ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे

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शनिवार, 25 नवंबर 2017

ज्योतिष में 'केतुकूट योग' और यंत्रों का प्रभाव

साथियों नमस्कार,
कुछ दिनों से सोच रहा था ज्योतिष एवं तंत्र तथा मंत्र पर लिखता ही रहता हुं आज यंत्र विषय पर चर्चा करुं ! (मित्रों, मुझे अंग्रेजी नही आती फिर भी मैंने कोशिश की है,यि कोई त्रुटियां हों तो क्षमा करेंगे) जिस तरह यूरेनियम के एक अतिसूक्ष्म कण (Atom) के नाभिकीय विखंडन (Nuclear Explosion) से श्रृंखलाबद्ध प्रतिक्रिया (Chain Reaction) के द्वारा निकलने वाली ऊर्जा से एक रेलगाडी 100 किलोमीटर प्रति घंटे क़ी रफ्तार से 100 वर्षों तक चल सकती है। विज्ञान के इस सिद्धांत की खोज ज्योतिष के इन्ही यंत्रो के सिद्धांत पर आधारित है।
॥उदाहरण॥
"केतुकूट" योग - जिससे छोटे छोटे बच्चो में मृगी या औरतों में योषा अपष्मार (Hysteria) की बीमारी हो जाती है, के निवारण के लिये जो बांह या गले में यंत्र बांधा जाता है, उसमें मकोय के पौधे क़ी जड़, अडूलसा के पुष्प, अमलतास क़ी जड़, सेमल के बीज, समुद्रफेन, सुहागा एवं हाथी दांत का चूर्ण मिश्रित कर नागफनी (Cactus) के पके लाल पुष्प के रस में पका कर ताम्बे के ताबीज़ में भर देते है। यह यंत्र हिस्टीरिया एवं बच्चो के मृगी क़ी सबसे उत्तम औषधि है जो खाई नहीं जाती है। बल्कि इसे चमड़ी के माध्यम से (Through Epidermic System) शरीर में पंहुचाया जाता है।
अब यह आधुनिक विज्ञान का काम है कि यह खोज करे कि आखीर इस यंत्र में प्रयुक्त इन औषधियों के रस के ताम्बे के संयोग से कौन सा ऐसा रसायन बनता है जो शरीर में घुस कर इन व्याधियो को दूर करता है? किन्तु अभी यह जानने में आधुनिक विज्ञान को बहुत दिन लग जायेगें।
- आचार्य पण्डित विनोद चौबे
(फलित ज्योतिष एवं नव्य व्याकरण विषय मे आचार्य)
संपादक- 'ज्योतिष का सूर्य' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका, शांतिनगर, भिलाई मोबाईल नं.9827198828

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