ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे

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गुरुवार, 16 नवंबर 2017

वेद-वेदांग रहस्यम् (पुष्प-1)

वेद-वेदांग रहस्य (पुष्प- 1)

"विनम्र निवेदन साथियों !  

मैं कुछ दिनों से सोच रहा था ! अपने प्रिय पाठकों केे लिये कुछ नियमित नूतन व सारगर्भित तथा संक्षिप्त, अनुकूल, सरल और सुगम जानकारियां आपके समक्ष प्रस्तुत करुं ! इस श्रृंखला में वेद-वेदांग पर चर्चा हम करेंगे !  

 ऋग्वेद संसार के सभी प्राचीन ग्रंथो व धार्मिक किताबों में सबसे प्राचीन स्त्रोत (वैसे तो वेद अपौरुषेय है और करोड़ों वर्ष पूर्व ही वेद का प्राकट्य हो गया था परन्तु, भारतीय एवं वैदेशिक विद्वानों के शोध के मुताबिक 3500 वर्षों से भी अधिक प्राचीन ) है. साथ ही इसे चारों वेदों में भी प्रथम स्थान प्राप्त है. ऋग्वेद दो शब्दों का समूह है – ऋग + वेद, जिनमें “ ऋग “से अभिप्राय “ स्तुतिपरक मंत्र “ से है और “ वेद “ का अर्थ “ ज्ञान और ज्ञाता “ से है. इसीलिए ऋग्वेद में देवी देवताओं की स्तुति, उनकी अराधना और उनके यज्ञ में आवाहन के लिए मंत्र व सूक्त पायें जाते है. सूक्त से अभिप्राय वेद मन्त्रों के समूह से ही है. हर सूक्तों की खास बात ये है कि इनमेएकदैवत्व और एकार्थ का प्रतिपादन मिलता है. ऋग को “ ऋक “ भी कहा जाता है. इसके अलावा ऋग को ब्रह्मा, प्राण और अमृत भी कहा जाता है तो इस तरह से ऋग्वेद का एक अर्थ ब्रह्मज्ञान से भी है अर्थात, ऋग्वेद के मन्त्रों के जाप से ब्रह्म की व अमरत्व की प्राप्ति होती है.

ऋग्वेद संहिता विभाजन :
ऐसा माना जाता है कि पहले चारों वेद एक ही संहिता के हिस्से थे किन्तु इन्हें समझना बहुत कठिन होता था, तो लोगों की भलाई के लिए और इनको अध्ययन में सुगम बनाने के लिए महर्षि वेद व्यास जी ने इन्हें 4 हिस्सों में बाँट दिया ( इसीलिए उन्हें वेद व्यास के नाम से जाना जाता है ), जिन्हें आज हम जानते है. साथ ही उन्होंने इसे दो भागों में भी विभाजित कर दिया. जिनमे पहला है अष्टक क्रम और दुसरा है मंडल क्रम. चारों वेदों में ऋग्वेद संहिता सबसे बड़ी भी है. ऋग्वेद में ना सिर्फ देवताओं बल्कि पंचतत्वों ( अग्नि, वायु, पृथ्वी, जल और आकाश ) और प्राकृतिक के संचालक तत्वों जैसेकि विधुत, सूर्य, बादल, वर्षा इत्यादि का भी पूर्ण वर्णन मिलता है.

1.       अष्टक क्रम : अष्टक क्रम में ऋग्वेद की संहिता को 8 अष्टकों में बांटा गया है साथ ही हर अष्टक में 8 ही अध्याय है. इसीलिए इसे अष्टक क्रम कहा जाता है. हर अष्टक के हर अध्याय को कुछ वर्गों में विभाजित किया गया है जिनमे ऋचाओं ( गेय मंत्र ) का वर्णन मिलता है. अष्टक क्रम में कुल मिलाकर 64 ( 8 * 8 = 64 ) अध्याय और 2006 वर्ग मिलते है.

2.       मंडल क्रम : जहाँ तक मंडल क्रम की बात है तो सम्पूर्ण संहिता को कुल 10 मंडलों / किताबों में बांटा गया है. जहाँ हर मंडल में कई अनुवाक मिलते है और हर अनुवाक सूक्तों से मिलकर बना है. हर सूक्त में कुछ कल्याणकारी मंत्र दिया गये है. गणना के अनुसार ऋग्वेद की सम्पूर्ण संहिता में 10 मंडल के अतिरिक्त 85 अनुवाक व 1028 सूक्त मिलते है. इन 1028 सूक्तों में कुल मिलाकर 10552 मंत्र दिया गएँ है.

अगर ध्यान से देखा जाएँ तो पूरी ऋग्वेद को इतने सुंदर तरीके से विभाजित व व्यवस्थित किया गया है कि इनका हर कोई सुगमता से अध्ययन कर सकता है और यही इनको विभाजित करने का मूल उद्देश्य भी था. वेद के हर अक्षर, हर शब्द, हर मंत्र इत्यादि को इतने ध्यान से और गिनकर लिखा गया है ताकि कोई भी वेदों में मिलावट ना कर सके.

ऋग्वेद संहिता
ऋग्वेद के ख़ास मंत्र और सूक्त :
वैसे तो ऋग्वेद का हर मन्त्र और सूक्त बहुत ख़ास और लाभकारी है लेकिन ऋग्वेद में मृत्यु पर विजय दिलाने वाला और दीर्घ आयु दिलाने वालामहामृत्युंजय मंत्र व हर सुख और मानसिक शान्ति दिलाने वाला महानविख्यात गायत्री मंत्र भी वर्णित किया गया है. इनके अलावा ऋग्वेद में लोगों की भलाई के लिए अन्य अनेक सूक्त जैसा कि रोग निवारक सूक्त, श्री युक्त, हिरण्यगर्भ सूत्र व विवाह सूत्र इत्यादि का वर्णंन भी ऋग्वेद में मिलता है.

-आचार्य पण्डित विनोद चौबे, संपादक- 'ज्योतिष का सूर्य' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका, भिलाई, मोबाईल नं. -9827198828 

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