और अन्त में प्रणाम करना चाहिए शनिदेव को, भगवान वेदव्यास रचित नवग्रहस्तोत्रं के इस श्लोक से
नीलाञ्जन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्।
छायामार्तण्डसम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम्।।
-ज्योतिषाचार्य पं.विनोद चौबे 09827198828, भिलाई
ज्योतिषाचार्य पं.विनोद चौबे 09827198828, भिलाई
पुराणों में जहां शनि को सूर्यपूत्र, छायात्मज, नील, असित तथा मन्दगति आदि अनेकानेक नामों से सम्बोधित किया गया है. ज्योतिष शास्त्रीय ग्रन्थों में क्रूर तथा मन्द रूप में वर्णित किया गया है. उसे मकर राशि एवं पुष्य नक्षत्र का स्वामी भी कहा गया है. परन्तु जैसा कि पौराणिक साहित्य के अध्ययन से ज्ञान होता है. शनि दयालु, सौम्य, कृष्णभक्त व शिवशिष्य के रूप में भी जाने तथा माने जाते हैं. जनकल्याण की दृष्टि से भी शनि के माध्यम से अनेक कार्य पौराणिक ग्रन्थों में वर्णित है. महाराज दशरथ ने उन्हें स्वतराज स्त्रोत्र से प्रसन्न कर रोहिणी सकट भेदन करने से रोका था।
यद्यपि पौराणिक वांगमय में शनि देव को मृत्युलोक का प्रत्यक्ष दण्डाधिकारी माना गया है. तथापित प्राय: वे उन्ही लोगों को दण्डित करते है जो पाप या दुष्कर्म में संलग्न रहते हैं. जो लोग अच्छे कर्म करते हैं. जो लोग सत्कर्म करते है जो लोग सत्कर्म में लगे रहते हैं. उन्हें साढ़े साती में भी लाभ- ही-लाभ है. शनि कोप से बचने के लिये भी पश्चाताप और प्रायश्चित विधान में दान-पुण्य, दीन दु:खियों तथा अपंगो की सेवा और सहायता आदि की चर्चा है,ऐसा करने पर शनि की साढ़ेसाती भी अपनी मारक दशा से प्रभावित को मुक्त कर सकती है. धर्मात्मा तथा पुण्यात्मा को उससे कत्तई डरने की आवश्यकता नहीं है।
भविष्य पुराण में वर्णित 25 श्लोकों के शनैश्चरस्तव राज स्तोत्र में धर्मराज युधिष्ठिर ने शनि की अनेक विशेषताओं का वर्णन है. शनि की अनेक धनात्मक विशेषताओं को व्यक्त करने वाले श्लोक भी इसमें सम्मिलित है. जहां उन्हें घोर, भयद, दुर्निरीक्ष्यो, विभीषण: कालदृष्टि, कराली, क्रूरमर्मविधाताओं तथा यम जैसे घातक रूपों में चित्रित किया गया है. वही उन्हें ग्रहराज, राज्येश, राज्यदायक, धनप्रद, ग्रहेश्वर, सर्वरोगहर, स्थिरासन तथा कामद: जैसे सुखद सम्बोधनों से भी सम्बोधित किया गया है. देवर्षि नारद ने इस स्तोत्र का फल बताते हुए कहा है-
रक्षामेतां पठेन्नित्यं सौरेनभिबलैर्युताम्।
सुखी पुत्री चिरायुश्च स भवेन्नात्र संशय:।।
विष्णुर्हरा गणपति: कुमारो काम ईश्वर:।
कर्ता हर्ता पालयिता राज्येशो राज्यदायक:।।
तुष्टो रुष्ट: कामरूप: कामदो रविनन्दन:।
ग्रहपीडाहर: शान्तो नक्षत्रेशो ग्रहेश्वर:।।
इसी प्रकार ब्रह्मण्डपुराण के महाराजदशरथकृत शनैश्चर स्तोत्र शनिदेव की अनेक विशेषताओं का उल्लेख है । शनि के दस प्रचलित नामों के साथ स्तुति की गयी है. शनैेश्चरकृत पीड़ा विनिर्मुक्ति इस स्तुति का फल है. ब्राह्मण्डपुराण में ही ब्रह्मा नारद संवाद में शनि पर व्यापक विवरण प्राप्त होता है.उन्हें चतुर्भुज, प्रसन्न, वरद:, प्रशान्त:, वैवस्वत:, भास्कर, स्निग्धकष्ट , महाभुज, शुभप्रद, ग्रहपति, पिप्पल तथा सुर्यनन्द आदि नामों से स्मरण किया गया है. कुछ लोगों की ऐसी भी मान्यता है कि कुछ पुराणों की रचना 1500 ई. के आसपास हुई। यवनों अथवा मुसलमानों का भी उनमें उल्लेख मिलता है. अकबर के संरक्षक तथा महान भारत विद्या प्रेमी अब्दुर्रहीम-खाने -खानान् (अर्थात कवि रहीम) का स्मरण भी इस अवसर पर आ जाता है. ग्रह नक्षत्रों पर उनके ग्रन्थ खेटकोतुकम का अवलोकन इस सन्दर्भ में कुछ जानकारी अवश्य देता है. वे लिखते हैं.
यदा मुश्तरी केन्द्रखाने त्रिकोणे यदा वक्तखाने रिपौआफताब:।
अतरिद्वलग्ने नरो वख्तपूर्णस्तदा दीनदाराह्यथवा बादशाह:।।
अर्थात-जिसके जन्मकाल में बृहस्पति केन्द्र में अथवा त्रिकोण में और सूर्य छठे घर में और बुध लग्न मे, हो तो वह मनु ष्य अपने समय का महान व्यक्ति या राजा बनेगा। करीब 12 श्लोकों में उन्होंने शनिफलम भी लिखा है. एक और उदाहरण : -
बख्तबुलन्द: श्रीमान शीरीसखुनश्च मानवो यदि वै।
जुहली बख्तमकाने बेतालश्च हि कृपालुरपि भवति।।
और अन्त में प्रणाम करना चाहिए शनिदेव को, भगवान वेदव्यास रचित नवग्रहस्तोत्रं के इस श्लोक से
नीलाञ्जन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्।
छायामार्तण्डसम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम्।।
-ज्योतिषाचार्य पं.विनोद चौबे 09827198828, भिलाई
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