पार्वण श्राद्ध (पिण्डदान) की एक झलक..
आज पितृपक्ष का अष्टमी तिथि थी। इसी तिथि को हमारी माता स्व.श्रीमती माया देवी (9जनवरी 1998) एवं पिता स्व.श्री रामजी चौबे जी का (05जनवरी2013) को स्वर्गवास हुआ था। अतः आज अपने माता-पिता एवं पितामह, प्रपितामह (सपत्निकस्य) साथ में द्वितीय कुल मातामह, प्रमातामह, वृद्धप्रमातामह (सपत्निकस्य) को याद करते हुए अपराह्न काल में पार्वण श्राद्ध के अन्तर्गत जो करते बना शास्त्र सम्मत हमने पिष्डदानादि कार्य किया। मुझे विश्वास है कि भारतीय संस्कृति में पला-बढ़ा हर पुत्र यह पुनीत कार्य अवश्य करेगा।
हर युवा पीढ़ी..अपने आदरणीय पितरों को इस 16 दिवसीय पितृ-महायज्ञ में याद अवश्य करेगा। साथ ही मैं चलते-चलते यह भी बताना चाहूंगा कि जीतेजी माता-पिता की जो सेवा सुश्रुसा नहीं किया उस पुत्र को पिण्डदान देने मात्र से पितृ-दोष से मुक्ति नहीं मिलने वाला। अतः आप सभी चाहें किसी भी धर्म व सम्प्रदाय को मानने वाले हों आप लोग अपने माता-पिता का कत्तई अनादर न करें..यही वास्तवीक पितृ-यज्ञ है और पितृ-दोष से मुक्ति का उपाय भी।
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