मेरी डाय़री के पन्ने में सिमटती......"डायन"
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डायन वाली "खबर" आग की तरह पूरे देश में फैल गई, लोग कसमें खा कर कहते उन्होंने "डायन" को देखा है, उसके रोने-चीखने की आवाज सुनी है.......।
लोग मुझसे भी बता रहे थे.. ..."खिड़की की सलाखों से पंजे बढ़ाती है डायन भूख..! भूख...! चिल्लाती है....! खाना मांगती है....।"
मेरे साथ कई लोग विस्मय से आंखें फैला कर डायन का किस्सा सुनते।
"आश्चर्य....ऐसी घनी आबादी वाले इलाके में शहर के बीचो बीच डायन का होना क्या कोई मामूली बात थी। पहले तो सब ठीक था, अचानक यह घर भूत बंगला कैसे बन गया....ये सोच रहा था मैं भी।"
जितनी मुंह उतनी बातें। ऐसी हलचल मची कि मीडिया वालों की लाईन लग गई।
सबसे लोकप्रिय चैनल वालों ने डायन का लाइव टेलीकास्ट शुरू कर दिया।
लाखों दर्शक सांस रोक देख रहे थे।
घने अंधेरे को चीरते हुए कैमरा आगे बढ़ रहा था।
रिपोर्टर गहरी रहस्यमय आवाज में कह रहा था-क्या आज खत्म हो जायेगा डायन का खूनी खेल......
चर्रर्र..... की आवाज के साथ दरवाजा खुला।
भीतर से सिसकी की आवाज आ रही थी। लोगों के रोंगटे खड़े हो गए। सचमुच एक परछाई जो दिखी थी। अब की तस्वीर साफ थी। सचमुच डायन ही थी। बूढ़ा जर्जर शरीर, वीरान सी आंखें..., कमर पर झूलते चीथड़े गंदगी में लिपटा हुआ बदन..।
उसके खरखराते हुए गले से चीख निकली, लोग सहमे....। अब झपटी डायन खून पी लेगी रिपोर्टर का। पर डायन तो कांपती हुई उसके पैरों पर गिर कर रो पड़ी।
वो कह रही थी - "बेटा, बहू से कहना मैं कुछ नहीं बोलूंगी, कुत्ते की तरह तेरे दरवाजे पर पड़ी रहूंगी। कितने दिनों से तेरी राह देख रही हूं। जो खाना तू दे कर गया था, कब का खत्म हो गया। मुझे अपने साथ ही ले चल। जो रूखा-सूखा देगा....वहीं खा कर रह लूंगी। मुझे यहां अकेला मत छोड़, मेरे बेटे। अपनी माँ पर दया कर, मेरे लाल..।"
मैं सोच रहा था, कितना दुःख भरा है इस डायन में....किसने भरा, क्यों भरा...मैं अभी भी सोच रहा हूं......(संतोष मिश्रा)
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डायन वाली "खबर" आग की तरह पूरे देश में फैल गई, लोग कसमें खा कर कहते उन्होंने "डायन" को देखा है, उसके रोने-चीखने की आवाज सुनी है.......।
लोग मुझसे भी बता रहे थे.. ..."खिड़की की सलाखों से पंजे बढ़ाती है डायन भूख..! भूख...! चिल्लाती है....! खाना मांगती है....।"
मेरे साथ कई लोग विस्मय से आंखें फैला कर डायन का किस्सा सुनते।
"आश्चर्य....ऐसी घनी आबादी वाले इलाके में शहर के बीचो बीच डायन का होना क्या कोई मामूली बात थी। पहले तो सब ठीक था, अचानक यह घर भूत बंगला कैसे बन गया....ये सोच रहा था मैं भी।"
जितनी मुंह उतनी बातें। ऐसी हलचल मची कि मीडिया वालों की लाईन लग गई।
सबसे लोकप्रिय चैनल वालों ने डायन का लाइव टेलीकास्ट शुरू कर दिया।
लाखों दर्शक सांस रोक देख रहे थे।
घने अंधेरे को चीरते हुए कैमरा आगे बढ़ रहा था।
रिपोर्टर गहरी रहस्यमय आवाज में कह रहा था-क्या आज खत्म हो जायेगा डायन का खूनी खेल......
चर्रर्र..... की आवाज के साथ दरवाजा खुला।
भीतर से सिसकी की आवाज आ रही थी। लोगों के रोंगटे खड़े हो गए। सचमुच एक परछाई जो दिखी थी। अब की तस्वीर साफ थी। सचमुच डायन ही थी। बूढ़ा जर्जर शरीर, वीरान सी आंखें..., कमर पर झूलते चीथड़े गंदगी में लिपटा हुआ बदन..।
उसके खरखराते हुए गले से चीख निकली, लोग सहमे....। अब झपटी डायन खून पी लेगी रिपोर्टर का। पर डायन तो कांपती हुई उसके पैरों पर गिर कर रो पड़ी।
वो कह रही थी - "बेटा, बहू से कहना मैं कुछ नहीं बोलूंगी, कुत्ते की तरह तेरे दरवाजे पर पड़ी रहूंगी। कितने दिनों से तेरी राह देख रही हूं। जो खाना तू दे कर गया था, कब का खत्म हो गया। मुझे अपने साथ ही ले चल। जो रूखा-सूखा देगा....वहीं खा कर रह लूंगी। मुझे यहां अकेला मत छोड़, मेरे बेटे। अपनी माँ पर दया कर, मेरे लाल..।"
मैं सोच रहा था, कितना दुःख भरा है इस डायन में....किसने भरा, क्यों भरा...मैं अभी भी सोच रहा हूं......(संतोष मिश्रा)
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1 टिप्पणी:
दिल दहलादेने वाली खबर पर मै अन्दर तक हिल गया हूं..समाज आज भी 19 वीं सदी में जी रहा है इसे लेकर भी दुखी हूं...पत्रकार टीआरपी के चक्कर में मूल कर्तव्य से विमुख हो गये हैं...इसका मुझे दुख है...समाज को हिला देने वाले इस खबर और ब्लाग के लिये पंडित जी को साधुवाद..साथ ही उम्मीद करूगा कि काश अब भी समाज की आंख खुल जाती...
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