मैं बार बार हर बार कहता हुं कि रावण की विद्वता वेद के रक्षण हेतु नहीं वरन् क्षरण हेतु था ! रावण की तपस्या लोक कल्याणार्थ नहीं स्व-कल्याणार्थ था ! रावण वैदिक सिद्धांतो का आरोहक नहीं अपितु विद्रोही था ! मैंने भिलाई निवासी एक रावण के प्रशंसक और पेशे से ज्योतिषाचार्य जी से इसी विषय पर विशद चर्चा होने लगी वे महाशय बेताब थे, रावण को आदर्श-चरित की व्याख्या करने को ! मैंने उनसे बार बार इस बात को कहता रहा मित्रवर आप इस बात को समझिये वह रावण स्वयं को लोकपाल बनने की बनने के लिये मां सीता का हरण किया, चक्रवर्ती शासक बनने की चाह ने उसे शिवभक्त बनाया, यह स्वाभाविक भक्ति या प्राकृतिक तपस्वी नहीं कहा जा सकता ! अपने भाई कुबेर के समतूल्य ज्ञानी बनकर लोकाधिपति बनने के लिए वह वेदज्ञ बना, वेदज्ञ होते हुए रावण ने अवधूत क्रिया और तामस यज्ञ और त्राटक आदि प्रयोग किया करता था जबकी एक वेदज्ञ इन कार्यों से मुक्त होते हैं ! हे ! ज्योतिषाचार्य पण्डित जी सम्भवत: आपको ज्ञात होगा की मैं स्वत: 'रावण संहिता' का अध्ययन किया हुं उसमें कहीं पर भी लोक कल्याणार्थ चर्चा की तो बातें दूर, वह परकिया-तंत्र क्रिया कलापों से किसी व्यक्ति के जीवन को अवरोधित करने के माकुल उपाय बताये गये हैं ! कहीं आत्मा से परमात्मा की बातें नहीं की गई हैं ! और हे अडायमंड-बुक-स्टॉलीय-अध्ययन-कर्ता-ज्योतिष-मर्मज्ञ-रावण-प्रशंसक ज्योतिषाचार्य महाशय, आपको शायद ज्ञात नहीं रावण सिर्फ स्व-जन-हिताय कार्य किया ! उपनिषदों में कहीं भी ब्रह्म-निरुपण संबंधित रावण का कहीं कोई उपाख्यान नहीं मिलता इसलिये हे प्रभु आप रावण को दैवज्ञ या वेदज्ञ ना कहें ! और आईये आगे आपको उसके जन्म से लेकर उसके भ्रातृजनों के बारे में आपको विस्तृत बताता हुं !
रावण एक ऐसा योग है जिसके बल से सारा ब्रम्हाण्ड कांपता था। लेकिन क्या आप जानते हैं कि वो रावण जिसे राक्षसों का राजा कहा जाता था वो किस कुल की संतान था। रावण के जन्म के पीछे के क्या रहस्य है? इस तथ्य को शायद बहुत कम लोग जानते होंगे। रावण के पिता विश्वेश्रवा महान ज्ञानी ऋषि पुलस्त्य के पुत्र थे। विश्वेश्रवा भी महान ज्ञानी सन्त थे। ये उस समय की बात है जब देवासुर संग्राम में पराजित होने के बाद सुमाली माल्यवान जैसे राक्षस भगवान विष्णु के भय से रसातल में जा छुपे थे।
तब कैकसी ऋषि चरणों में गिरकर बोली आप इतने महान तपस्वी हैं तो उनकी संतान ऐसी कैसे हो सकती है आपको संतानों को आशीर्वाद अवश्य ही देना होगा। तब कैकसी कि प्रार्थना पर ऋषि विश्वेश्रवा ने कहा कि उनका सबसे छोटा पुत्र धर्मात्मा प्रवृत्ति का होगा। इसके अलावा वे कुछ नही कर सकते। कुछ समय पश्चात् कैकसी ने एक पुत्र को जन्म दिया जिसके दस सिर थे। ऋषि ने दस शीश होने के कारण इस पुत्र का नाम दसग्रीव रखा।
इसके बाद कुंभकर्ण का जन्म हुआ जिसका शरीर इतना विशाल था कि संसार मे कोई भी उसके समकक्ष नहीं था । कुंभकर्ण के बाद पुत्री सूर्पणखा और फिर विभीषण का जन्म हुआ। इस तरह दसग्रीव और उसके दोनो भाई और बहन का जन्म हुआ।
नीचे तस्वीरों के सामने दिये संक्षिप्त विवरण में छिपे हैं 10 रहस्य।
रावण ने क्यों की ब्रह्मा की तपस्या ?
कुंभकर्ण ने अपनी इंद्रियों को वश में रखकर दस हजार वर्षों तक कठोर तप किया उसके कठोर तप से भयभीत हो देवताओं ने देवी सरस्वती से प्रार्थना कि तब भगवान वर मांगते समय देवी सरस्वती कुंभकर्ण की जिव्हा पर विराजमान हो गईं और कुंभकर्ण ने इंद्रासन की जगह निद्रासन मांग लिया।
‘शारद प्रेरि तासु मति पफेरी मांगिस नींद मांस खटकेरी'।
कैसे दसग्रीव का नाम रावण पड़ा?
रावण के वध का कारण बनीं स्त्रियां?
रावण ने सीता जी से कभी जबर्दस्ती नहीं की
श्री राम ने रावण के सीने में क्यों नहीं चलाया तीर?
राम और रावण में घमासान युद्ध चल रहा था राम रावण के शीश काट रहे थे। तब सभी के मन में सवाल था कि आखिर श्री राम रावण के हृदय पर तीर क्यों नहीं चला रहे। देवताओं ने ब्रह्मा जी से यही प्रश्न किया। तब भगवान ब्रह्मा ने कहा कि रावण के हृदय में सीता का वाय है, सीता के हृदय में राम वास करते हैं और राम के हृदय में सारी सृष्टि है। ऐसे में यदि श्री राम रावण के हृदय पर तीर चलाते तो सारत सृष्टि नष्ट हो जाएगी। जैसे ही रावण के हृदय से सीता का ध्यान हटेगा वैसे ही श्री राम रावण का संहार करेंगे। इसलिये विभीषण जब रावण के वरदान का रहस्य बताने जब श्री राम के पास पहुंचे तो रावण के हृदय से सीता का ध्यान हट गया। फिर भगवान राम ने आतातायी राक्षस की नाभि पर तीर चलाकर वध किया। रावण वध का यही दिन दशहरा या विजयादशमी कहलाया।
-आचार्य पण्डित विनोद चौबे
(फलित ज्योतिष एवं नव्य व्याकरण से आचार्य) संपादक- "ज्योतिष का सूर्य'' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका मोबाईल नं.9827198828
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