ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे

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सोमवार, 27 मई 2013

कहीं यह भारत में ’तहरिके तालीबान’की धमक तो नहीं ?

  संपादकीय

कहीं यह भारत में ’तहरिके तालीबान’की धमक तो नहीं ?


- संपादक- ज्योतिषाचार्य पं.विनोद चौबे, भिलाई

Pandit Vinod Choubey

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अब तो हद हो गई...जिस राष्टÑगान को मौलाना अब्दुल कलाम जैसे महान विद्वान ने भी अपनी स्वीकृति दी...जिस वन्दे मातरम् को बोलते हुए देश के असंख्य शहीदों ने अपनी हंसते हंसते जान गंवा दी, उस वन्दे मातरम् के विरोधी बसपा सांसद शफीकुर्रहमान बर्क पर देशद्रोह का मुकद्दमा नहीं चलाया जाना चाहिए...?

यह तो देश के अस्मिता का सवाल था जहाँ देश पहले है, बाद में मजहब। जिस देश में हिन्दू, मुश्लिम, सिक्ख, ईसाई। आपस में हैं भाई भाई।। उस देश में ऐसे देश द्रोहियों की क्या आवश्यकता है। जो हालात आज पाकिस्तान में तहरिके तालीबान की है, वही हालात ऐसे छद्म विचारों वाले शफीकुर्रहमान बर्क के भांति विचारक भारत में अशांति फैलाने और आतंकी संगठनों की गोद में सदा सदा के लिए सुला देने का कुत्सित प्रयास है।
8 मई 2013 को देश की सबसे बडी पंचायत अर्थात् लोकसभा को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित किए जाने से पहले सदन में ‘वंदेमातरम्’ की धुन बजायी गई. धुन बजने के दौरान संभल से बहुजन समाजवादी पार्टी के माननीय सांसद श्री शफीकुर्रहमान बर्क सदन से उठकर बाहर चले जाते है. लोकसभा अध्यक्षा मीरा कुमार बसपा सांसद के इस कदम पर कड़ी नाराजगी जाहिर की और उन्हें भविष्य में ऐसा नहीं करने की सख्त चेतावनी दी।
बसपा सांसद द्वारा उठाये गये इस अपमानजनक कदम पर कांग्रेस के नेता सलमान खुर्शीद एवं भाजपा नेता सहनवाज़ हुसैन ने भी कड़ी प्रतिक्रिया दर्ज कराई। 4 नवंबर 2009 को देवबंद मे उलेमाओ ने वंदेमातरम् न गाने का एक प्रस्ताव पारित किया था. जिस पर राष्टÑवादी विचारधारा के लोगो ने कड़ी आपत्ति जताई थी. लेकिन शफीकुर्रहमान बर्क ने देश से माफी मांगने की बजाय अपनी हेकड़ी जमाते हुए कहा, ‘यह हमारे धर्म के खिलाफ है,इसलिए अगर भविष्य में भी ऐसी स्थिति आई तो मैं वही करूंगा, जो आज किया है.’ ज्ञात हो कि1866 के ओडिशा के अकाल को देखकर चिंतित हुए बंकिम चन्द्र ने एक उपन्यास लिखना प्रारंभ किया और 1882 मे उन्होने ‘वंदेमातरम्’ को अपने उपन्यास ‘आनन्द मठ’ मे शामिल कर लिया. कालांतर मे महर्षि अरविन्द ने वंदेमातरम् को नये-मंत्र की संज्ञा दी. यह पवित्र मंत्र ‘वंदेमातरम्’ कोलकाता मे भारतीय कांग्रेस के दूसरे अधिवेशन मे पहली बार गाया गया. 28 दिसंबर, 1896 को कांग्रेस के अधिवेशन मे श्री रविन्द्रनाथ ठाकुर ने स्वयं ही वंदेमातरम् को संगीतबद्ध कर दिया, और उसी अधिवेशन मे वंदेमातरम् को हर अधिवेशन गाने के प्रस्ताव को सर्वसम्मति से पारित कर दिया गया. 1905 मे बंग-भंग के आन्दोलन मे वंदेमातरम् नामक इस मंत्र का ऐसा जादू चला कि इसके उद्घोष ने ब्रिटिश सरकार की चूले हिला दी.
14 अगस्त 1947 को भारतीय संविधान द्वारा वंदेमातरम् को राष्टÑीय गीत का दर्जा दिया गया. उसी राष्ट्र की अस्मिता की रक्षा करने की शपथ लेने के बावजूद उनके इस अपमानजनक कृत्य से क्या यह मान लिया जाय कि इन्होने विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा की झूठी कसम खायी थी, क्योंकि इन्होने अपने इस दंभ के चलते देश की जनता को और उन महान हुतात्माओ को जिन्होने देश को स्वतंत्र कराने हेतु अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया, को भी लजा दिया. या कहीं यह भारत में तहिरके तालीबान की धमक तो नहीं..?

''ज्योतिष का सूर्य'' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका का 46 वाँ अंक जून 2013, संपादक- ज्योतिषाचार्य पं.विनोद चौबे, भिलाई

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