अश्वमेध यज्ञ से कम नहीं शिवरात्रि व्रत
ज्योतिषाचार्य पंडित राजेश पाण्डेय, भिलाई (छ.ग.)-०९९२६१९००६९
महाशिवरात्रि का पर्व एक मार्च की सायं सात बजकर 52 मिनट पर त्रयोदशी लगने पर आरंभ हो रहा है और अगले दिन बुधवार अर्थात दो मार्च की रात्रि नौ बजकर 47 मिनट तक रहेगा। यह जानकारी सुबाथू के वरिष्ठ लेखक व ज्योतिषाचार्य मदन गुप्ता ने दी। उन्होंने कहा कि मान्यता है कि बुधवार को यह व्रत रखने से अश्वमेध यज्ञ के तुल्य फल प्राप्त होता है। इस दिन काले तिलों सहित स्नान करके व व्रत रखके रात्रि में भगवान शिव की विधिवत आराधना करना कल्याणकारी माना जाता है। दूसरे दिन अर्थात चौदस के दिन ब्राह्मणों एवं दानादि के बाद स्वयं भोजन किया जाता है। भारतीय जीवन में ऐसे लोक पर्व वैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य में भले ही धूमिल हो रहे हों, परंतु इनका वैज्ञानिक पक्ष आस्था के आगे उजागर नहीं हो पाता। भारतीय आस्था में चाहे सूर्य ग्रहण हो या कंुभ का पर्व, दोनों ही समान महत्त्व रखते हैं। ज्योतिषाचार्य श्री गुप्ता ने कहा कि शिवरात्रि एक ऐसा महत्त्वपूर्ण पर्व है, जो देश के हर कोने में मनाया जाता है। मान्यता है कि सृष्टि के आरंभ में इसी दिन मध्य रात्रि भगवान शंकर का रुद्र के रूप में अवतरण हुआ था। प्रलय की वेला में इसी दिन प्रदोष के समय शिव तांडव करते हुए ब्राह्मंड को तीसरे नेत्र की ज्वाला से समाप्त कर देते हैं, इसलिए इसे महाशिवरात्रि अथवा कालरात्रि भी कहा जाता है। काल के काल और देवों के देव महादेव के इस व्रत का विशेष महत्त्व है। एक मतानुसार इस दिन को शिव विवाह के रूप में भी मनाया जाता है। ईशान संहिता के अनुसार फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को अर्द्धरात्रि के समय करोड़ों सूर्य के तेज के समान ज्योर्तिलिंग का प्रादुर्भाव हुआ था। ज्योतिषाचार्य मदन गुप्ता ने कहा कि व्रत परंपरा के अनुसार प्रातः काल स्नान से निवृत्त होकर एक वेदी पर, कलश की स्थापना कर गौरी शंकर की मूर्ति या चित्र रखें। कलश को जल से भरकर रोली, मौली, अक्षत, पान सुपारी, लौंग, इलायची, चंदन, दूध, दही, घी, शहद कमलगट्टा, धतूरा, बिल्व पत्र, कनेर आदि अर्पित करें और शिव की आरती पढ़ें। रात्रि जागरण में शिव की चार आरती का विधान आवश्यक माना गया है। इस अवसर पर शिवपुराण का पाठ भी कल्याणकारी कहा जाता है।
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