ऋषियों द्वारा आयोजित 'सेमिनार' या 'वैदिक-संगोष्ठी' को ही 'उपनिषद' कहते हैं
मित्रों, नमस्कार
आज ख्रिष्टाब्द के अन्तिम माह का प्रथम तिथि है, यानी 1 दिसंबर है, शुक्रवार है, नमन आप सभी को ¡ !!___/\___ आज हम चर्चा हम करेंगे, विषय है 'उपनिषद' यानी उपनिषद का अर्थ विश्लेषण और व्यावहारिक पक्ष सहित इसके ऊपर कुछ चिंतन , मनन करने जा रहा हुं....!
उप, नि, षद - इनका विश्लेषण किया जाए तो उप अर्थात पास में, नि अर्थात निष्ठापूर्वक और सद अर्थात बैठना। इस प्रकार इसका शाब्दिक अर्थ हुआ - तत्वज्ञान के लिये गुरू के पास निष्ठावान होकर बैठना। ये वेद के अंतिम भाग हैं और इसी कारण से इन्हें वेदान्त भी कहा गया है। उपनिषदों को रहस्यमय ग्रन्थ भी कहा गया है। रहस्यात्मक तत्वज्ञान गुरू और शिष्यों के मध्य चर्चा का विषय रहा है। शिष्यों के तत्वज्ञान से सम्बंधित प्रशनों के उत्तर गुरू देते आए हैं और वे ही प्रश्नोत्तर, गुरू-शिष्य के मध्य के संवाद, इन ग्रंथों में संकलित हैं।.
जब महाभारत के महाविनाश के बाद देश में विचारों का जो नया उन्मेष पैदा हुआ संसार और शरीर के प्रति विरक्ति का जो भाव बना और आत्मा की अमरता पर जैसी उत्कट भावाभिव्यक्ति होने लगी उसे देखते हुए उपनिषदों की ऊपरी समय सीमा वही जाकर बनती है जो ब्राह्मण ग्रन्थों के रचनाकाल की है। यानी 2500 ई.पू.। देश में यज्ञों के प्रति उत्साह लगातार क्षीण हो रहा था और आध्यात्मविद्या का प्रभाव लगातर फैल रहा था इसलिए जहां ब्राह्मणों और आरण्यकों की रचना पांच-सात सौ सालों में हो चुकी होगी वहां उपनिषदों की रचना लगातार करीब एक हजार साल तक चलती रही होगी। जैसे हर कोई चाहता है कि उसके वंश का, कुनबे का या कौम का कोई पुराना संदर्भ निकल आए ताकि वह अपने को खूब प्रामाणिक साबित कर सके।दिनांक 15 फरवरी 2012 के ज्योतिष का सूर्य अंक के 20,21 एवं 22 वें पृष्ठ पर प्रकाशित
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