श्रावण मास में प्रतिदिन भगवान आशुतोष अर्थात् भगवान भोलेनाथ की उपासना का विधान पुराणों द्वारा बतलाया गया है। देवों के देव महादेव भगवान भोलेनाथ को श्रावण अत्यंत प्रिय है। इसी कारण इस महीने में चन्द्रशेखर भगवान श्री शिव की पूजा-अर्चना विशेष महत्व रखती है। जो कोई भी व्यक्ति किसी कारण वश प्रतिदिन श्रावण मास में पूजा नहीं कर सकता, उसे व समस्त शिव भक्तों को श्रावण के प्रत्येक सोमवार को पूजा व व्रत अवश्य करना चाहिए।
वैसे भी सोमवार का दिन भगवान शंकर को अति प्रिय है और यही दिन शिव शंभू के मस्तक पर स्थान पाने वाले चन्द्र देव का भी माना जाता है। अत: सोमवार को शिव आराधना एवं उपासना अवश्य करनी चाहिए। इस माह में श्री शिव के पार्थिव अर्थात् शुद्ध मिट्टी द्वारा निर्मित पिण्ड़ी अथवा शिवलिंग के पूजन की अत्यंत महिमा बतलाई गई है।
शिवलिंग में शिव-पार्वती व श्रीगणेश का निवास माना जाता है। अत: एक शिवलिंग के पूजन मात्र से सम्पूर्ण शिव परिवार की प्रसन्नता प्राप्त होती है। महाकवि कालिदास ने शिव तत्व के आठ भेद बतलाए हैं- जल, अग्नि, वायु, ध्वनि, सूर्य, चंद्र, पृथ्वी व पर्वत। इन्हीं आठों का सम्मिश्रण प्रत्येक शिवलिंग में विद्यमान रहता है। अर्थात् एक शिवलिंग पूजन एवं उपासना से प्रकृति के सभी अष्ट रूपों का पूजन स्वत: ही हो जाता है।
श्रावण मास में प्रतिदिन अथवा सोमवार को रुद्र पाठ का विशेष महत्व है। व्यक्ति को समयानुसार लघु रुद्र, महारुद्र या अतिरुद्र का पाठ अवश्य करना चाहिए। श्रावण के प्रत्यके सोमवार को शिव व्रत रखने से दुर्लभतम लक्ष्य साधना में सफलता प्राप्त होती है। व्रती पुरुष एवं स्त्री को श्रावण के प्रत्येक सोमवार को प्रात: ब्रह्म मुहूर्त में उठ कर गंगा अथवा किसी भी पवित्र नदी या सरोवर में स्नान करना चाहिए। ऐसा न होने की स्थिति में घर पर ही नहाते समय गंगा सहित सभी पवित्र नदियों का स्मरण करना चाहिए। ऐसा करने से भी गंगा स्नान का अर्द्ध फल तो प्राप्त हो ही जाता है।
तत्पश्चात् किसी ऐसे मंदिर में जाकर जहां स्थापित शिवलिंग हो अन्यथा घर ही में शुद्ध चिकनी मिट्टी द्वारा ‘ऊं भवाय नम:’ से पार्थिव शिवलिंग का निर्माण करें, ‘ऊं रुद्राय नम:’ से प्रतिष्ठा करें, ‘ऊं नीलकंठाय नम:’ से आह्वान करें, ‘ऊं शशिमौलिनै नम:’ से स्नान कराएं। यदि संभव हो तो किसी विद्वान ब्राह्मण द्वारा रुद्राभिषेक कराना भी उत्तम होता है। रुद्राभिषेक के अभाव में पंचामृत (दूध, दही, घृत, शहद और बूरे का मिश्रण) से स्नान करना कर गंगाजल अर्पित करना चाहिए। स्नान के समय श्रीरुद्राष्टकम अथवा शिवतांडवस्तोत्रम का पाठ शिव को अत्यंत प्रसन्नता प्रदान करता है।
स्नान उपरांत ‘ऊं भीमाय नम:’ से चंदन का तिलक लगा कर बेलपत्र, शमीपत्र, धतूरा, धूप, दीप, नैवेद्य व पुष्प अर्पित करें। भांग का गोला अथवा भांग का शर्बत भोलेनाथ को अत्यंत प्रिय है। पूजन पश्चात् रुद्राक्ष के 108 मोतियों माला से ‘ऊं नम: शिवाय्’ अथवा श्री महामृत्युंजय मंत्र का जाप अत्यंत फलदायक होता है। पूजन एवं जाप पश्चात् अन्त में शिवलिंग की आठ प्रदक्षिण एवं आठ दंडवत प्रणाम परम आवश्यक माने गए हैं।
श्रावण के सोमवार को संध्याकाल में श्री शिवमहापुराण की कथा सुनने का विशेष महत्व है। षोडशोपचार विधि द्वारा शिव आराधना एवं पूजन के पश्चात् ब्राह्मण को भोजन करा यथायोग्य दक्षिणा दे विदा करना चाहिए तथा उसके उपरान्त स्वयं भी फलाहार करना चाहिए। इस व्रत में केवल एक ही बार भोजन का विधान है। रात्रि को संभव हो तो भूमि पर कुशा की चटाई आदि बिछाकर शयन करना चाहिए। घर में बनाए हुए पार्थिव शिवलिंग को ब्राह्मण भोजन पश्चात् किसी पवित्र नदी, सरोवर अथवा कूंए में ‘ऊं ईशानाय नम:’ अथवा ‘ऊं महादेवाय नम:’ से विसर्जित कर देना चाहिए। विसर्जन के समय मौन धारण करना चाहिए। अन्त में अपने द्वारा हुए हर अपराध एवं भूलचूक की क्षमा अवश्य मांगनी चाहिए।
विधिविधान एवं पवित्र तन-मन से किए इन श्रावण सोमवार व्रतों से व्रती पुरुष का दुर्भाग्य भी सौभाग्य में परिवर्तित हो जाता है व उक्त व्यक्ति अपने सम्पूर्ण कुटुंब सहित शिवलोक को प्राप्त होता है। यह व्रत मनो:वांछित धन, धान्य, स्त्री, पुत्र, बंधु-बांधव एवं स्थाई संपत्ति प्रदान करने वाला है। श्रावण सोमवार व्रत से भोलेनाथ की कृपा व अभीष्ट सिद्धि-बुद्धि की प्राप्ति होती है
वैसे भी सोमवार का दिन भगवान शंकर को अति प्रिय है और यही दिन शिव शंभू के मस्तक पर स्थान पाने वाले चन्द्र देव का भी माना जाता है। अत: सोमवार को शिव आराधना एवं उपासना अवश्य करनी चाहिए। इस माह में श्री शिव के पार्थिव अर्थात् शुद्ध मिट्टी द्वारा निर्मित पिण्ड़ी अथवा शिवलिंग के पूजन की अत्यंत महिमा बतलाई गई है।
शिवलिंग में शिव-पार्वती व श्रीगणेश का निवास माना जाता है। अत: एक शिवलिंग के पूजन मात्र से सम्पूर्ण शिव परिवार की प्रसन्नता प्राप्त होती है। महाकवि कालिदास ने शिव तत्व के आठ भेद बतलाए हैं- जल, अग्नि, वायु, ध्वनि, सूर्य, चंद्र, पृथ्वी व पर्वत। इन्हीं आठों का सम्मिश्रण प्रत्येक शिवलिंग में विद्यमान रहता है। अर्थात् एक शिवलिंग पूजन एवं उपासना से प्रकृति के सभी अष्ट रूपों का पूजन स्वत: ही हो जाता है।
श्रावण मास में प्रतिदिन अथवा सोमवार को रुद्र पाठ का विशेष महत्व है। व्यक्ति को समयानुसार लघु रुद्र, महारुद्र या अतिरुद्र का पाठ अवश्य करना चाहिए। श्रावण के प्रत्यके सोमवार को शिव व्रत रखने से दुर्लभतम लक्ष्य साधना में सफलता प्राप्त होती है। व्रती पुरुष एवं स्त्री को श्रावण के प्रत्येक सोमवार को प्रात: ब्रह्म मुहूर्त में उठ कर गंगा अथवा किसी भी पवित्र नदी या सरोवर में स्नान करना चाहिए। ऐसा न होने की स्थिति में घर पर ही नहाते समय गंगा सहित सभी पवित्र नदियों का स्मरण करना चाहिए। ऐसा करने से भी गंगा स्नान का अर्द्ध फल तो प्राप्त हो ही जाता है।
तत्पश्चात् किसी ऐसे मंदिर में जाकर जहां स्थापित शिवलिंग हो अन्यथा घर ही में शुद्ध चिकनी मिट्टी द्वारा ‘ऊं भवाय नम:’ से पार्थिव शिवलिंग का निर्माण करें, ‘ऊं रुद्राय नम:’ से प्रतिष्ठा करें, ‘ऊं नीलकंठाय नम:’ से आह्वान करें, ‘ऊं शशिमौलिनै नम:’ से स्नान कराएं। यदि संभव हो तो किसी विद्वान ब्राह्मण द्वारा रुद्राभिषेक कराना भी उत्तम होता है। रुद्राभिषेक के अभाव में पंचामृत (दूध, दही, घृत, शहद और बूरे का मिश्रण) से स्नान करना कर गंगाजल अर्पित करना चाहिए। स्नान के समय श्रीरुद्राष्टकम अथवा शिवतांडवस्तोत्रम का पाठ शिव को अत्यंत प्रसन्नता प्रदान करता है।
स्नान उपरांत ‘ऊं भीमाय नम:’ से चंदन का तिलक लगा कर बेलपत्र, शमीपत्र, धतूरा, धूप, दीप, नैवेद्य व पुष्प अर्पित करें। भांग का गोला अथवा भांग का शर्बत भोलेनाथ को अत्यंत प्रिय है। पूजन पश्चात् रुद्राक्ष के 108 मोतियों माला से ‘ऊं नम: शिवाय्’ अथवा श्री महामृत्युंजय मंत्र का जाप अत्यंत फलदायक होता है। पूजन एवं जाप पश्चात् अन्त में शिवलिंग की आठ प्रदक्षिण एवं आठ दंडवत प्रणाम परम आवश्यक माने गए हैं।
श्रावण के सोमवार को संध्याकाल में श्री शिवमहापुराण की कथा सुनने का विशेष महत्व है। षोडशोपचार विधि द्वारा शिव आराधना एवं पूजन के पश्चात् ब्राह्मण को भोजन करा यथायोग्य दक्षिणा दे विदा करना चाहिए तथा उसके उपरान्त स्वयं भी फलाहार करना चाहिए। इस व्रत में केवल एक ही बार भोजन का विधान है। रात्रि को संभव हो तो भूमि पर कुशा की चटाई आदि बिछाकर शयन करना चाहिए। घर में बनाए हुए पार्थिव शिवलिंग को ब्राह्मण भोजन पश्चात् किसी पवित्र नदी, सरोवर अथवा कूंए में ‘ऊं ईशानाय नम:’ अथवा ‘ऊं महादेवाय नम:’ से विसर्जित कर देना चाहिए। विसर्जन के समय मौन धारण करना चाहिए। अन्त में अपने द्वारा हुए हर अपराध एवं भूलचूक की क्षमा अवश्य मांगनी चाहिए।
विधिविधान एवं पवित्र तन-मन से किए इन श्रावण सोमवार व्रतों से व्रती पुरुष का दुर्भाग्य भी सौभाग्य में परिवर्तित हो जाता है व उक्त व्यक्ति अपने सम्पूर्ण कुटुंब सहित शिवलोक को प्राप्त होता है। यह व्रत मनो:वांछित धन, धान्य, स्त्री, पुत्र, बंधु-बांधव एवं स्थाई संपत्ति प्रदान करने वाला है। श्रावण सोमवार व्रत से भोलेनाथ की कृपा व अभीष्ट सिद्धि-बुद्धि की प्राप्ति होती है
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