ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे

!!विशेष सूचना!!
नोट: इस ब्लाग में प्रकाशित कोई भी तथ्य, फोटो अथवा आलेख अथवा तोड़-मरोड़ कर कोई भी अंश हमारे बगैर अनुमति के प्रकाशित करना अथवा अपने नाम अथवा बेनामी तौर पर प्रकाशित करना दण्डनीय अपराध है। ऐसा पाये जाने पर कानूनी कार्यवाही करने को हमें बाध्य होना पड़ेगा। यदि कोई समाचार एजेन्सी, पत्र, पत्रिकाएं इस ब्लाग से कोई भी आलेख अपने समाचार पत्र में प्रकाशित करना चाहते हैं तो हमसे सम्पर्क कर अनुमती लेकर ही प्रकाशित करें।-ज्योतिषाचार्य पं. विनोद चौबे, सम्पादक ''ज्योतिष का सूर्य'' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका,-भिलाई, दुर्ग (छ.ग.) मोबा.नं.09827198828
!!सदस्यता हेतु !!
.''ज्योतिष का सूर्य'' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका के 'वार्षिक' सदस्यता हेतु संपूर्ण पता एवं उपरोक्त खाते में 220 रूपये 'Jyotish ka surya' के खाते में Oriental Bank of Commerce A/c No.14351131000227 जमाकर हमें सूचित करें।

ज्योतिष एवं वास्तु परामर्श हेतु संपर्क 09827198828 (निःशुल्क संपर्क न करें)

आप सभी प्रिय साथियों का स्नेह है..

रविवार, 5 नवंबर 2017

(गतांक से आगे) 'RIP' उद्घोषक 'प्रेतपूजकों' भूतसंज्ञक आत्माओं को पहचानो.......(पार्ट-2)


(गतांक से आगे)
'RIP' उद्घोषक 'प्रेतपूजकों' भूतसंज्ञक आत्माओं को पहचानो.......(पार्ट-2)

सोमवासरीय मंगल प्रभात मित्रों, कल हमने (Rip) तथा 'रेस्ट इन पीस' एवं भूतसंज्ञक आत्माओं के बारे में कुछ सोदाहरण विषय रखा था ! जिस पर देश भर से प्रतिक्रियाएं भी आईं, मुझे संतोष हुआ ! जैसा की हमने आपसे बताया था की आज ',आत्मा' के रुप, रंग तथा आकार के बारे में चर्चा करूंगा साथ ही 'आत्माओं' को कैसे पहचाना जाता है? इस विषय को भी रखूंगा !  तथा पितृलोक में हनुमानजी द्वारा अंगद की आत्मा को कैसे पहचाना गया..और इन संदर्भों का ज्योतिष तथा पुराणेतिहास सहित वैदिक वांगमय से इनका क्या जुड़ाव है ?
श्री मदभगवत गीता में लिखा है कि :

नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः॥


अर्थात इस आत्मा को शस्त्र नहीं काट सकते, इसको आग नहीं जला सकती, इसको जल नहीं गला सकता और वायु नहीं सुखा सकती।

वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णानि अन्यानि संयाति नवानि देही॥


अर्थात जैसे मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्यागकर दूसरे नए वस्त्रों को ग्रहण करता है, वैसे ही जीवात्मा पुराने शरीरों को त्यागकर दूसरे नए शरीरों को प्राप्त होता है।

प्रत्येक व्यक्ति, पशु, पक्षी, जीव, जंतु आदि सभी आत्मा हैं। खुद को यह समझना कि मैं शरीर नहीं आत्मा हूं। यह आत्मज्ञान के मार्ग पर रखा गया पहला कदम है। आत्मा के तीन स्वरूप माने गए हैं- जीवात्मा, प्रेतात्मा और सूक्ष्मात्मा। जो भौतिक शरीर में वास करती है उसे जीवात्मा कहते हैं। जब इस जीवात्मा का वासना और कामनामय शरीर में निवास होता है तब उसे प्रेतात्मा कहते हैं। यह आत्मा जब सूक्ष्मतम शरीर में प्रवेश करता है, उस उसे सूक्ष्मात्मा कहते हैं। 84 लाख योनियां : पशु योनि, पक्षी योनि, मनुष्य योनि में जीवन-यापन करने वाली आत्माएं मरने के बाद अदृश्य भूत-प्रेत योनि में चली जाती हैं। आत्मा के प्रत्येक जन्म द्वारा प्राप्त जीव रूप को योनि कहते हैं। ऐसी 84 लाख योनियां हैं, जिसमें कीट-पतंगे, पशु-पक्षी, वृक्ष और मानव आदि सभी शामिल हैं। हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार जीवात्मा 84 लाख योनियों में भटकने के बाद मनुष्य जन्म पाती है। 84 लाख योनियां निम्नानुसार मानी गई हैं- पेड़-पौधे- 30 लाख, कीड़े-मकौड़े- 27 लाख, पक्षी- 14 लाख, पानी के जीव-जंतु- 9 लाख, देवता, मनुष्य, पशु- 4 लाख, कुल योनियां- 84 लाख है, मैं इस विषय पर और विस्तृत विषय  नहीं रख रहा हुं, आज लक्ष्य है आपको 'आत्मा' के आकार, प्रकार तथा स्वरुप के बारे मे बताना है ! इसके लिए हमे गीता के अलावा 'श्वेताश्वरनोपनिषद्' एवं 'कृष्णयजुर्वेद' का अवलोकन करना होगा ! इस उपनिषद एवं कृष्णयजुर्वेद में स्पष्ट है जो, 113 मंत्र और छ: अध्यायों वाला श्वेताश्वतरनोपनिषद्, कृष्ण यजुर्वेद से संबंधित है। अनुमान के अनुसार इसकी ज्यादातर रचना श्वेताश्वतर ऋषि द्वारा करीब चौथी शताब्दी ईसापूर्व की गई थी। अन्य व्याख्याताओं में आदि शंकराचार्य, विजननात्मा, शंकरनंद और नारायण तीर्थ का नाम शामिल है !श्वेताश्वतरनोपनिषद् में आत्मा के आकार से जुड़े उल्लेख के अनुसार मनुष्य के सिर के बाल के ऊपरी हिस्से को सौ भागों में बांट दिया जाए, फिर प्रत्येक भाग के सौ हिस्से कर दिए जाएं। फिर जो माप आएगा, असल में आत्मा का वही आकार होता है। अब हम बात करेंगे 'आत्मा' को पहचानने के तरीका की, तो गीता में आत्मा को 'अवध्य' कहा गया परंतु 'निर्गंध' नहीं कहा गया यानी हर आत्माओं के अलग अलग 'गंध' होते हैं ! एक बहुत रोचक प्रसंग है जब हनुमान जी 'तारा' को पुत्र रत्न की प्राप्ति नहीं हो पा रही है ? यह जानने के लिए वह ऋषि मतंग के आश्रम जाते हैं, वहां उनको पता चलता है कि - 'तारा' पुत्रवती हैं परन्तु उनके गर्भ में उनका भावी होने वाला पुत्र 'अंगद' की आत्मा पितृलोक से अपनी मां के गर्भ में प्रवेश ही नहीं करना चाहता है ! तो हनुमानजी पितृलोक जाना सुनिश्चित करते हैं वहां जाकर वह बेहद चकित हो जाते हैं सभी की आत्माएं एक ही जैसीं हैं उनमें से अंगद की आत्मा को कैसे पहचाना जाय ? तब उनको अपने गुरु सूर्य द्वारा बताए आत्म-य़सूत्र का स्मरण आया और उन्होंने बालि की पत्नि 'तारा' के गंध से 'अंगद' की आत्मा की गंध को ढूंढना प्रारंभ किये अन्तत: उन्हें पितृलोक में 'अंगद' की आत्मा मिल गई और हनुमान जी ने अंगद को 'मृत्य लोक' तारा के गर्भ में चलने को कहा परन्तु अंगद......! (इसके आगे क्रमश: आगामी सिरीज यानी पार्ट-3) में विस्तृत चर्चा करुंगा.....

- आचार्य पण्डित विनोद चौबे
संपादक- 'ज्योतिष का सूर्य'
राष्ट्रीय मासिक पत्रिका
शांतिनगर, भिलाई, जिला-दुर्ग
छ.ग. मोबाईल नं. 9827198828

कोई टिप्पणी नहीं: