हमारे ब्लॉग को' नियमित पढ़ने वाले प्रिय साथियों, बुधवासरीय मंगलमयी शुभप्रभात आज हम शनि ग्रह के 'राजयोग' बनाम 'सन्यास योग' का विषय लेकर उपस्थित हुं अवश्य पढ़ें और मित्रों को पढायें, लेकिन कॉपी-पेस्टीय आलेख-चौर्य कला प्रवीण जनों कृपया कॉपी-पेस्ट ना करें, केवल ज्ञान वर्द्धन करें, हां अन्यों तो ब्लॉग के लिंक के साथ अवश्य भेंजे ताकी यह आलेख अधिक से अधिक लोगें तक पहुंच सके !
आपने प्राय: देखा होगा की फला व्यक्ति का पूर्वार्ध जीवन बेहद गरीबी में था और वह देश का पीएम, राष्ट्रपति, मंत्री, बड़ा व्यापारी तथा बड़ी हस्ती या बड़ा खिलाड़ी बनकर पूरी दूनिया में बहु प्रतिष्ठित होता है ! ऐसे कईयों उदाहरण आपको मिल जायेंगे, जिसमें स्वामी विवेकानंद जी और अभी वर्तमान में विश्व के सबसे लोकप्रिय भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी एवं पूर्व राष्ट्रपति व मिशाईलमेन स्व. श्री एपीजे अब्दुल कलाम जी सहित अमेरिका का प्रसिद्ध'उद्योगपति स्टिव्ह जॉब्स सहीत ऐसे कई लोगों की जब कुण्डली की समीक्षा की गई तो पाया .......की कहीं ना कहीं ऐसे महान विभूतियों की जन्मकुण्डली में शनिग्रह की अनुकूलता ने 'इन्हें यथायोग्य धन, समृद्धि, प्रसिद्धि और पद देने का काम किया परन्तु लेकिन उपरोक्त शनि सबकुछ देता है परन्तु पारिवारिक-सुख प्रदान नहीं करता यानी वह व्यक्ति वैराग्य का जीवन यापन करता है ! अब हम बात करते हैं शनि ग्रह को लग्न में स्थित होने तथा ग्रह दृष्टि की वजह से बदलता जीवन पर चमत्कारिक शुभ या अशुभ प्रभाव इस विषय पर विस्तृत चर्चा करेंगे !
जब लग्न में शनि हो तो कष्ट में गुजरता है जीवन का पूर्वार्द्ध लग्न में शनि होने की स्थिति में लग्न का, शनि के बलाबल का और उस पर ग्रहों की दृष्टि का अध्यन करना आवश्यक हो जाता है।लग्न का शनि अच्छा नही मन जाता है।लग्न का शनि जातक को हीन और आलसी मानसिकता का बनाता है।यदि शनि मंगल से प्रभावित हो तो हमेशा कोई न कोई वजह से चोट लगती रहती है।अगर ये सूर्य की राशि मे हो तो दुःखद परिणाम मिलते है।स्वराशि में होने पर विद्वान बना देता है।
शुक्र की राशि में होनेपर शरीर आकर्षक बना देता है और जीवन में जातक खुद के ऐश आराम को महत्व देता है।लग्न में शनि होने के वजह से पूर्वाद्ध जीवन कष्ट में बीतता है।30 से 36 वर्ष के बाद जीवन मे स्थिरता आती है।
दांपत्य जीवन और व्यापार में बहोत अड़चनों का सामना करना पड़ता है।जीवनसाथी के साथ हमेशा मन मुटाव रहता है।अगर दशा उस वक़्त राहु की चल रही हो तो बहुत घटा लगता है।पर सटीक विश्लेषण के लिए भाव लग्न नक्षत्र राहु के स्थिति के साथ गोचर भी अनिवार्य है।अगर शनि लग्न में उच्च का हो तोह अपनी दशा अंतरदशा में लाभकारी होता है।
- आचार्य पण्डित विनोद चौबे
संपादक- 'ज्योतिष का सूर्य' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका, मोबाईल नं. 9827198828, भिलाई
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