कहानी एक 'माली' नामक Doggy का जो धर्म शास्त्रों में 'शुनक: या शुनी' के रुप मे है ...
ये हैं 'माली' ! मेरी इनसे पहली मुलाकात हुई, महज़ पांच मिनट मे ही इतनी घुल-मिल गई की गज़ब का अपनापन ! मुझे 5118 वर्ष पूर्व के दशक में महाभारतीय प्रसंग स्मरण आ रहा है, जब पाण्डव स्वर्गगमन करते हैं उस समय एक 'श्वान' का जिक्र मिलता है ! अर्थात् दु:ख हो सुख हो मनुष्य का वफादार साथी या यूं कहें 'मानव- सहचर/सहचरी' श्वानों को माना गया है !
संस्कृत में 'श्वान' शब्द है । भाषा संस्कार के नज़रिये से मानव के इस आदिम साथी का नाम 'कुत्ता' है, जबकी कुछ अज्ञानी जनों द्वारा हिन्दी में 'गाली' समझा जाता है । कुत्ते के लिए भी सभ्य शब्द 'श्वान' ही समझा जाता है। अब आप लोग हतप्रभ होंगे की आज मैं 'कुत्ता' विश्लेषण में क्यों लग गया ? तो मित्रों मैं पिछले दिनों 'बेंगलोर' प्रवास पर गया हुआ था वहां 'कुक्के राघवेन्द्र मठ' के प्रांगण के समीप एक अपार्टमेंट में हमारे शिष्य श्री मीतेश गांधी जी एवं उनकी धर्मपत्नि श्रीमती स्वाती गांधी' रहते हैं, उनके फ्लैट में 'माली' नामक 'शुनी' अर्थात् बोलचाल की भाषा में 'कुतिया' और पश्चिमी भाषा में Doggy से हमारी मुलाकात हुई ! हालाकी मैं व्यक्तिगत तौर पर एक ज्योतिषी होने के नाते मैं कुत्तों को अपशकुन मानता रहा हुं, लेकिन तंत्र और 'आगम' शास्र का जब भी अध्ययन करता हुं, तब यह 'कुत्ता' भैरव के वाहन 'श्वान' जो शैव सम्प्रदाय के पथ प्रदर्शक व शिव-साधक के रुप सहज ही पूज्य और प्रणम्य हो जाते हैं ! खैर, इनकी गज़ब की 'घ्राण' शक्ति अर्थात् सूंघने की शक्ति इस योनि में होती है, तभी तो इसे 'ऋग्वेद में जघन्य आवाज करने वाला यमराज का दूत माना जाता है ! जिस व्यक्ति का प्राणांत होना होता है, उसके प्राण वायु को यमराज के मंत्री चित्रगुप्त जी के श्रवण और श्रवणियों के सहायक 'श्वान' अर्थात् कुत्ते को प्राय: आपने देखा होगा, जिसके घर कोई मृत्यु होनी रहती है उसके दरवाजे पर अक्सरहां 'जघन्य-उच्च-स्वर' करते हैं, जिसका जिक्र ऋग्वेद में भी किया गया है, इसलिए ज्योतिष के शकुन-अपशकुन शास्त्र में कुत्ते और कुतिया को अपशगुन माना जाता है और इन्हें कबूतर और उल्लू के साथ यमदूत का सहयोगी माना गया है, अत: मैंने कभी अपने निवास शांतिनगर, भिलाई में कुत्ता पालने की बात तो दूर मैं इनके अन्दर से आती बदबू, मांश-भक्षण करने वाली यह श्वान योनि तथा चाटने की आदत, इससे शख्त नफ़रत मुझे होती थी ! किन्तु, जब मैं 'बेंगलोर गांधी दम्पती के यहां पहुंचा तो....'माली' नामक Doggy से मुलाकात हुई !
हमारी सांसे थमी सी थी... बड़ी बड़ी आंखे....इसकी अक्रामकता को देख मैं सोचा कहीं चढ़ बईठी तो बस महाराज तो गयो...... अती विकट स्थिति थी मेरे सामने.......कैसे कहुं की 'भाई इसे हटाओ'.....
क्योंकी 'माली' से इतना लगाव 'स्वाती और मीतेश' जी का है, कैसे बोलुं की इसे हटा दो भाई..! ..अब इतनी ......ही देर में पुंछ को स्पंदित करती... हांफती..... मुझे एकबारगी देखती, घुर्रघुर्राती, भौं, भौं करती मेरी ओर दौड़ी और 'माली' मुझसे लिपट गई... मानो मुझको वर्षों से जानती व पहचानती हो... और जरा सा हमने उसके माथे पर हाथ क्या... फेरा तो बस मत पूछो .....गज़ब का दुलार.....! और वह मेरे गोद में आराम से सो गई ...कृतज्ञता प्रकट करने के लिये वह... मेरे हाथों, पैरों को..चाटती हुई प्रेम का इज़हार करती !
मित्रों मैं तो ठहरा अक्खड. गांव, गंवई और महाराज आदमी ! हमारे गांव देहात में भोजपुरी, अवधी और छत्त्तीसगढ़ी में 'कुक्कुर' कहते हैं। वैसे 'श्वान' शब्द का जन्म 'शुन्' या 'श्वि' से हुआ, इनमें साथ-साथ चलने , फलने- फूलने, बढ़ने, विकसित होने का भाव है। कुत्ता आदिकाल से ही मानव-सहचर रहा है। जैसा की आपको हमने पूर्व में निवेदन किया है ! महाभारत में पांडवों के स्वर्गगमन के प्रसंग में उनके साथ कुत्ते के होने का भी उल्लेख मिलता है। शुरू से ही मानव बस्तियों में कुत्तों का भी आवास रहा है और उनकी वंशवृद्धि होती रही है सो इसी वृत्ति के चलते कुक्कुर को मिला एक सभ्य नाम 'श्वान'। कुत्ता शब्द का स्त्रि-वाची शब्द तो हिन्दी में कुत्ती या कुतिया है मगर श्वान का नही मिलता। दरअसल संस्कृत में श्वान के अलावा 'शुनकः' शब्द भी है। इसी से बना है 'शुनी' है ! कालिका पुराण, शिव महापुराण, भविष्योत्तर पुराण आदि दर्जनों पुराणेतिहास में आपने भैरव को नंदी, भृंगी, महाकाल, वेताल की तरह भैरव को शिवजी का एक गण बताया गया है, जिसका वाहन कुत्ता है।
ब्रह्मवैवर्तपुराण में भी १ . महाभैरव, २ . संहार भैरव, ३ . असितांग भैरव, ४ . रुद्र भैरव, ५ . कालभैरव, ६ . क्रोध भैरव, ७ . ताम्रचूड़ भैरव तथा ८ . चंद्रचूड़ भैरव नामक आठ पूज्य भैरवों का नाम आता है ! काशी के कोतवाल कहे जाने वाले 'काल भैरव' को भला कौन नहीं जानता...तो वहीं हिमालय की तलहटी में पहाड़ियों के सुरम्य प्रकृति नैनीताल के बटुक भैरव यानी 'गोलु' बाबा को भला कौन नहीं जानता ! भैरव: पूर्णरूपोहि शंकरस्य परात्मन:। मूढास्तेवै न जानन्ति मोहिता:शिवमायया॥
जहां उनके वाहन 'श्वान' की पूजा विशेष रुप से की जाती है, जिससे उनके स्वामी भैरव प्रसन्न होते हैं ! यहां मैं आपको बताऊं की जिसकी कुण्डली में गोचर, विंशोत्तरी और जन्मांक में राहु ग्रह प्रबल हो उसे 'कुत्ता' का लालन पालन शुभद होगा ! मैंने भिलाई के एक परिवार की आर्थिक स्थिति से परेशानी को देखकर बताया तो उन्होंने एक 'श्वान' की सेवा और हर रविवार को भैरव पूजन करना आरंभ किया, जिसका परिणाम उन्हें बेहद आर्थिक अनुकूलता दीखी ! किन्तु कुछ लोगों को 'कुत्ता' पालन करना बेहद नुकसानदायक भी होता है, अत: इस संदर्भ में एक बार ज्योतिषीय परामर्श अवश्य लेना चाहिये ! किन्तु, मेरा मानना है की 'कुत्ता' पालन तो ठीक है परन्तु मार्ग पर, सार्वजनिक स्थल पर कुत्ते को शौच कराना यह बिल्कुल अच्छी बात नहीं ! इससे आपके जन्मांक में 'सूर्य,वृहस्पति ग्रह की शुभता और साकारात्मकता विपरित हो हानिप्रद हो सकता है ! चलते चलते मैं आपको एक दिलचस्प प्रसंग बताते चलूं ! भिलाई में एक सज्जन के यहां 'वास्तु विजीट' पर गया तो देखा, कि उनके पूरे छत पर 'उनके कुत्ते ने शौच किया' है ! तो यह मुझे बेहद चौंकाने वाला दृश्य दिखा ! मैंने उन्हें त्वरित 'वास्तुपुरुष' के बारे में बताया और उन्हे छ़त को स्वच्छ रखने का निर्देश दिया ! !! कहानी एक 'माली' नामक Doggy का जो धर्म शास्त्रों में 'शुनक: या शुनी' है !! ( आपको यह आलेख कैसा लगा..? आपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें !
- आचार्य पण्डित विनोद चौबे
संपादक- 'ज्योतिष का सूर्य' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका, सड़क-26, शांतिनगर, भिलाई, दूरभाष क्रमांक -9827198828
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