सनातन के उपहास की साजिश,
अंजाने में हम सब हुए शिकार.....
यदि आपने यह पोस्ट पढ़ने का निर्णय किया है तो इसे गहराई से और आराम-आराम से पढ़ना होगा क्योंकि इसे पढ़ने के बाद आपको भटके हुए सनातनियों को जो अपनी मूर्खता और भय में सनातन को हानि पहुंचा रहे हैं उन्हें समझाना भी होगा.धार्मिक होने का मतलब सिर्फ पूजा-पाठ करना नहीं होता, अधर्म को रोकना भी जरूरी होता है. गीता का यही सार है.प्रश्न है कि हम ईश्वर से डरते क्यों हैं? ईश्वर डराने वाली शक्ति है ही नहीं.डराने वाली शक्ति तो आसुरी शक्ति है. इस डर के बीच में क्यों जी रहे हैं हम.सोशल मीडिया पर आजकल ऐसे पोस्ट से भरा पड़ा है- इस दिन किया ये काम तो हो जाएगा नुकसान. इस दिन कर लो ये काम तो होगी मुश्किल आसान. आज ये मत करना, कल वो मत करना. आदि, आदि…एक इंसान कितनी चीजें कर सकता है और कितनी चीजें नहीं कर सकता! क्या उसके पास किस्मत बदलने वाले इन छद्मवेशियों के तुक्के,टोटके मानने के अलावा कोई काम-धाम नहीं बचा.क्या संभव है ऐसा कि आप सारे टोटके पूरे कर सकें. इसके दो बड़े नुकसान हैं-पहला तो आप धीरे-धीरे करके एक मानसिक बीमारी के फेर में फंसते जाएंगे जहां आपको हर चीज से डर लगेगा और उस डर का निदान टोटकों में खोजते फिरेंगे. यह बीमारी तेजी से बढ़ रही है. बढ़ती-बढ़ती यही पशुबलि और मानव बलि जैसे अपराध तक पहुंचा देती है.दूसरी, यदि आप इन टोटकों में फंस गए तो आपका सारा समय तो इसी में निकल जाएगा. फिर घर-परिवार आपका शत्रु हो जाएगा क्योंकि आपके पास उनके लिए समय ही नहीं होगा.गहरी साजिश हो रही है जिसे हिंदू समझ ही नहीं रहे. पहले तो उनमें डर का माहौल बनाया जा रहा है फिर उस डर का कारोबार हो रहा है.क्या आपने स्वयं यह महसूस नहीं किया?ऐसा कोई दिन नहीं होता जब आपको व्हॉट्सएप्प पर पोस्ट न मिलते हों जिसमें लिखा होता है-यदि यह पोस्ट भेजेंगे तो यह काम बन जाएगा और यदि पोस्ट नहीं भेजा तो तुम्हारा अनिष्ट हो जाएगा.कभी आता होगा कि यह सीधा बालाजी से आया है, यह सीधा शिरडी से आया है, फलां गांव में हनुमानजी आए. किसी ने मूर्ति बनवा दी तो उसका काम बन गया, जिसने नकार दिया उसका नाश हो गया. यह पोस्ट शेयर नहीं किया तो सात दिन में सब नाश हो जाएगा.आप भी ऐसे मैसेज से परेशान होते होंगे, संभव है आपमें से कुछ लोग किसी अनिष्ट कीआशंका में आगे भेज भी देते हों.आपको अंदाजा है अंजाने में आपने जीवहत्या जैसा पाप कर दिया?ईश्वर की शक्तियों को एक मैसेज में कोई समेटकर सिद्ध कर लेगा और उसके आधार पर डर बना देगा. जो इतना डरता है वास्तव में वह भगवान का उपहास कर रहा है. अंजाने में वह कितना बड़ा अपराध कर रहा है, उसे इसका आभास ही नहीं. इस पाप की मुक्ति के लिए तो कोई व्रत भी नहीं बताया गया है.ग्रंथों के आधार पर समझते हैं- कैसे और कितना बड़ा पाप हुआ है अंजाने में!शिवपुराण में इस विषय में चर्चा आती है. भगवान भोलेनाथ किसी पर जल्दी कुपित नहींहोते और कुपित हो जाएं तो भस्म ही कर देते हैं जैसे कामदेव को किया था.तो शिवजी किस पर कुपित होते हैं? इस पर लंबा विवरण है. यहां मैं उसमें से वह बात दे रहा हूं जिसका इस विषय से संदर्भ है-महादेव उस पर कुपित होते हैं जो मिथ्याचार करता है, जो किसी को शिवभक्ति से किसी को रोकता है, जो शिव की निंदा करता या सुनता है जो शिव की शरण में आए भक्त को भय दिखाता है.इसमें से शिव के शरणागत को भय दिखाने वाला प्रसंग विशेष रूप से देखने योग्य है. भद्रायु ने शिवजी की शरण ली थी. वह शिवजी का ध्यान कर रहे थे परंतु उनकी आयुपूरी हो चुकी थी. काल अपना कार्य करने आए और भद्रायु को भयभीत करना शुरू कर दिया.काल को तो अपना कर्तव्य करना था इसलिए तरह-तरह से डराने लगे ताकि भद्रायु कुछ पल के लिए ही थोड़े से बेचैन हों और शिवजी की भक्ति से ध्यान हटे तो इसके प्राण हरने का अवसर मिले. पर भद्रायु कालके प्रयासों से विचलित ही न हुए.काल ने और डराना शुरू किया तो भोलेनाथ स्वयं प्रकट हुए और काल को ही भस्म कर दिया. त्राहि-त्राहि मच गई.देवों ने कहा- प्रभु आपका कोप उचित है किंतु काल यदि न होगा तो सृष्टि की व्यवस्था बिगड़ जाएगी. महाकाल के रूप में देवों ने तरह-तरह से शिवजी की स्तुति की. तब शिवजी ने काल को पुनः जीवन दिया.शिवजी को प्रसन्न करने के लिए देवताओं ने कहा- हे महाकाल आज से जो भी किसी को आपकी भक्ति से विचलित करने का प्रयास करेगा, आपके भक्त के मन में भय उत्पन्न करेगा, वह आपके साथ-साथ हम सभी के कोप का भी अधिकारी होगा. उसकी कोई व्रत-स्तुति स्वीकार नहीं होगी.ऐसा ही वर्णन श्रीमद्भागवत में भी है. जो भी सदाचारी व्यक्ति जीवों को धर्म का उपदेश करता है, उनके विचारों को शुद्ध करके धर्म के संकल्प के साथ जोड़ता है, उन्हें धर्मनिष्ठ बनाता है उसके वश में स्वयं देवराज इंद्र हो जाते हैं.उसके लिए संसार में कुछ भी अलभ्य नहीं होता अर्थात उसके लिए संसार के सभी ऐश्वर्य सुलभ हो जाते हैं.जो किसी धर्मनिष्ठ को बल से, दंड से, लोभ में डालकर, अथवा किसी भी अनुचित प्रयोग से धार्मिक प्रसंग या अनुष्ठान के लिए बाधित करता है ऐसे व्यक्ति के सारे अर्जित पुण्यों का तत्काल नाश हो जाता है, उसके अनुष्ठान देवगण स्वीकार नहीं करते.ऐसे मनुष्य का शील, धर्म, सत्य, वृत और बल इन पांचों का नाश हो जाता है. इनके नाश होते ही लक्ष्मी उसका त्याग कर देती हैं.नारद पुराण की एक कथा .एक राजा ने कठोर नियम लगा रखा था कि उसके राज्य के प्रत्येक नागरिक यहां तक कि मवेशियों को भी एकादशी का व्रत करना होगा. बड़ा कठोर नियम था. किसी को भोजन दिया ही नहीं जाता था. भूल से भी कोई करे तो राज्य से निकाल दिया जाता था.भगवान ऐसी बलात् भक्ति से दुखी थे.उनकी प्रेरणा से एक भक्त उस राज्य में आया और उसने एकादशी का व्रत तो नहीं ही किया, साथ में भगवान को भी अपने साथ भोजन कराया. राजा को बड़ा आश्चर्य हुआ कि मैं सबको व्रत के लिए प्रेरित कर रहा हंा फिरभी हरि ने मुझे दर्शन नहीं दिए!भगवान ने कहा- तुम किसी को प्रेरित नहीं कर रहे थे, बाध्य कर रहे थे. तुम्हारा एक भी व्रत मैंने स्वीकार ही नहीं किया है. जो भक्ति का प्रचार करके व्रत-आदि की उपयोगिता, विधि-विधान समझाकर किसी को इसके लिए उत्साहित करता है मैं बस उसके व्रत ही स्वीकार करता हूं. थोपी गई भक्तिमुझे स्वीकार ही नहीं.ऐसे अनगिनत प्रसंग और उद्धरण मैं बता सकता हूं. पर विवेकशील व्यक्ति के विवेक को जागृत करने के लिए इतना पर्याप्त है. इससे ज्यादा की आवश्यकता तो मूढ़ के लिए है. क्या अब भी आपको नहीं लगता कि अंजाने में अधर्म हो रहा है.अब मुद्दे की बातःतो आप जिसे यह मैसेज भेज रहे हैं कि यह नहीं किया तो वह हो जाएगा इस तरह आप उसे भगवान का नाम लेने और उसे आगे भेजने के लिए विवश कर रहे हैं. आपकी कोई पूजा तो स्वीकार नहीं ही हुई आपने जो भी अब तक पुण्य संचित किए हों शायद वह भी चले गए हों. इसलिए तत्काल इसे रोकिए.आपने अंजाने में ही जो कार्य किए हैं उससे आपका शील, धर्म, सत्य, वृत और बल इन पांचों का नाश हो जाता है. इनके नाश होते ही लक्ष्मी उसका त्याग कर देती हैं.अंजाने में हुए अपराध के लिए ईश्वर से तत्काल क्षमा प्रार्थना करिए और संकल्प लीजिए कि आगे से ऐसा नहीं करेंगे. यदि आप फिर भी ऐसा करते हैं तो फिर आप जानें आपके कर्म जानें.जो भी व्यक्ति प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से ईशनिंदा को सुनता है, उसे प्रचारित करता है वह तत्काल ईश्वर की कृपा से वंचित हो जाता है. धर्म के विरूद्ध आचरण को भी ईशनिंदा माना जाता है. ईशनिंदकों से तुरंत सभी संबंध विच्छेद कर लेने चाहिए.इस प्रकार ऐसे मैसेज ईशनिंदा की श्रेणी के ही हुए. तो यदि आपने नहीं भेजा लेकिन आपके पास लोग ऐसे मैसेज भेज रहे हैं उनकेसाथ तत्काल अपने संबंध तोड़ें अन्यथा यहभी अधर्म है.उन्हें जो ऊपर बात कही है उसे बताकर समझाने का प्रयास करें या ऐसे लोगों को ब्लॉक कर सकते हैं ताकि वे दोबारा ऐसा न कर पाएं.संसार के बहुत से धर्मों में बलात् यानी तलवार के बल प्रयोग से धर्म में खींचकर लाने की बात कही गई है परंतु सनातन में ऐसा कदापि नहीं है. एक भी प्रसंग आपको कहीं भी नहीं मिलेगा जहां बलप्रयोग से धर्माचरण के लिए विवश किया गया हो.इसीलिए सनातन सर्वश्रेष्ठ माना जाता है क्योंकि यह बल से नहीं सौहार्द से आदर्श जीवन की विधि बताता है.क्या आपको अब आभास हुआ कि जो हो रहा है वहउचित नहीं हो रहा.इससे भी गंभीर एक प्रश्न है- क्या आपको यह महसूस हो रहा है कि सनातनियों में लगातार ह्रास होता जा रहा है. मर्यादाएं धूमिल हो रही हैं?
गंभीरता से सोचिए, विचारिए तो समझ में आएगा कि अप्रत्यक्ष रूप से धर्म की हानि कराने के कितने प्रपंच चल रहे हैं. सात्वकिता का जो रक्षाकवच हमें सुरक्षित रखता है उसे भेदने के लिए अधर्मियों ने कितना बड़ा षडयंत्र किया है.ऐसे मैसेज विधर्मियों द्वारा बनाया जा रहे हैं. वे हमें धोखे से अधर्म के चक्रव्यूह में फंसाकर सनातन की हानि करारहे हैं. हमारा धर्मकवच लगातार टूट रहा है. पूजा-हवन, तीर्थ-यज्ञ आदि के कारण बने रक्षा कवच में सेंध लग रही है.यदि आपको इस बात में जरा सी भी सच्चाई लगती है तो धर्म की रक्षा के लिए लोगों को जागृत करें. प्रेम से उन्हें समझाएं, सुधारें.मैंने धर्म यात्रा पेज में सिर्फ धर्म की कथाओं से आपको परिचित कराने के लिए बनाया है मैंने, धर्म का प्रचार-प्रसार करने और धर्म पर आने वाली हर बाधा से सावधान करनेके लिए बनाया है. इस मिशन, इस संकल्प के साथ आप जुड़ें. ऐसे विचारों का और मंथन आवश्यक है.यदि सनातन के उपहास से आपका मन भी दुखित है तो आह्वान करता हूं, आइए हम सब साथ जुड़ें. धर्मरक्षा के लिए धर्म के सार का प्रसार करें. सूप के समान बनें.सार-सार को गहि रहे, थोड़ा दे उडाय.सूप फटकारने का कार्य कितने अच्छे से करता है. वह अच्छी चीजों को रख लेता है और बेकार चीजों को फटकारकर बाहर कर देता है.बात उचित लगी हो तो आइए धर्मो रक्षति रक्षितः अर्थात तुम धर्म की रक्षा करो, धर्म तुम्हारी रक्षा करेगा.
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