मानस में संस्कृति की आकृति भी उकेरे हैं गोस्वामी तुलसीदास जी...
भारत की विविधवर्णा संस्कृति के अमर गायक तुलसी की अमर कृति 'श्री रामचरित मानस' को लोक ग्रन्थ की संज्ञा अनायास मिल गयी। तुलसी के राम लोक-नायक हैं। तभी तो मर्यादा पुरुषोत्तम हैं। लेकिन विष्णु के वर्णित अवतार 'राम' के प्रति श्रद्धा ने रामचरित मानस को लोगों के सम्मान का पात्र बनाया। यह एक धर्म ग्रन्थ हो गया। तुलसी के जीवन के करील अनुभव ने नीति के तत्व से इसे विभूषित किया। विभिन्न सामाजिक मुद्दों पर नीत...िगत दोहे और चौपाइयां प्रमाण में प्रस्तुत होने लगीं। काव्य-शास्त्रियों ने 'यमक-श्लेष-अनुप्रास-उपमा-उपमेय' पर विचार किया। कुछेक साहित्यालोचकों की दृष्टि 'सुघर प्रकृति चित्रण' पर भी गयी। किन्तु जिस संस्कार में इस ग्रन्थ का
तुलसी की 'रामचरित मानस' का एक-एक शब्द संस्कृति का एक-एक अध्याय है। 'धरती सौं कागद और लेखनी सौं वनराई' करके भी भी इसकी पर्याप्त विवेचना नहीं की जा सकती। फिर भी आईये देखते हैं, "रामचरित मानस में लोक-संस्कृति की झलक।"
गोस्वामीजी रामचरित मानस का श्रीगणेश ही करते हैं आंचलिक कहावत 'अपने दही को खट्टा कौन कहता है' से। 'निज कवित्त केहि लाग न नीका। सरस होऊ अथवा अति फीका॥'
-- बालकाण्ड | दोहा-7| चौपाई-6
रामचरित मानस में लोक-संस्कृति की 'जंह-तंह छवि' सुवर्णित है। प्रश्न यह है कि शुरू कहाँ से करें ? मेरी क्षुद्र-मति आकर ठहरती है, 'शिव-सती संवाद' पर।
सती के पिता दक्ष प्रजापति महायज्ञ कर रहे हैं। सभी देव, नर, नाग, किन्नर आमंत्रित हैं, सिवाए महादेव के। सती अपने पति से पिता-गृह जाने की दिक् करती है। महादेव सती से कहते हैं, "तुम्हारा प्रस्ताव कोई बुरा नहीं है। मुझे पसंद भी है। लेकिन ससुराल से निमंत्रण नहीं आना तो अनुचित है। तुम्हारे पिता ने अपनी सभी बेटियों को बुलाया और मुझ से बैरवश तुम्हे भी बिसरा दिया। अनामंत्रित हम वहाँ कैसे जाएँ ?
'कहेहुँ नीक मोरे मन भावा। यह अनुचित नहि नेवत पठावा॥
दच्छ सकल निज सुता बोलाईं। हमरे बैर तुम्हाउन बिसराईं॥'
बालकाण्ड | दोहा-61| चौपाई - 1
भारत की विविधवर्णा संस्कृति के अमर गायक तुलसी की अमर कृति 'श्री रामचरित मानस' को लोक ग्रन्थ की संज्ञा अनायास मिल गयी। तुलसी के राम लोक-नायक हैं। तभी तो मर्यादा पुरुषोत्तम हैं। लेकिन विष्णु के वर्णित अवतार 'राम' के प्रति श्रद्धा ने रामचरित मानस को लोगों के सम्मान का पात्र बनाया। यह एक धर्म ग्रन्थ हो गया। तुलसी के जीवन के करील अनुभव ने नीति के तत्व से इसे विभूषित किया। विभिन्न सामाजिक मुद्दों पर नीत...िगत दोहे और चौपाइयां प्रमाण में प्रस्तुत होने लगीं। काव्य-शास्त्रियों ने 'यमक-श्लेष-अनुप्रास-उपमा-उपमेय' पर विचार किया। कुछेक साहित्यालोचकों की दृष्टि 'सुघर प्रकृति चित्रण' पर भी गयी। किन्तु जिस संस्कार में इस ग्रन्थ का
तुलसी की 'रामचरित मानस' का एक-एक शब्द संस्कृति का एक-एक अध्याय है। 'धरती सौं कागद और लेखनी सौं वनराई' करके भी भी इसकी पर्याप्त विवेचना नहीं की जा सकती। फिर भी आईये देखते हैं, "रामचरित मानस में लोक-संस्कृति की झलक।"
गोस्वामीजी रामचरित मानस का श्रीगणेश ही करते हैं आंचलिक कहावत 'अपने दही को खट्टा कौन कहता है' से। 'निज कवित्त केहि लाग न नीका। सरस होऊ अथवा अति फीका॥'
-- बालकाण्ड | दोहा-7| चौपाई-6
रामचरित मानस में लोक-संस्कृति की 'जंह-तंह छवि' सुवर्णित है। प्रश्न यह है कि शुरू कहाँ से करें ? मेरी क्षुद्र-मति आकर ठहरती है, 'शिव-सती संवाद' पर।
सती के पिता दक्ष प्रजापति महायज्ञ कर रहे हैं। सभी देव, नर, नाग, किन्नर आमंत्रित हैं, सिवाए महादेव के। सती अपने पति से पिता-गृह जाने की दिक् करती है। महादेव सती से कहते हैं, "तुम्हारा प्रस्ताव कोई बुरा नहीं है। मुझे पसंद भी है। लेकिन ससुराल से निमंत्रण नहीं आना तो अनुचित है। तुम्हारे पिता ने अपनी सभी बेटियों को बुलाया और मुझ से बैरवश तुम्हे भी बिसरा दिया। अनामंत्रित हम वहाँ कैसे जाएँ ?
'कहेहुँ नीक मोरे मन भावा। यह अनुचित नहि नेवत पठावा॥
दच्छ सकल निज सुता बोलाईं। हमरे बैर तुम्हाउन बिसराईं॥'
बालकाण्ड | दोहा-61| चौपाई - 1
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