ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे

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मंगलवार, 5 मार्च 2013

मेरा जीवन, मेरी जि़म्मेदारी.. (अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस) - डॉ0 मोना माखीजा


मेरा जीवन, मेरी जि़म्मेदारी.. (अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस)  - डॉ0 मोना माखीजा 


अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस हर वर्ष 8 मार्च को विश्वभर में मनाया जाता है। इस दिन सम्पूर्ण विश्व की महिलाएँ देशए जात.पातए भाषाए राजनीतिकए सांस्कृतिक भेदभाव से परे एकजुट होकर इस दिन को मनाती हैं। महिला दिवस पर स्त्री की प्रेमए स्नेह व मातृत्व के साथ ही शक्तिसंपन्न स्त्री की मूर्ति सामने आती है। इक्कीसवीं सदी की स्त्री ने स्वयं की शक्ति को पहचान लिया है और काफ़ी हद तक अपने अधिकारों के लिए लडऩा सीख लिया है। आज के समय में स्त्रियों ने सिद्ध किया है कि वे एक.दूसरे की दुश्मन नहींए सहयोगी हैं।

डॉ0 मोना माखीजा 


    नारी तुम केवल श्रद्धा होए विश्वास रजत नग पग तल में।

    पीयूष स्रोत सी बहा करोए जीवन के सुंदर समतल में।।
                                                                    
अंतर्राश्ट्रीय महिला दिवस पर आप सभी को बधाई! मैं इस दिवस पर महिलाओं के मानसिक-स्वास्थ्य की बात करना चाहती हूं। आइये नजर डाले मानसिक-स्वास्थ्य सम्बंधी षोध परिणामों पर.........


  • - न्यूरोटिसिज़म यानी नकारात्मक भावों का ज्यादा अनुभव करने की प्रवृति, पुरूशों की तुलना में महिलाओं में लगभग दुगनी होती है। इसी वजह से महिलाएं ज्यादा तनाव में रहती हैं, गुस्सा, चिंता, अपराध भाव इत्यादि को महिलाएं ज्यादा अनुभव करती हैं।

  •  इटिंग डिसआर्डर यानी बहुत अधिक या बहुत कम खाने सम्बंधी मनोरोग मुख्यतः किषोर अवस्था की लड़कियों में ही पाया जाता है।
  • - वल्र्ड हेल्थ आर्गेंनाइजेषन के ताजा सर्वे के अनुसार भारत में मेजर डिपर्रेषन और चिंता विकृति (हर समय चिंतित रहना) जैसे गंभीर मनोरोग पुरूशों की अपेक्षा महिलाओं में 50 प्रतिषत अधिक होते हैं।
  • - सोषल फोबिया या अन्य विषिश्ट फोबिया, जैसे उंची जगह या अंधेरे से डर के मामलों में यदि पुरूशों की संख्या तीन या चार है, तो महिलाओं की संख्या आठ है।
  • - डबलू0एच0ओ0 द्वारा 15 देषों में सर्वे कराया गया और प्राप्त परिणाम हैरान करने वाले थे। प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों में मनावैज्ञानिक समस्याओं के लिए पंजीकृत संख्या, पुरूशों की तुलना में महिलाओं की दुगनी थी।
'' क्या वजह है कि डिप्रेषन, तनाव, चिंता, फोबिया जैसी तकलीफदेह मानसिक विकृतियों पर महिलाओं का एकाधिकार होता चला जा रहा है्? उस पर हद तो यह है कि इन रोगों के इलाज के बाद लक्षणों की पुनरावृति का प्रतिषत भी पुरूशों की अपेक्षा मे महिलाओं में अधिक है।''

सामाजिक, पारिवारिक, षारीरिक कारण तो गिने भी जा सकते हैं ओैर सूचीबद्व भी किए जा सकते हैं, परंतु महिलाओं के बिगड़ते मानसिक स्वास्थ्य के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार कारण है- महिलाओं का खुद का थाट पैर्टन यानी, सोचने का तरीका और सिच्युवेषन प्रोसेसिंग यानी परिस्थिति के मूल्यांकन का तरीका।

डाॅ0 निकोलस के अनुसार पुरूश व महिला दोनों ही खुष होने वाली बात पर समान तीव्रता से खुष होते हैं, किंतु दुखी होने वाली बात पर महिला अधिक तीव्रता से दुखी होती है। क्योंकि किसी भी दुर्घटना के बाद पुरूश समस्या के समाधान की बात सोचने लगता है, जबकि महिला उस समय में अपने दुख के संवेग को बार-बार दोहराना पसंद करती है।
एक प्राचीन सिद्वांत के अनुसार मस्तिश्क का बांया भाग बुद्धि के लिए तथा दाहिना भाग भावनाओं के लिए उपयोग किया जाता है। महिला एवं पुरूश मस्तिश्क की बनावट एक सी होती है, मजे बात की यह है कि पुरूश बाएं भाग का और स्त्री दाहिने भाग का इस्तेमाल ज्यादा करती है, तो सवाल षारीरिकी का नहीं बल्कि उसके उपयोग के चुनाव का है।
मै सभी बहनों का ध्यान इस ओर आकर्शित करना चाहती हूं कि कुछ ऐसे उपाय हैं, जिन्हे अपनाकर अपने मानसिक स्वास्थ्य को संतुलित रखा जा सकता है।

  •   सेल्फ अवेयरनेस- प्रत्येक एक-दो घंटे में एक मिनट के लिए रूककर ध्यान दें कि मैं क्या सोच रही हूं? कैसा महसूस कर रही हूं? मेरी सोच किसी रचनात्मक दिषा में जा रही है या यूं हीं दुख एवं निराषा का भाव अभी मुझ पर हावी है।
  •  एक विचार का दूसरे विचार से रिप्लेस- एडवर्ड डी बोनो कहते हैं ‘सोचना एक संुदर कला है, जिसे हम सीख सकते हैं।‘ जब आपको पता चल जाए तो आप कुछ बुरा सोचकर लगातार दुखी हो रहे हैं, तुरंत ही दूसरा विचार दिमाग में लाएं। यकीन मानिए ये सम्भव है और कारगर भी।
  • चक्रव्यूह का भेदन- रिपिटिटिव थाट्स, यानी बार-बार बुरा सोचकर बुरा महसूस करना, किसी चक्रव्यूह की तरह होता है, जिसमें हम घुसते चले जाते हैं। इसे भेदने का एक ही उपाय है, दिमाग को किसी दूसरे काम में लगाएं, जो बुद्धि से सम्बंधित हो। इसे करके देखें, रोना, उदास होना, तनाव में आना सब अचानक रूक जाएगा।
  •   प्राणायाम, ध्यान अति आवष्यक- हमारे मस्तिश्क में लगातार तरंगे बनती रहती हैं। प्राणायाम और ध्यान से आप स्वयं ही अपने मस्तिश्क में वैसी तरंगे पैदा कर लेंगी जो विपरीत परिस्थिति में भी संतुलित रहने में मदद करती हैं।
  •  मेरा जीवन, मेरी जिम्मेदारी- सबसे महत्वपूर्ण विचार है कि चाहे कैसी भी परिस्थिति हो, उस पर प्रतिक्रिया कैसी देनी है, ये तो मेरे हाथ में है। अगर आपकी प्रतिक्रिया, आपको दुखी करती है तो किसी दूसरी प्रतिक्रिया के बारे में सोचें, जो भावना से नहीं बल्कि बुद्धि से निर्देषित हो।
''जरा सोचिए, आज की युवा महिला, पुरूशों से षिक्षा में बराबरी कर रही है, उपलब्धियों मे बराबरी कर रही है, आर्थिक सम्पन्नता में बराबरी कर रही है, जिम्मेदारी उठाने में बराबरी कर रही है, फिर सोचने के तरीके में बराबरी की बात क्यों नही सोचती? अंर्तराश्ट्रीय महिला दिवस इस संुदर दिवस पर आइए संकल्प करें, इस वर्श भावनाओं से नहीं, तर्क से ज्यादा सोचंेगे।''

-डा0 मोना माखीजा,  (मनोवैज्ञानिक सलाहकार)


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