सौभाग्य का प्रतीक है करवा चौथ
- ज्योतिषाचार्य पं.विनोद चौबे
कल कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी करवा चौथ का पर्व है। इस पर्व के साथ कुछ शुभ एवं दुर्लभ संयोग भी बन रहे हैं,सिद्धि योग तथा चतुर्थी पर वृषभ का चंद्रोदय हो रहा है, जिसका स्वामी शुक्र है और शुक्र सौंदर्य एवं आभूषण का अधिपति ग्रह माना गया है, जो कि महिलाओं के जीवन में समृद्धि की वर्षा करेगा एवं शुभता लाएगा। सिद्धि योग सूर्योदय से शुरु होकर अपराह्न 3 बजे तक रहेगा। इस योग में व्रत आरंभ करने से विशेष फल की प्राप्ति होगी। जो सुख-समृद्धि और शुभता प्रदान करने वाला है।
इस दिन पति की दीर्घायु के लिए महिलाएं दिनभर निराहार रहकर व्रत करतीं हैं और रात्रि में चंद्र दर्शन कर पति के हाथ से जल पीकर व्रत को तोड़ती हैं ।
ऐसेे करें करवा चौथ व्रत
सर्वप्रथम करवा चौथ में प्रयुक्त होने वाली संपूर्ण सामग्री को एकत्रित करें। व्रत के दिन प्रात: स्नानादि करने के पश्चात यह संकल्प बोलकर करवा चौथ व्रत का आरंभ करें। पूरे दिन निर्जल रहें। दीवार पर गेरू से फलक बनाकर पिसे चावलों के घोल से करवा चित्रित करें। इसे वर कहते हैं। चित्रित करने की कला को करवा धरना कहा जाता है। आठ पूरियों की अठावरी बनाएँ। हलुआ बनाएँ। पक्के पकवान बनाएँ। पीली मिट्टी से गौरी बनाएँ और उनकी गोद में गणेशजी बनाकर बिठाएँ। गौरी को लकड़ी के आसन पर बिठाएँ। चौक बनाकर आसन को उस पर रखें। गौरी को चुनरी ओढ़ाएँ। बिंदी आदि सुहाग सामग्री से गौरी का श्रृंगार करें। जल से भरा हुआ लोटा रखें। वायना (भेंट) देने के लिए मिट्टी का टोंटीदार करवा लें। करवा में गेहूँ और ढक्कन में शकर का बूरा भर दें। उसके ऊपर दक्षिणा रखें। रोली से करवा पर स्वस्तिक बनाएँ। गौरी-गणेश और चित्रित करवा की परंपरानुसार पूजा करें। पति की दीर्घायु की कामना करें। करवा पर 13 बिंदी रखें और गेहूँ या चावल के 13 दाने हाथ में लेकर करवा चौथ की कथा कहें या सुनें। कथा सुनने के बाद करवा पर हाथ घुमाकर अपनी सासुजी के पैर छूकर आशीर्वाद लें और करवा उन्हें दे दें। तेरह दाने गेहूँ के और पानी का लोटा या टोंटीदार करवा अलग रख लें। रात्रि में चन्द्रमा निकलने के बाद छलनी की ओट से उसे देखें और चन्द्रमा को अघ्र्य दें। इसके बाद पति से आशीर्वाद लें। उन्हें भोजन कराएँ और स्वयं भी भोजन कर लें।
पीली मिट्टी से बनी मूर्ति का महत्व :
दिन में पीली शुद्ध मिट्टी से गौरा-शिव एवं गणेशजी की मूर्ति बनाई जाती हैं। उन्हें पाटा पर लाल कपड़ा बिछाकर स्थापित कर सजाते हैं। पूजा के दूसरे दिन उन्हें घी-आटे के बने प्रसाद का भोग लगाकर विसजिर्त करते हैं।
मां गौरा को सिंदूर, बिंदी, चुन्नी तथा शिव को चंदन, पुष्प, वस्त्र पहनाते हैं। श्रीगणेशजी उनकी गोद में बैठते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में दीवार पर एक गेरू से फलक बनाकर चावल, हल्दी के आटे को मिलाकर करवाचौथ का चित्र अंकित करते हैं।
- ज्योतिषाचार्य पं.विनोद चौबे
कल कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी करवा चौथ का पर्व है। इस पर्व के साथ कुछ शुभ एवं दुर्लभ संयोग भी बन रहे हैं,सिद्धि योग तथा चतुर्थी पर वृषभ का चंद्रोदय हो रहा है, जिसका स्वामी शुक्र है और शुक्र सौंदर्य एवं आभूषण का अधिपति ग्रह माना गया है, जो कि महिलाओं के जीवन में समृद्धि की वर्षा करेगा एवं शुभता लाएगा। सिद्धि योग सूर्योदय से शुरु होकर अपराह्न 3 बजे तक रहेगा। इस योग में व्रत आरंभ करने से विशेष फल की प्राप्ति होगी। जो सुख-समृद्धि और शुभता प्रदान करने वाला है।
इस दिन पति की दीर्घायु के लिए महिलाएं दिनभर निराहार रहकर व्रत करतीं हैं और रात्रि में चंद्र दर्शन कर पति के हाथ से जल पीकर व्रत को तोड़ती हैं ।
ऐसेे करें करवा चौथ व्रत
सर्वप्रथम करवा चौथ में प्रयुक्त होने वाली संपूर्ण सामग्री को एकत्रित करें। व्रत के दिन प्रात: स्नानादि करने के पश्चात यह संकल्प बोलकर करवा चौथ व्रत का आरंभ करें। पूरे दिन निर्जल रहें। दीवार पर गेरू से फलक बनाकर पिसे चावलों के घोल से करवा चित्रित करें। इसे वर कहते हैं। चित्रित करने की कला को करवा धरना कहा जाता है। आठ पूरियों की अठावरी बनाएँ। हलुआ बनाएँ। पक्के पकवान बनाएँ। पीली मिट्टी से गौरी बनाएँ और उनकी गोद में गणेशजी बनाकर बिठाएँ। गौरी को लकड़ी के आसन पर बिठाएँ। चौक बनाकर आसन को उस पर रखें। गौरी को चुनरी ओढ़ाएँ। बिंदी आदि सुहाग सामग्री से गौरी का श्रृंगार करें। जल से भरा हुआ लोटा रखें। वायना (भेंट) देने के लिए मिट्टी का टोंटीदार करवा लें। करवा में गेहूँ और ढक्कन में शकर का बूरा भर दें। उसके ऊपर दक्षिणा रखें। रोली से करवा पर स्वस्तिक बनाएँ। गौरी-गणेश और चित्रित करवा की परंपरानुसार पूजा करें। पति की दीर्घायु की कामना करें। करवा पर 13 बिंदी रखें और गेहूँ या चावल के 13 दाने हाथ में लेकर करवा चौथ की कथा कहें या सुनें। कथा सुनने के बाद करवा पर हाथ घुमाकर अपनी सासुजी के पैर छूकर आशीर्वाद लें और करवा उन्हें दे दें। तेरह दाने गेहूँ के और पानी का लोटा या टोंटीदार करवा अलग रख लें। रात्रि में चन्द्रमा निकलने के बाद छलनी की ओट से उसे देखें और चन्द्रमा को अघ्र्य दें। इसके बाद पति से आशीर्वाद लें। उन्हें भोजन कराएँ और स्वयं भी भोजन कर लें।
पीली मिट्टी से बनी मूर्ति का महत्व :
दिन में पीली शुद्ध मिट्टी से गौरा-शिव एवं गणेशजी की मूर्ति बनाई जाती हैं। उन्हें पाटा पर लाल कपड़ा बिछाकर स्थापित कर सजाते हैं। पूजा के दूसरे दिन उन्हें घी-आटे के बने प्रसाद का भोग लगाकर विसजिर्त करते हैं।
मां गौरा को सिंदूर, बिंदी, चुन्नी तथा शिव को चंदन, पुष्प, वस्त्र पहनाते हैं। श्रीगणेशजी उनकी गोद में बैठते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में दीवार पर एक गेरू से फलक बनाकर चावल, हल्दी के आटे को मिलाकर करवाचौथ का चित्र अंकित करते हैं।
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