छत्तीसगढ़ का ''मातर ''ही ‘गावो विश्वस्य मातर:'है.
छत्तीसगढ़ की संस्कृति में मातर और उत्तर भारत में गोवर्धन पूजा का सीधा संबंध गोसंवर्द्धन और गो-माता के प्रति श्रद्धावनत हो उनकी उपासना करने का एक प्रमुख माध्यम है।
‘गावो विश्वस्य मातर:’ अर्थात गाय विश्व की माता है। वास्तव में यह बात कुछ लोगों को बड़ी अटपटी लग रही होगी कि गाय विश्व की माता कैसे हो सकती है। इस बात को जानने से पहले हमें माँ को समझना पड़ेगा कि माँ किसे कहते हैं।
माँ हमें जन्म देती है और बिना किसी अपेक्षा के हमारा पालन-पोषण तथा हमारी सुरक्षा करती है। हमने कभी सोचा है कि गाय हमें जन्म देने के अलावा वह सब कुछ देती है, जिसके कारण हम उसको मां कहते हैं।
जन्म देने वाली मां के अतिरिक्त पालन-पोषण करने वाली मां को मां नहीं कहेंगे तो क्या कहेंगे? किसी कारणवश यदि नवजात बच्चे को जन्म देने वाली मां का दूध नहीं मिलता है तो चिकित्सक गाय के दूध की सलाह देते हैं। चिकित्सकों का मानना है कि मां के दूध के बाद गाय का दूध शिशु के लिए सर्वोत्तम आहार है। जब गाय का दूध जन्म देने वाली मां के दूध के समान है, तो गाय भी मां के समान ही है। इसीलिए गौदुग्ध को हमारे ऋषि मुनियों ने अमृत तुल्य माना है।
हमारे जीवन में गौमाता का उतना ही महत्व है जितना गंगा मैया का। गंगा मैया जहाँ अपने अमृत रूपी जल से हरी-भरी धरती को उपजाऊ बनाती हैं, वहीं गाय अपने गोबर और मूत्र से धरती को उर्वराशक्ति प्रदान करती हैं। उपरोक्त तथ्यों के आधार पर कहा जा सकता है कि गाय हमारी माता हैं। गाय विश्व की माता है।
गोवंश भारतीय कृषि का प्राण तत्व एवं मूल आधार है। दुर्भाग्य से आज के मशीनी युग में कृषि क्षेत्र में बैल की जगह ट्रैक्टर तथा गोबर की जगह रासायनिक पदार्थों ने ले ली है। खेतों में रासायनिक तत्वों के अत्यधिक प्रयोग से जमीन के अन्दर लवण की कमी हो गयी है। धरती में बनावटी खाद तथा रासायनिक दवाओं के प्रयोग से कृषि की पैदावार में वृद्धि तो हुई, लेकिन प्राकृतिक गुण लुप्त हो गये हैं।
पंचगव्य का महत्व
गाय के दूध, दही, घी, गोबर और मूत्र से पंचगव्य बनता है। यह पंचगव्य अनेक असाध्य रोगों से हमारी सुरक्षा करते हैं। गाय हमें हल जोतने के लिए बछड़ा देती है। यही नहीं वह मरने के बाद धरती को पोषक तत्वों से भरा अपना शरीर भी दे जाती है। वह पोषक तत्व कृषि के लिए उर्वरक का काम करता है। इस तरह गाय धरती का सुरक्षा कवच है।
गोमूत्र में ताम्र के अतिरिक्त लोहे, कैल्शियम, फॉस्फोरस, पोटाश, कार्बोनिक एसिड, और लेक्टोज आदि तत्व प्रचुर मात्रा में मिलते हैं, जिनके कारण गोमूत्र से निर्मित विविध प्रकार की औषधियां कई रोगों के निवारण में उपयोगी हैं। गाय का गोबर और मूत्र से जमीन की उर्वराशक्ति बढ़ जाती है। भूमि कई वर्षों तक उपजाऊ बनी रहती है।
गौ दूध का वैज्ञानिक महत्व
हृदय रोगियों के लिए गाय का दूध अत्यन्त उपयोगी है। गाय का दूध सुपाच्य होता हैं, वह मस्तिष्क की सूक्ष्मतम नाड़ियों में पहुँचकर मस्तिष्क को शक्ति प्रदान करता हैं। यह जीवनशक्ति प्रदान करने वाले द्रव्यों में सर्वश्रेष्ठ है। गाय के दूध में 8 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट, 0.7 प्रतिशत मिनरल्स, विटामिन ए, बी, सी, डी एवं ई पाया जाता है। दूध में उपस्थित विटामिन ‘ए’ (कैरोटीन) ऑखों की ज्योति बढ़ाने में सहायक होता है।
गौ घृत का वैज्ञानिक महत्व-
गो-घृत के सेवन से हृदय पर कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ता और शरीर में कोलेस्टा्रॅल नियंत्रित रहता है। गाय के घी में मौजूद ईथीलीन ऑक्साइड जीवाणुरोधक होता है, जिसका उपयोग ऑपरेशन थियेटर को कीटाणुरहित करने में किया जाता है। गो-घृत में प्रोपीलीन ऑक्साइड होता है। गोघृत द्वारा किए गए यज्ञ से वातावरण की शुद्वि होती है। गो-घृत नेत्रों के लिए हितकारी, अग्निप्रदीपक, त्रिदोषनाशक, बलवर्धक, आयुवर्धक, सुगन्धयुक्त, मधुर, शीतल और सब घृतों में उत्तम होता है।
गौ-नवनीत (मक्खन) कांतिवर्धक, अग्निप्रदीपक, महाबलकारी, वात-पित्तनाशक, रक्तशोधक, क्षय, बवासीर, लकवा एवं श्वांस आदि रोगों को दूर करने में सहायक होता है।
गौमूत्र का वैज्ञानिक महत्व-
गौमूत्र एक प्रकार का विषनाशक औषधि है। इसमें पाये जाने वाले विशिष्ट तत्वों के कारण गोमूत्र से निर्मित विविध प्रकार की औषधियां कई रोगों के निवारण में उपयोगी रहती हैं। गोमूत्र वातावरण को शुद्व करता है और जमीन की उर्वराशक्ति को बढ़ाता है। युवा शक्ति के संरक्षण एवं विकास में गौमूत्र बहुत प्रभावी और प्रेरक औषधि का काम करती है। इसके प्रयोग से शीघ्रपतन, धातु का पतलापन, शारीरिक एवं मानसिक कमजोरी, आलस्य, सिरदर्द आदि ब्याधियां दूर होने लगती हैं। कैंसर, उच्च रक्तचाप तथा दमा जैसे रोगों में भी गोमूत्र सेवन अत्यधिक उपयोगी सिद्व हुआ है।
गोबर का वैज्ञानिक महत्व-
गाय के ताजे गोबर के स्थान विशेष पर लेपन से टी.बी. तथा मलेरिया के कीटाणु तत्काल मर जाते हैं। गोबर हमारी त्वचा के दाद, एक्जिमा और घाव को ठीक करने में भी लाभदायक है।
गाय के गोबर से पर्यावरण संरक्षण-
सिर्फ एक गाय के गोबर से प्रतिवर्ष 4500 लीटर बायोगैस मिलती है, जिसके उपयोग करने से प्रतिवर्ष लाखों टन लकड़ी की बचत होती है। गोबर की खाद सर्वोत्तम है। गोवंश से लाखों गैलन गोमूत्र प्रतिवर्ष प्राप्त होता है, जो फसलों के लिए सर्वश्रेष्ठ कीटनाशक और अनेक रोगों के लिए औषधि है। गाय एवं गोवंश भारतीय कृषि की रीढ़ हैं। अत: गाय विश्व की माता है।
छत्तीसगढ़ की संस्कृति में मातर और उत्तर भारत में गोवर्धन पूजा का सीधा संबंध गोसंवर्द्धन और गो-माता के प्रति श्रद्धावनत हो उनकी उपासना करने का एक प्रमुख माध्यम है।
‘गावो विश्वस्य मातर:’ अर्थात गाय विश्व की माता है। वास्तव में यह बात कुछ लोगों को बड़ी अटपटी लग रही होगी कि गाय विश्व की माता कैसे हो सकती है। इस बात को जानने से पहले हमें माँ को समझना पड़ेगा कि माँ किसे कहते हैं।
माँ हमें जन्म देती है और बिना किसी अपेक्षा के हमारा पालन-पोषण तथा हमारी सुरक्षा करती है। हमने कभी सोचा है कि गाय हमें जन्म देने के अलावा वह सब कुछ देती है, जिसके कारण हम उसको मां कहते हैं।
जन्म देने वाली मां के अतिरिक्त पालन-पोषण करने वाली मां को मां नहीं कहेंगे तो क्या कहेंगे? किसी कारणवश यदि नवजात बच्चे को जन्म देने वाली मां का दूध नहीं मिलता है तो चिकित्सक गाय के दूध की सलाह देते हैं। चिकित्सकों का मानना है कि मां के दूध के बाद गाय का दूध शिशु के लिए सर्वोत्तम आहार है। जब गाय का दूध जन्म देने वाली मां के दूध के समान है, तो गाय भी मां के समान ही है। इसीलिए गौदुग्ध को हमारे ऋषि मुनियों ने अमृत तुल्य माना है।
हमारे जीवन में गौमाता का उतना ही महत्व है जितना गंगा मैया का। गंगा मैया जहाँ अपने अमृत रूपी जल से हरी-भरी धरती को उपजाऊ बनाती हैं, वहीं गाय अपने गोबर और मूत्र से धरती को उर्वराशक्ति प्रदान करती हैं। उपरोक्त तथ्यों के आधार पर कहा जा सकता है कि गाय हमारी माता हैं। गाय विश्व की माता है।
गोवंश भारतीय कृषि का प्राण तत्व एवं मूल आधार है। दुर्भाग्य से आज के मशीनी युग में कृषि क्षेत्र में बैल की जगह ट्रैक्टर तथा गोबर की जगह रासायनिक पदार्थों ने ले ली है। खेतों में रासायनिक तत्वों के अत्यधिक प्रयोग से जमीन के अन्दर लवण की कमी हो गयी है। धरती में बनावटी खाद तथा रासायनिक दवाओं के प्रयोग से कृषि की पैदावार में वृद्धि तो हुई, लेकिन प्राकृतिक गुण लुप्त हो गये हैं।
पंचगव्य का महत्व
गाय के दूध, दही, घी, गोबर और मूत्र से पंचगव्य बनता है। यह पंचगव्य अनेक असाध्य रोगों से हमारी सुरक्षा करते हैं। गाय हमें हल जोतने के लिए बछड़ा देती है। यही नहीं वह मरने के बाद धरती को पोषक तत्वों से भरा अपना शरीर भी दे जाती है। वह पोषक तत्व कृषि के लिए उर्वरक का काम करता है। इस तरह गाय धरती का सुरक्षा कवच है।
गोमूत्र में ताम्र के अतिरिक्त लोहे, कैल्शियम, फॉस्फोरस, पोटाश, कार्बोनिक एसिड, और लेक्टोज आदि तत्व प्रचुर मात्रा में मिलते हैं, जिनके कारण गोमूत्र से निर्मित विविध प्रकार की औषधियां कई रोगों के निवारण में उपयोगी हैं। गाय का गोबर और मूत्र से जमीन की उर्वराशक्ति बढ़ जाती है। भूमि कई वर्षों तक उपजाऊ बनी रहती है।
गौ दूध का वैज्ञानिक महत्व
हृदय रोगियों के लिए गाय का दूध अत्यन्त उपयोगी है। गाय का दूध सुपाच्य होता हैं, वह मस्तिष्क की सूक्ष्मतम नाड़ियों में पहुँचकर मस्तिष्क को शक्ति प्रदान करता हैं। यह जीवनशक्ति प्रदान करने वाले द्रव्यों में सर्वश्रेष्ठ है। गाय के दूध में 8 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट, 0.7 प्रतिशत मिनरल्स, विटामिन ए, बी, सी, डी एवं ई पाया जाता है। दूध में उपस्थित विटामिन ‘ए’ (कैरोटीन) ऑखों की ज्योति बढ़ाने में सहायक होता है।
गौ घृत का वैज्ञानिक महत्व-
गो-घृत के सेवन से हृदय पर कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ता और शरीर में कोलेस्टा्रॅल नियंत्रित रहता है। गाय के घी में मौजूद ईथीलीन ऑक्साइड जीवाणुरोधक होता है, जिसका उपयोग ऑपरेशन थियेटर को कीटाणुरहित करने में किया जाता है। गो-घृत में प्रोपीलीन ऑक्साइड होता है। गोघृत द्वारा किए गए यज्ञ से वातावरण की शुद्वि होती है। गो-घृत नेत्रों के लिए हितकारी, अग्निप्रदीपक, त्रिदोषनाशक, बलवर्धक, आयुवर्धक, सुगन्धयुक्त, मधुर, शीतल और सब घृतों में उत्तम होता है।
गौ-नवनीत (मक्खन) कांतिवर्धक, अग्निप्रदीपक, महाबलकारी, वात-पित्तनाशक, रक्तशोधक, क्षय, बवासीर, लकवा एवं श्वांस आदि रोगों को दूर करने में सहायक होता है।
गौमूत्र का वैज्ञानिक महत्व-
गौमूत्र एक प्रकार का विषनाशक औषधि है। इसमें पाये जाने वाले विशिष्ट तत्वों के कारण गोमूत्र से निर्मित विविध प्रकार की औषधियां कई रोगों के निवारण में उपयोगी रहती हैं। गोमूत्र वातावरण को शुद्व करता है और जमीन की उर्वराशक्ति को बढ़ाता है। युवा शक्ति के संरक्षण एवं विकास में गौमूत्र बहुत प्रभावी और प्रेरक औषधि का काम करती है। इसके प्रयोग से शीघ्रपतन, धातु का पतलापन, शारीरिक एवं मानसिक कमजोरी, आलस्य, सिरदर्द आदि ब्याधियां दूर होने लगती हैं। कैंसर, उच्च रक्तचाप तथा दमा जैसे रोगों में भी गोमूत्र सेवन अत्यधिक उपयोगी सिद्व हुआ है।
गोबर का वैज्ञानिक महत्व-
गाय के ताजे गोबर के स्थान विशेष पर लेपन से टी.बी. तथा मलेरिया के कीटाणु तत्काल मर जाते हैं। गोबर हमारी त्वचा के दाद, एक्जिमा और घाव को ठीक करने में भी लाभदायक है।
गाय के गोबर से पर्यावरण संरक्षण-
सिर्फ एक गाय के गोबर से प्रतिवर्ष 4500 लीटर बायोगैस मिलती है, जिसके उपयोग करने से प्रतिवर्ष लाखों टन लकड़ी की बचत होती है। गोबर की खाद सर्वोत्तम है। गोवंश से लाखों गैलन गोमूत्र प्रतिवर्ष प्राप्त होता है, जो फसलों के लिए सर्वश्रेष्ठ कीटनाशक और अनेक रोगों के लिए औषधि है। गाय एवं गोवंश भारतीय कृषि की रीढ़ हैं। अत: गाय विश्व की माता है।
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