मिसाल 'एक विवाह ऐसा भी'....
आप चौंकिये मत मैं किसी फिल्माये गये फिल्म या सीरीयल की बात नहीं कर रहा बल्कि मैं बात कर रहा हुं ! भिलाई के चौहान (क्षत्रिय) परिवार द्वारा ''रॉयल ग्रीन्स'' में आयोजित वैवाहिक कार्यक्रम का !
भव्य सजावट, पुष्प गुच्छों बेहतरीन शोभा जो मन को सहज ही आकर्षित कर रही थीं, सूट-बूट धारी लोगों का आना-जाना बड़ी संख्या में लगा हुआ था, मैं स्वयं श्री अनिल सिंह चौहान(अमृता के पिता) यही दो लोग पजामा-कुर्ता में घूम घूम कर छटा को देख रहे थे उसी समय चौहान जी के मोबाईल में एक फोन आता है और वह बातचीत में मशगूल हो जाते हैं तत्क्षण सूट-बूट में कॉफी लेकर एक नवजवान आया और मुझे कॉफी दिया मैं कॉफी का लुत्फ ले ही रहा था कि - अचानक कुछ दिव्यांगों का प्रवेश हुआ ! उस राजशाही ठाट- बाट की व्यवस्था में दिव्यांगों प्रवेश हुआ ...मैं चकित था..आखिर इस भव्य आयोजन में सैकड़ों की संख्या में दिव्यांगों की क्या आवश्यकता? मेरे मन में यह प्रश्न उठना स्वाभाविक था, क्योंकि प्राय: आमतौर पर आजकल के 'वेस्टर्न कल्चर' के पैरोकार समाज में ऐसा दृश्य किसी आश्चर्य से कम नहीं ! मैंने श्री चौहान जी के इकलौते पुत्र अनिमेष(वर्तमान में कनाड़ा में इंजीनियर है) से पूछा ये दिव्यांग यहां किस लिये बुलाये गये हैं 'अनिमेष' ने कहा कि इसके बारे में पूर्ण रुप से हमारे पिताजी ही बता पायेगें क्योंकि मैं तो कनाडा में ही रहता हुं मैं कल ही आया हुं.... मुझे ऑरेंजमेंट के बारे में बहुत कुछ पता नहीं है आदरणीय आचार्य जी ! मैंने अनिमेष के मित्र 'नज़ीर' भाई को बुलाकर उनसे जानकारी लेना चाही उन्होंने कहा महाराज जी मैं चौहान अंकल को बुलाता हुं.वही बता पायेंगे उसके बाद चौहान जी से इस विषय पर विस्तृत चर्चा हुई उन्होंने जो बताया उसे आप लोगों के समक्ष रख रहा हुं.... भारतीय संस्कृति से ओत-प्रोत अनिल सिंह चौहान एवं श्रीमती राजलक्ष्मी सिंह की पुत्री "अमृता" और श्री ठाकुर सिंह वर्मा एवं श्रीमती उमा सिंह वर्मा मुंबई के पुत्र "सागर" का छत्तीसगढ में दुर्ग में शिवनाथ नदी के तट पर स्थित 'रॉयल ग्रीन्स' में आयोजित विवाह समारोह था ! मुझे लगा की सामान्यत: हर माता पिता एवं वर वधु की इच्छा के मुताबिक...
कन्या वरयते रुपं माता वित्तं पिता श्रुतम् बान्धवा: कुलमिच्छन्ति मिष्टान्नमितरेजना: विवाह के समय कन्या सुन्दर पती चाहती है| उसकी माताजी सधन जमाइ चाहती है। उसके पिताजी ज्ञानी जमाइ चाहते है|तथा उसके बन्धु अच्छे परिवार से नाता जोडना चाहते है। परन्तु बाकी सभी लोग केवल अच्छा खाना चाहते है।
और बढियां भोजन होगा तो अधिक से अधिक व्हीआईपी, व्हीव्हीआईपी कैटगरी के भारी संख्या में आगन्तुक भी होंगे, बेहतरीन साज-सज्जा तथा बेहिसाब खर्च भी होंगे ऐसी इच्छा हर मां बाप एवं हर भावी वर एवं वधू के होते हैं
किंतु ..."अमृता" अपने पिता अनिल सिंह एवं अपनी मां से बोली ''पापा हमारे विवाह में ढेर सारे अतिथि आयेंगे उनका उत्तमोत्तम व्यवहारानुकूल उनका आतिथ्य सत्कार भी होगा किन्तु हमारी ईच्छा है कि हमारे विवाह में ''दिव्यांग भोज'' भी कराया जाय ! बीटिया की मनमुताबिक श्री अनिल सिंह चौहान ने भिलाई के सुपेला स्थित ' मूक-बधिर'' स्कूल के सैकड़ों दिव्यांगों को आमंत्रित करके विवाह स्थल 'रॉयल ग्रीन्स' में ही अमृता और सागर ने स्वयं अपने हाथों से भोजन परोसकर उन दिव्यांगों को प्रेम व श्रद्धावनत् हो भोजन कराया जो आजकल के आयातीत वेस्टर्न कल्चर के पक्षधर युवाओं एवं नवयुवतियों के लिये प्रेरणादायी है...यहां यह कहना लाज़मी होगा 'मिसाल एक विवाह ऐसा भी' जिसकी अवधारणा भारत के हर नवयुवक एवं नवयुवतियों को करना चाहिये !
जहां एक ओर अनाप-शनाप खर्चिली शादियों में वफे सिस्टम या मैं अपनी भाषा में कहुं तो ''वफैलो सिस्टम'' के भोजन में अधिकाधिक तरह तरह के व्यंजन होने से अनाज (भोजन) नुकसान होता है वैसे ही बड़े आसानी से फेंक दिया जाता है जैसे किसी अनयूज्ड सामानों को कुड़े के ढेर में हम फेंक देते हैं आप कल्पना किजीये की हम कितने गरीब व असहाय तथा नि:शक्त जनों के भोजन को बेतरतीब जीवन शैली में फटकों की भांति उड़ा देते हैं.....यदि एक जून की रोटी आपको ना मिले तो आपके उपर क्या गुजरेगा! अमृता व सागर उन हर भारतीयों के लिये प्रेरक हैं जिन्होने कभी स्वयं के अलावां कभी दिव्यांगों के दु:ख दर्द को अहसास न किया हो...जिन्होंने न ही जीवन जीने की शैली मान लिया है! उम्मीद है आप में से भी कोई 'अमृता' और 'सागर' बनकर समाज के उस वर्ग की चिन्ता करेगा, जिनको आपकी आवश्यकता है ! फिलहाल इस स्टोरी के मुख्य किरदार 'अमृता और सागर' को नव दाम्पत्य जीवन की ढेर सारी शुभकामनाएं...!
-ज्योतिषाचार्य पण्डित विनोद चौबे, संपादक- ''ज्योतिष का सूर्य'' राष्ट्री मासिक पत्रिका, सड़क- 26, शांतिनगर, भिलाई, दुर्ग (छत्तीसगढ.) मोबा.नं. 9827198828
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