दीप पर्व पर लक्ष्मी पूजन के शुभ मुहूर्त
- ज्योतिषाचार्य पण्डित विनोद चौबे, शांतिनगर, भिलाई
शतपथ ब्राह्मण नामक ग्रंथ में लक्ष्मी जी प्राकट्य ब्रह्मा से बताया गया वहीं अन्य पुराणों में महामाया लक्ष्मी समुद्र से प्रकट हुईं बताया गया है। कार्तिक कृष्ण अमावस्या को सर्वप्रथम भगवान विष्णु ने प्रदोष काल में पूजन अर्चन किया था। उसके बाद अन्य सभी देवताओं द्वारा मां लक्ष्मी की अर्चना की गई, जो परम्परागत तौर पर आज भी दीपोत्सव के पावन पर्व पर अर्चन किया जाता है। आज के ही दिन ८४ दिवसीय लंका के युद्ध मे विजय प्राप्त कर अयोध्या आगमन हुआ था। प्रभु श्रीराम के स्वागत में पूरे अयोध्या वासी दीप जलाकर श्रीराम का स्वागत किये थे।
लक्ष्मी पूजन का शुभ मुहूर्त :
प्रदोष काल: सायंकाल 5:48 से 8 :22 तक
स्थिर लग्न:- (कुंभ) 1:55 से 3:26 तक दोपहर
स्थिर लग्न:- (वृषभ) 6:28 से 8:27 तक संध्याकाल
स्थिर लग्न:- (सिंह) अर्धरात्रि 12 : 59 से 3:26 तक
ज्योतिषाचार्य पण्डित विनोद चौबे जी के अननसार सर्वोत्तम मुहूर्त प्रदोष काल को माना जाता है। चौघिड़िया मुहूर्त के बजाय लग्न मुहूर्त अधिक फलदायक है।
लक्ष्मी के वाहन एवं पूजन विधान:
ब्रह्मवैवर्त पुराण में लक्ष्मी जी का उल्लू वाहन बताया गया है। वहीं लक्ष्मी स्तोत्रादि में गरूड़ वाहन तथा अन्य पुराणों में हस्ति वाहन बताया गया है। अत: अधिक महत्व "गरूड़ वाहन" ही है,अतएव सरस्वती, गणेश की प्रतिमा साथ में कुबेर तथा खाता बही के साथ साथ सिद्ध स्फटिक श्रीयंत्र को स्थापित कर घर के द्वार पर मंगल ऐपन, स्वास्तिक और शुभ-लाभ लिखकर विधीवत षोडसोपचार पूजन किया जाता है।
वर्जित काल एवं कार्य:
सायंकाल 4:14 मिनट से 5:38 तक राहुकाल है, इस समय सभी कार्य वर्जित है। इसके अतिरिक्त मिट्टी के दीपक ही जलाना चाहिये, ना कि मोमबत्ती और चायनीज झालर, हरा दूब आदि वर्जित है।
-ज्योतिषाचार्य पण्डित विनोद चौबे, रावण संहिता विशेषज्ञ एवं संपादक- "ज्योतिष का सूर्य" मासिक पत्रिका, शांतिनगर, भिलाई, जिला-दुर्ग (छ़.ग.)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें