चौबेजी कहिन:- क्याें है विश्वव्यापी सूर्योपासना का महापर्व 'छठ पूजा' ।
‘आदित्याज्जायते वृष्टिवृष्टरन्नं ततः प्रजाः’। सूर्य से वर्षा, वर्षा से अन्न और अन्न से प्रजा (प्राणी) का जन्म होता है। 🌷🙏 (पूरा आलेख अवश्य पढ़ें और अन्य मित्रों को शेयर करें) 🙏🌷
सूर्य षष्ठी व्रत (छठ पूजा) के पावन पर्व पर आप सभी देशवासियों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं 🌷🌷 आइए आज 'चौबेजी कहिन' सूर्योपासना के विषय पर आज विस्तृत चर्चा करेंगे। साथियों, पौराणिक कथाओं के अनुसार सूर्य महर्षि कश्यप के पुत्र होने के कारण ‘काश्यप’ कहलाये। उनका लोकावतरण महर्षि की पत्नी अदिति के गर्भ से हुआ, अतः उनका एक नाम ‘आदित्य’ भी लोकविख्यात एवं प्रसिद्ध हुआ। उपनिषदों में आदित्य को ब्रह्म के प्रतीक के रूप में दर्शाया गया है। छान्दोग्योपनिषद् ‘आदित्यो ब्रह्म’ कहता है तो तैत्तिरियारण्यक ‘असावादित्यो ब्रह्म’ की उपमा देता है।अथर्ववेद की भी यही मान्यता है। इसके मतानुसार आदित्य ही ब्रह्म का साकार स्वरूप है।
ऋग्वेद में सर्वव्यापक ब्रह्म तथा सूर्य में समानता का स्पष्ट रूप से बोध होता है। यजुर्वेद सूर्य और भगवान् में भेद नहीं करता। कपिला तंत्र में सूर्य को ब्रह्मांड के मूलभूत पंचतत्त्वों में से वायु का अधिपति घोषित किया गया है। हठयोग के अंतर्गत श्वास (वायु) को प्राण माना गया है और सूर्य इन प्राणों का मूलाधार है, अतः ‘आदित्यौ वै प्राणः’ कहा गया है। योग साधना में प्रतिपादित मणिपूरक चक्र को ‘सूर्यचक्र’ भी कहते हैं। हमारा नाभिकेन्द्र (सूर्यचक्र) प्राण का उद्गम स्थल ही नहीं बल्कि अचेतन मन के संस्कारों तथा चेतना का संप्रेषण केन्द्र भी है। सूर्यदेव इस चराचर जगत् में प्राणों का प्रबल संचार करते हैं- ‘प्राणः प्रजानामुदयत्येषं सूर्यः’। सूर्य भगवान् को मार्तण्ड भी कहते हैं क्योंकि ये जगत् को अपनी ऊष्मा तथा प्रकाश से ओतप्रोत कर जीवनदान देते हैं। सूर्यदेव कल्याण के उद्गम स्थान होने के कारण शम्भु कहलाते हैं। भक्तों का दुःख दूर करने अथवा जगत् का संहार करने के कारण इन्हें त्वष्ट भी कहते हैं। किरण को धारण करने वाले सूर्य देव अंशुमान् के नाम से भी जाने जाते हैं। दरअसल सूर्य हम सभी पृथ्वी वासियों के पितृदेव भी हैं जिनको हम जलाञ्जली भी अर्पित करते हैं चाहे वह पितृपक्ष में तर्पण हो या प्रतिदिन अर्घ्य प्रदान करना हो किसी ना किसी बहाने हम सभी सूर्योपासना करते ही हैं। ऋग्वेद के पांच सबसे प्रभावशाली देवताओं में अग्नि, सूर्य आदि प्रमुख हैं।
सूर्योपासना भिन्न-भिन्न रूपों में अनादिकाल से भारतवर्ष में ही नहीं बल्कि समस्त विश्व के विभिन्न भागों में भक्ति एवं श्रद्धापूर्वक की जाती रही है। अमेरिका के रेड इंण्डिनों द्वारा आबाद क्षेत्रों में सूर्य मंदिर प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं। कई प्रकार की सूर्य गाथाएँ हवाई द्वीप, जापान, दक्षिण अमेरिका तथा कैरिबियन द्वीपों में प्रचलित हैं, जो बताती हैं कि सूर्य सबका उपास्य रहा है। चीन के विद्वान् सूर्य को ‘याँग‘ मानते हैं। जापान सूर्य पूजक राष्ट्र है तथा दिनमान का आगमन सर्वप्रथम उसी देश से हुआ माना जाता है। बौद्ध जातकों में सूर्य का प्रसंग वाहन के रूप में स्थान-स्थान पर आया है तथा अजवीथि, नागवीथि और गोवीदि नाम के मार्गों के आधार पर उसकी तीन गतियाँ मानी गयी हैं। इस्लाम में सूर्य को ‘इल्म अहकाम अननजुमे’ का केन्द्र माना गया है। अर्थात् सूर्य इच्छा शक्ति को बढ़ाने वाली चैतन्य सत्ता के प्रतीक हैं। ईसाई धर्म में न्यूटेस्टामेण्ट में सूर्य के धार्मिक महत्त्व का विशद् एवं विस्तृत वर्णन है। सेण्टपाल ने इसीलिए रविवार का दिन पवित्र घोषित कर इस दिन प्रभु की आराधना दान दिये जाने आदि को अत्यन्त फलदायी माना है। ग्रीक और रोमन विद्वानों ने भी इसी दिन को पूजा का दिन स्वीकार किया है।
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