ज्योतिष में रोग निर्धारण
रोग स्थान की जानकारी प्राप्त करने के योग्य होने के लिए यह समझना आवश्यक है कि शरीर के विभिन्न अंग जन्मपत्री में किस प्रकार से निरुपित हैं. दुर्भाग्य से शास्त्रीय ग्रन्थ इस दिशा में अल्प सूचनाएं ही प्रदान करते हैं. सामान्यत: वास्तविक प्रयोग किए जाएं तो वे सूचनाएं आगे शोध के लिए प्रगति का मार्ग भी प्रशस्त कर सकती है. इस अध्याय में उन विशेष मूल नियमों को बताया गया है जो रोग का स्थान निश्चित करने में सहायक हों तथा अगले अध्याय में दिए गए नियमों के साथ रोग की प्रकृति निश्चित करने में भी निर्णायक हो.
कालपुरुष विचार |
कालपुरुष शब्द का प्रयोग प्राय: ज्योतिष में होता है. समस्त भचक्र को आवृत करते हुए एक अलौकिक मानव की कल्पना की गई है. जिसे कालपुरुष कहा गया है. भचक्र की विभिन्न राशियां जिस अंग पर पड़ती है. वह राशि उसी अंग का प्रतिनिधित्व करती है.
वामन पुराण में भचक्र की विभिन्न राशियां भगवान शिव के शरीर को किस प्रकार इंगित करती है, उसके विषय में बताया गया है. भगवान शिव का शरीर वहां कालपुरुष का प्रतिनिधित्व करता है. अधिकांश ज्योतिष ग्रन्थ मुख्य रूप से थोड़े बहुत परिवर्तन के साथ वामन पुराण में बताए गए वर्णन से सहमत है.
कालपुरुष के शारीरिक अंग |
मेष - सिर
वृषभ - चेहरा
मिथुन - कंधे, गर्दन तथा स्तनमध्य
कर्क - ह्रदय
सिंह - पेट
कन्या - नाभि क्षेत्र (कमर और आंते)
तुला - निचला उदर
वृश्चिक - बाहरी जननांग
धनु - जांघे
मकर - दोनों घुटने
कुम्भ - टांगें
मीन- पैर
यह देखा जा सकता है कि थोड़ा विवाद इन मुख्य भागों में है. मुख्य अंतर यह है कि वराहमिहिर के अनुसार ह्रदय का क्षेत्र कालपुरुष के चौथे भाव पर पड़ता है जो कर्क राशि है, जबकि वामनपुराण के अनुसार यह कालपुरुष के पांचवें भाव पर पड़ता है, यहाँ सिंह राशि है. वराहमिहिर का राशि विभाग आसान है.
चिकित्सा जगत में भावों के कारक तत्व |
चिकित्सा ज्योतिष के प्रसंग में कुंडली के भावों के कारकत्व का विचार करना अब संगत होगा. यह ध्यान देना चाहिए कि शरीर का दायां भाग कुंडली के प्रथम से सप्तम भाव तक तथा बायां भाग सप्तम से प्रथम भाव तक के भावों से प्रदर्शित होता है.
प्रथम भाव : सिर, मस्तिष्क, सामान्यता: शरीर, बाल, रूप, त्वचा, निद्रा, रोग से छुटकारा, आयु, बुढापा तथा कार्य करने की योग्यता.
द्वितीय भाव : चेहरा, आँखें (दायी आंख), दांत, जिव्हा, मुख, मुख के भीतरी भाग, नाक, वाणी, नाखून, मन की स्थिरता.
तृतीय भाव : कान (दायाँ कान), गला, गर्दन, कंधे, भुजाएं, श्वसन प्रणाली, भोजन नलिका, हंसिया, अंगुष्ठ से प्रथम अंगुली तक का भाग, स्वप्न, मानसिक अस्थिरता, शारीरिक स्वस्थता तथा विकास.
चतुर्थ भाव : छाती (वक्ष स्थल ), फेफड़े, ह्रदय (एक मतानुसार), स्तन, वक्ष स्थल की रक्त वाहिनियाँ, डायफ्राम.
पंचम भाव : ह्रदय, उपरी उदर तथा उसके अवयव जैसे अमाशय, यकृत, पित्त की थैली, तिल्ली, अग्नाशय, पक्वाशय, मन, विचार, गर्भावस्था, नाभि.
छठा भाव : छोटी आंत, आन्त्रपेशी, अपेंडिक्स, बड़ी आंत का कुछ भाग, गुर्दा, ऊपरी मूत्र प्रणाली , व्याधि, अस्वस्थता, घाव, मानसिक पीड़ा, पागलपन, कफ जनित रोग, क्षयरोग, गिल्टियाँ, छाले वाले रोग, नेत्र रोग, विष, अमाशयी नासूर.
सप्तम भाव : बड़ी आंत तथा मलाशय, निचला मूत्र क्षेत्र, गर्भाशय, अंडाश, मूत्रनली.
अष्टम भाव : बाहरी जननांग, पेरिनियम, गुदा द्वार, चेहरे के कष्ट, दीर्घकालिक या असाध्य रोग, आयु, तीव्र मानसिक वेदना.
नवम भाव : कूल्हा, जांघ की रक्त वाहिनियाँ, पोषण.
दशम भाव : घुटने , घुटने के जोड़ का पिछ्ला रिक्त भाग.
एकादश भाव: टांगें , बायाँ कान, वैकल्पिक रोग स्थान, आरोग्य प्राप्ति.
द्वादश भाव : पैर, बांयी आंख, निद्रा में बाधा, मानसिक असंतुलन, शारीरिक व्याधियां, अस्पताल में भर्ती होना, दोषपूर्ण अंग, मृत्यु.
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रोग स्थान की जानकारी प्राप्त करने के योग्य होने के लिए यह समझना आवश्यक है कि शरीर के विभिन्न अंग जन्मपत्री में किस प्रकार से निरुपित हैं. दुर्भाग्य से शास्त्रीय ग्रन्थ इस दिशा में अल्प सूचनाएं ही प्रदान करते हैं. सामान्यत: वास्तविक प्रयोग किए जाएं तो वे सूचनाएं आगे शोध के लिए प्रगति का मार्ग भी प्रशस्त कर सकती है. इस अध्याय में उन विशेष मूल नियमों को बताया गया है जो रोग का स्थान निश्चित करने में सहायक हों तथा अगले अध्याय में दिए गए नियमों के साथ रोग की प्रकृति निश्चित करने में भी निर्णायक हो.
कालपुरुष विचार |
कालपुरुष शब्द का प्रयोग प्राय: ज्योतिष में होता है. समस्त भचक्र को आवृत करते हुए एक अलौकिक मानव की कल्पना की गई है. जिसे कालपुरुष कहा गया है. भचक्र की विभिन्न राशियां जिस अंग पर पड़ती है. वह राशि उसी अंग का प्रतिनिधित्व करती है.
वामन पुराण में भचक्र की विभिन्न राशियां भगवान शिव के शरीर को किस प्रकार इंगित करती है, उसके विषय में बताया गया है. भगवान शिव का शरीर वहां कालपुरुष का प्रतिनिधित्व करता है. अधिकांश ज्योतिष ग्रन्थ मुख्य रूप से थोड़े बहुत परिवर्तन के साथ वामन पुराण में बताए गए वर्णन से सहमत है.
कालपुरुष के शारीरिक अंग |
मेष - सिर
वृषभ - चेहरा
मिथुन - कंधे, गर्दन तथा स्तनमध्य
कर्क - ह्रदय
सिंह - पेट
कन्या - नाभि क्षेत्र (कमर और आंते)
तुला - निचला उदर
वृश्चिक - बाहरी जननांग
धनु - जांघे
मकर - दोनों घुटने
कुम्भ - टांगें
मीन- पैर
यह देखा जा सकता है कि थोड़ा विवाद इन मुख्य भागों में है. मुख्य अंतर यह है कि वराहमिहिर के अनुसार ह्रदय का क्षेत्र कालपुरुष के चौथे भाव पर पड़ता है जो कर्क राशि है, जबकि वामनपुराण के अनुसार यह कालपुरुष के पांचवें भाव पर पड़ता है, यहाँ सिंह राशि है. वराहमिहिर का राशि विभाग आसान है.
चिकित्सा जगत में भावों के कारक तत्व |
चिकित्सा ज्योतिष के प्रसंग में कुंडली के भावों के कारकत्व का विचार करना अब संगत होगा. यह ध्यान देना चाहिए कि शरीर का दायां भाग कुंडली के प्रथम से सप्तम भाव तक तथा बायां भाग सप्तम से प्रथम भाव तक के भावों से प्रदर्शित होता है.
प्रथम भाव : सिर, मस्तिष्क, सामान्यता: शरीर, बाल, रूप, त्वचा, निद्रा, रोग से छुटकारा, आयु, बुढापा तथा कार्य करने की योग्यता.
द्वितीय भाव : चेहरा, आँखें (दायी आंख), दांत, जिव्हा, मुख, मुख के भीतरी भाग, नाक, वाणी, नाखून, मन की स्थिरता.
तृतीय भाव : कान (दायाँ कान), गला, गर्दन, कंधे, भुजाएं, श्वसन प्रणाली, भोजन नलिका, हंसिया, अंगुष्ठ से प्रथम अंगुली तक का भाग, स्वप्न, मानसिक अस्थिरता, शारीरिक स्वस्थता तथा विकास.
चतुर्थ भाव : छाती (वक्ष स्थल ), फेफड़े, ह्रदय (एक मतानुसार), स्तन, वक्ष स्थल की रक्त वाहिनियाँ, डायफ्राम.
पंचम भाव : ह्रदय, उपरी उदर तथा उसके अवयव जैसे अमाशय, यकृत, पित्त की थैली, तिल्ली, अग्नाशय, पक्वाशय, मन, विचार, गर्भावस्था, नाभि.
छठा भाव : छोटी आंत, आन्त्रपेशी, अपेंडिक्स, बड़ी आंत का कुछ भाग, गुर्दा, ऊपरी मूत्र प्रणाली , व्याधि, अस्वस्थता, घाव, मानसिक पीड़ा, पागलपन, कफ जनित रोग, क्षयरोग, गिल्टियाँ, छाले वाले रोग, नेत्र रोग, विष, अमाशयी नासूर.
सप्तम भाव : बड़ी आंत तथा मलाशय, निचला मूत्र क्षेत्र, गर्भाशय, अंडाश, मूत्रनली.
अष्टम भाव : बाहरी जननांग, पेरिनियम, गुदा द्वार, चेहरे के कष्ट, दीर्घकालिक या असाध्य रोग, आयु, तीव्र मानसिक वेदना.
नवम भाव : कूल्हा, जांघ की रक्त वाहिनियाँ, पोषण.
दशम भाव : घुटने , घुटने के जोड़ का पिछ्ला रिक्त भाग.
एकादश भाव: टांगें , बायाँ कान, वैकल्पिक रोग स्थान, आरोग्य प्राप्ति.
द्वादश भाव : पैर, बांयी आंख, निद्रा में बाधा, मानसिक असंतुलन, शारीरिक व्याधियां, अस्पताल में भर्ती होना, दोषपूर्ण अंग, मृत्यु.
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