ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे

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बुधवार, 29 जून 2011

क्या शंकर गुहा नियोगी के हत्यारों का सचमुच होगा पर्दाफाश........?

क्या शंकर गुहा नियोगी के हत्यारों का सचमुच होगा पर्दाफाश........?

उच्चतम न्यायालय से रिहा हो शंकर गुहा नियोगी हत्याकांड का एक प्रमुख आरोपी चंद्रकांत शाह बीस वर्षों बाद अब हत्याकांड से जुड़े असली तथ्यों को उजागर करना चाहता है, उसका कहना है कि मुझे और पल्टन मल्लाह को हत्याकांड में सिर्फ बलि का बकरा बनाया गया जबकि नियोगी की हत्या में कु...
छ बड़े उद्योगपति, शराब माफिया व उस दौर के राजनीतिज्ञ सभी शामिल थे। चंद महीने पहले अन्ना हजारे के आंदोलन से प्रभावित चंद्रकांत शाह ने खुले आम ऐलान कर दिया है कि नियोगी हत्याकांड में संलिप्त लोगों को अब वह नहीं छोड़ेगा, केस को री-ओपन करवाने के प्रयास में लगे चंद्रकांत ने इस मामले को लेकर स्वामी अग्निवेश तक गुहार लगा दी है, शाह का कहना है कि वो नियोगी को देवता की तरह पूजने वाले संगठन छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा को भी इस न्याय की लड़ाई में शामिल करने की मंशा रखता है।

00 सच्ची श्रद्धांजलि की चाहत रखता हूं-चंद्रकांतचर्चा में चंद्रकांत शाह ने जो कुछ तथ्य सामने रखे हैं, अगर उनमें सच्चाई है तो यह मामला एक बार फिर जबर्दश्त रूप ग्रहण करेगा। चंद्रकांत के ऐलान से एक बार फिर श्रमिक संगठनों में नियोगी हत्याकांड के आरोपियों को सजा दिलवाने की मंशा उफान पर है। चंद्रकांत ने कहा है कि स्थानीय पुलिस ने सबसे पहले गलती की और चंद लोगों को बेवजह इस मामले में घसीट लिया और जो वास्तविक रूप से नियोगी की हत्या की नियत से बैठकें करते रहे, प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से शामिल हुए उन्हें या तो बड़ी आसानी से बाहर निकाल लिया गया या फिर उनके नाम पर चर्चा करना स्थानीय पुलिस प्रशासन से उचित नहीं समझा। हत्याकांड में आरोपी बनाये गये चंद्रकांत शाह चार वर्षों की सजा का दंश अब भी नहीं भूला सके हैं। उनका कहना है कि स्थानीय पुलिस द्वारा बनाये गये खाका को ही आधार मान सीबीआई उसी ढर्रे पर काम करती रही नतीजतन नियोगी के वास्तविक हत्यारे आज भी खूली हवा में सांस ले रहे हैं, ऐशो-आराम का जीवन व्यतीत करते हुए समाज सेवक की भूमिका तक बना बैठे हैं, उन सभी लोगों को बेनकाब कर सजा दिलवाना ही शंकर गुहा नियोगी के प्रति उनकी सच्ची श्रद्धांजलि होगी। दिल्ली में मौजूद श्री शाह ने बताया कि सीनियर वकीलों से वे इस संबंध में चर्चा कर चुके हैं। स्वामी अग्निवेश से उन्हें फिलहाल कोई जवाब नहीं मिला है। कुछ विशेषज्ञों ने चर्चा में उन्हें कहा है कि पहले इस मामले में जनसमर्थन जुटा कर लोगों में जागरूकता पैदा करें, उसके बाद कानूनी लड़ाई प्रारम्भ की जायेगी।

00 हवाई महल से नहीं निकल सकी सीबीआईजहां तक निचली अदालतों की बात की जाये, नियोगी हत्याकांड में बनाये गये सभी आरोपी एक के बाद एक बरी होते रहे अंत में उच्चतम न्यायालय ने केवल पल्टन मल्लाह को ही सजा का पात्र माना। चंद्रकांत शाह का कहना है कि नियोगी हत्याकांड में दोषी पाया गया पल्टन एक मोहरा है, जबकि उसके पीछे छिप कर वार करने वाले सारे लोग अब भी आजाद हैं, उनके खिलाफ ठोस सबूत का दावा भी चंद्रकांत करते हुए कहते हैं कि सीबीआई जांच अफसरों की भूमिका भी इस केस में संदेह के दायरे में थी। उन्होंने कहा कि स्थानीय पुलिस प्रशासन ने जो कहानी गढ़ हवाई महल तैयार किया था उसी में सीबीआई उड़ती रही। हत्याकांड में नाम लाने व हटाने की धौंस दे कर पुलिस प्रशासन व अन्य जांच एजेंसियों ने अपनी जेबें ब्लेकमेलर की भूमिका में रहते हुए भरी हैं।
नियोगी हत्याकांड के बीस वर्ष बाद अचानक चंद्रकांत का सामने आना और इस तरह का ऐलान एक बार फिर भिलाई, रायपुर के उद्योग जगत में हलचलें बढ़ा गया है। बरी होने के चार वर्ष बाद चंद्रकांत के सामने आने के सवाल पर उनका जवाब है कि वे उस समय अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों में फंसे हुए थे। नियोगी हत्याकांड का आरोपी बना दिये जाने से साथी उद्योगपति, व्यावसायी, दोस्त, रिश्तेदार सबके सब मेरे परिवार व मुझसे किनारा कर चुके थे। बरी होने के बाद भी मेरा नाम सुन कर लोग आसानी से यह दुहरा देते हैं कि नियोगी हत्याकांड वाले चंद्रकांत शाह.........? शाह का कहना है कि नियोगी जब औद्योगिक क्षेत्र में उद्योगपतियों के खिलाफ मोर्चा खोले हुए थे, अनेक बड़े-छोटे उद्योगों में हड़ताल होने लगी थी तब भी उनके द्वारा संचालित ओसवाल उद्योग के श्रमिक पूरी तरह संतुष्ट थे, उनकी फर्म में न तो कभी हड़ताल की नौबत आई और न ही तालाबंदी की। ऐसी स्थिति में वे बार-बार ये कहते रहे कि नियोगी की हत्या करवाने के पीछे मेरे पास कोई वजह ही नहीं थी फिर मुझे क्यों फंसाया जा रहा है, लेकिन उनकी किसी ने नहीं सुनी।

00 अब सक्षम हूं इसलिये अवश्य खोलूंगा राजशाह कहते हैं कि अनेक दरवाजे पर खुद को बेकसूर साबित करने की लगने वाली गुहार के बदले में मुझे खुले तौर पर धमकियां मिलने लगीं कि चुप न रहने पर परिवार को जान से मार देंगे। चूंकि उन दिनों बच्चे छोटे थे, मुझे इस केस में उलझाने के बाद परिवार पूरी तरह टूट सा गया था, इसलिये सब कुछ ईश्वर के हाथ छोड़ कर हमने चुप्पी साधे रखी, लाख कष्ट व इल्जाम का दंश झेलते हुए अंतत: सत्य की जीत हुई। सुप्रीम कोर्ट से बरी होने के बाद मैंने परिवार की सारी जिम्मेदारियां सम्हाली। बच्चों की शादियां की, अपने बंद हो चुके उद्योग को दूसरे शहर से प्रारम्भ कर एक मुकाम हासिल करने के बाद मैं अपने खिलाफ हुए जुल्म और स्व. शंकर गुहा नियोगी के हत्यारों को सजा दिलाने कमर कस तैयार हूँ।
एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि अन्ना हजारे के आंदोलन में जिस प्रकार खर्च और फायनेंस करने की बातें सामने आईं थी वैसा मेरे साथ नहीं होगा, पूरे आंदोलन में मैं स्वयं खर्च करने सक्षम हूं। भिलाई के एसीसी में स्थित नियोगी चौराहे से वे जल्द जनआंदोलन शुरू करेंगे और उसी मंच से उन सारे लोगों को बेनकाब करेंगे जो कि नियोगी के वास्तविक हत्यारे थे। उन्होंने कहा कि अब न तो खुद को खोने का भय है और न ही परिवार के कमजोर होने की अड़चन। अब तो सीधी लड़ाई जनता के सहयोग से वे लड़ेंगे और नियोगी हत्याकांड की बंद फाईल फिर से खुलवा कर वास्तविक हत्यारों को सजा दिलवाना ही एकमात्र उनका मकसद है। लगातार दिल्ली में रूक कर स्वामी अग्निवेश व अन्ना हजारे तक वे अपनी गुहार लगा चुके हैं। उनका कहना है कि वहां से हरी झण्डी मिलते ही वे जनसहयोग के लिये भिलाई में अपील कर और लोगों को साथ जोड़ इसे एक आंदोलन का रूप देंगे।

00 पहल करेंगे तो अवश्य मुक्ति मोर्चा साथ देगा-बागड़ेछत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा के अध्यक्ष भीमराव बागड़े ने बताया कि चंद्रकांत शाह द्वारा फिलहाल उनसे इस संबंध में कोई चर्चा नहीं हुई है। अगर वे पहल करते हैं और मुक्ति मोर्चा की जरूरत महसूस करेंगे तो हम सड़क की लड़ाई में इसलिये उनका साथ देंगे क्योंकि ये मामला हमारे नेता शंकर गुहा नियोगी की हत्या का है। श्री बागड़े ने कहा कि न्यायालय के फैसले से मुक्ति मोर्चा बुरी तरह आहत था, इसलिये केस री-ओपन करवाने के प्रयास मोर्चा ने किया था जो कि विफल रहा। श्री बागड़े कहते हैं कि मुक्ति मोर्चा हमेशा कहता रहा है कि नियोगी हत्याकांड में भाड़े के हत्यारे और कुछ मोहरों को ही पकड़ा गया था लेकिन हत्या की साजिश रचने वाले अभी भी खुले घूम रहे हैं। उन्होंने बताया कि मुक्ति मोर्चा चंद्रकांत शाह को हत्याकांड में फंसाया गया मोहरा ही मानता है, खुले तौर पर हम शुरू से कहते आ रहे हैं कि नियोगी हत्याकांड में कैलाश पति केडिया, मूलचंद शाह जैसे कुछ अन्य लोग सीधे तौर पर गुनहगार हैं लेकिन न तो पुलिस प्रशासन से हमारी सुनी और न ही सीबीआई। चंद्रकांत शाह की पहल का स्वागत करते हुए श्री बागड़े कहते हैं कि सचमुच जागरूकता जरूरी है, जनजागरण से ही नियोगी के वास्तविक हत्यारों को सजा हो सकती है। चंद्रकांत शाह से जब सवाल किया गया कि उन्होंने मुक्ति मोर्चा को आंदोलन में जोडऩे के लिये कोई पहल की है, तो उन्होंने बताया कि चूंकि मुक्ति मोर्चा के तीन से चार टूकड़े हो गये हैं इसलिये वे नहीं जानते कि किससे चर्चा की जाये। दिल्ली से लौटने के बाद वे जल्द मुक्ति मोर्चा के सभी गुटों से बात कर जनजागरण अभियान शुरू करेंगे।

00 फैसलों से असंतुष्ट ही रहा नियोगी परिवार..............निचली अदालतों से उच्चतम न्यायालय तक नियोगी हत्याकांड में कुल छ: आरोपी बनाये गये थे जिनमें से एक के बाद एक पांच आरोपियों को न्यायालय ने बरी कर दिया था। लगभग 14 से 15 वर्ष तक न्याय व्यवस्था की राह ताक रहे नियोगी के परिवार और उन्हें आदर्श मान समर्पित भाव से अलग-अलग संगठन चला रहे मुक्ति मोर्चा के नेता भी एक हद तक फैसले के बाद निराश ही दिखाई पड़े। 27 सितम्बर 1991 को शंकर गुहा नियोगी की गोली मार हत्या कर दी गई थी। बरसों तक लम्बा खिंचता गया यह मामला शांतिपूर्वक इंतजार के बाद भी नियोगी परिवार को ढाढस नहीं बंधा पाया।
स्व. नियोगी की पत्नी आशा ने फैसला आने के बाद ही कहा था कि अदालत के फैसले से उन्हें मायूसी ही मिली है क्योंकि असली कातिल छोड़ दिये गये। राजधानी से 130 किलोमीटर दूर दल्ली राजहरा इलाके में रहने वाली आशा नियोगी ने कहा था कि उन्हें इस बात की खुशी है कि भाड़े के हत्यारे पल्टन मल्लाह को उम्र कैद की सजा मिली लेकिन हत्या की साजिश रचने वाले लोग आज भी चैन की जिंदगी जी रहे हैं, यह बड़े ही दु:ख का विषय है। नियोगी का बेटा जीत गुहा और बेटी मुक्ति भी अदालत के फैसले से संतुष्ट नहीं थे। हालांकि जीत वर्तमान में छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा की कमान सम्हालने की बजाय जन मुक्ति मोर्चा के प्रमुख हैं फिर भी नियोगी की हत्या करने व करवाने वालों के खिलाफ उनकी लड़ाई जारी है। छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा जो आज कई धड़ों में बंट गया है, उसके सभी धड़े चाहे वो जनक ठाकुर हों या फिर भीम राव बागड़े, सब लोग नियोगी के हत्यारों को कड़ी सजा दिलाने की चाहत रखते हैं। ऐसी स्थिति में चंद्रकांत का खुल कर सामने आना क्या इन लोगों के लिये सम्बल बनेगा, यह समय के गर्भ में छिपा जरूर है लेकिन इसे लेकर चर्चाओं का बाजार गरमाने लगा है।

00 नियोगी मरा नहीं करते, लड़ाई जारी है...............लेबर लीडर शंकर गुहा नियोगी आज भी उन सभी श्रमिकों के लिये देवता का ही रूप हैं जो कि उद्योगपतियों के शोषण के शिकार व अधिकार से वंचित मजदूरों के लिये बगावत की जंग छेडऩे आमादा रहते हैं। नियोगी को इस जहान से गये 20 वर्ष बीतने के बाद भी वे कहीं न कहीं इन श्रमिकों की श्रद्धा व विश्वास में समाए हुए से दिखाई देते हैं हालांकि छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा नियोगी के जाने के बाद तीन प्रमुख व अनेक उप हिस्सों में टूट गया है लेकिन नियोगी की शहादत के दिन उमड़ी मजदूरों की बेपनाह मौजूदगी ये एहसास करा जाती है कि इन्हें अपने मुखिया नहीं बल्कि देवता नियोगी के मोह ने खिंच रखा है। लगभग दो दशक से हजारों की भीड़ में शामिल मजदूर व किसान एक ऐसे व्यक्ति को श्रद्धांजलि देने आते हैं जो उनके लिये अब कोई करिश्मा नहीं कर सकता लेकिन उस करिश्मे की आस सब में अभी भी पहले की ही तरह दिखाई दे जाती है। लड़ाई अभी भी उन्हीं मुद्दों पर जारी है लेकिन नियोगी का विजयी स्वप्न बना छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा अब पल-पल में बिखर व सिमटता दिखाई देने लगा है। मुक्ति मोर्चा के कुछ धड़े तो अब राजनीतिक दलों से भी हाथ मिला साथ चल रहे हैं ऐसी मिलनसारिता नियोगी के समय कभी चर्चा में भी नहीं थी लेकिन समय के साथ कभी एकजुटता की मिसाल बना छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा अब विखंडित रूप में दिन-ब-दिन अपनी कमजोरी का उदाहरण स्वयं बनता जा रहा है।

00 कभी न खत्म होने वाली दास्तां थे नियोगी
श्रमिकों का शोषण तो हर सदी में होता रहा है। मुगल काल में श्रमिक गुलामी भरा जीवन जीता रहा, अंग्रेज शासन काल में फिरंगी भारतीय को मजदूर से अधिक कहीं नहीं समझते थे। मजदूरों पर अत्याचार का सिलसिला देश की आजादी के बाद भी खत्म नहीं हुआ। यूनियन बनती बिगड़ती रहीं लेकिन श्रमिकों के अधिकार की लड़ाई और उन पर जुल्म अत्याचार की प्रथा सदियों से चली आ रही है। छत्तीसगढ़ में शंकर गुहा नियोगी ने एक अमर क्रांति शुरू की थी मजदूरों को उनका वास्तविक हक दिलाने की। नियोगी की तर्क शक्ति व एकमात्र लक्ष्य की ओर बढऩे की अदा ने अच्छे-अच्छे उद्योगपतियों को नाकों चने चबवा दिया था। श्रमिकों के लिये कई कानून भी सरकार ने बनाये लेकिन राजनीति की शह पर पलती नौकरशाही और उद्योगपतियों की साजिश श्रमवीरों को उनके पसीने का हक दिलाने हमेशा आड़े आती रही। शोषक वर्ग की आंख का कांटा बन चुके नियोगी को हमेशा के लिये गहरी नींद में सुला दिया गया। मजदूरों का खून चूस चूस कर एयर कंडिशनर कमरों में बैठने वाले, लग्जरी गाडिय़ों में घूमने वाले मजदूरों को हेय दृष्टि से देखने वाले यह तक नहीं सोचते कि दुनिया में मजदूर न होते तो यह विश्व कैसा दिखता, कैसा लगता?
मजदूर, कालका, कुली, काला पत्थर, इंसाफ की आवाज जैसी कई फिल्मों में मजदूर वर्ग के साथ हो रहे शोषण को दिखाने के बाद भी न तो सरकारें जागीं और न ही शोषण करने वालों की अंतर्रात्मा.....। मजदूर की मजबूरी का फायदा उठाने वालों को सोचना चाहिए कि आखिर उसकी मेहनत और कारीगरी से ही हम एक अदद घर-मकान में रहने का सुख हासिल कर पाते हैं, छोटे से उद्योग से कुछ लोग कारपोरेट जगत में शुमार हो जाते हैं, उनकी सफलता के पीछे छिपे श्रम बल को भला कैसे भूलाया जा सकता है? उद्योगपतियों की सफलता में जिसका पसीना गिरा है, उसे कैसे नकार देते हैं लोग? क्यों ये भूल जाते हैं कि मजदूर का पसीना सूखने से पहले उसके श्रम का फल उसे अवश्य मिल जाना चाहिए। शंकर गुहा नियोगी ऐसी ही सोच रखने वाले श्रमिकों के नेता थे। उनकी हत्या करवाने या करने वाले सचमुच अगर सजा नहीं पा सकें हैं तो उन्हें सीखचों के पीछे धकेलना समाज का एक कर्तव्य भी है। अगर चंद्रकांत शाह के आरोपों में कोई बनावट या वैमनस्यता न छिपी हो तो सचमुच उन्हें नि:स्वार्थ भाव से यह लड़ाई लडऩी चाहिए। भले वे अकेले हैं लेकिन अगर सत्य मार्ग पर चल रहे हैं तो यकीनन कारवां जल्द बन जायेगा। अगर यह लड़ाई सार्थक हो गई तो आने वाली सदियों में नियोगी की दास्तां सचमुच कभी नहीं खत्म होगी बिल्कुल उनकी यादों की तरह।

- संतोष मिश्रा-
(पत्रकार)
4/4 सीजी हाऊसिंग बोर्ड कालोनी
औद्योगिक क्षेत्र, भिलाई-490026
(मो. 09329-117655)
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