ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे

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रविवार, 19 जून 2011

नंगा नाचते हुए लड़की को देखकर पापा जी वगैर मुंछ वाले की तालीयों की गड़गड़ाहट

 नंगा नाचते हुए लड़की को देखकर पापा जी वगैर मुंछ वाले की तालीयों की गड़गड़ाहट
 पश्चिमी सभ्यता की अंधाधुंध नकल की प्रवृति का परिणाम है कि आज लड़कीयां बेखौफ शराब की आदि हो रहीं हैं।
और रेम्प पर नंगा नाचते हुए लड़की को देखकर पापा जी वगैर मुंछ वाले की तालीयों की गड़गड़ाहट भारत में पैर पसार लीया है।
भारत को दुनियाभर में संस्कृति और सभ्यता के लिए जाना जाता है। इस देश की मान्यताएं, मूल्य, आदर्श, सभ्यता और संस्कृति का आधुनिक युग में भी दुनिया लोहा मानती है लेकिन यह क्या कि उसी संस्कृति को लेकर कुछ लोगों के कारण देश विदेश में थू-थू हो रही है। आज टीवी पर अश्लीलता का गुणगान हो रहा है। हर तरफ हत्याओं का शोर है। आपसी रिश्ते खून में लहूलुहान हैं।

सदियों पुरानी कहावत है कि दूर का  ढोल सुहावन होता है यानि जो चीज़ आपके पास नही होती, आपसे दूर  होती है वह ज्यादा पसंद आती है। इसी कहावत का रंग आजकल हमारी  युवा पीढ़ी को चढ़ा हुआ है, उनके हर काम में पश्चमी सभ्यता का रंग छाया हुआ है। चाहे उनके कपड़े पहनने, बोलने, खाने-पीने, चलने-फिरने के ढंग हो, सब में पश्चमी सभ्यता का रंग देखने को मिलता है। दूर से पश्चिमी सभ्यता आकर्षित करती है, लेकिन अगर करीब जाकर देखा जाये तो यह सभ्यता खोखली है। बाहर  से यूं तो बहुत आकर्षक लगती है लेकिन अंदर से बहुत ही घिनौनी है। बडों का आदर, इज्जत, शर्म और हया जैसे शब्द भी नही मालूम। मैं मानती हूं कि आज की इस प्रतिस्पर्धात्मक  दुनिया में हर चीज का ज्ञान होना, बाहर की  दुनिया की  समझ होना बहुत जरूरी है परंतु भारतीय संस्कारों की  दहलीज लाँघ कर सफलता हासिल करना उचित नही है। मेरे इस कथन से बहुत से लोग सहमत नहीं होंगे और हर चीज़ के कुछ अच्छे  कुछ बुरे प्रभाव होते है। इसी बात को ध्यान में रखकर अगर  मान लिया जाये कि पश्चिमी सभ्यता अच्छी भी है तो इसका मतलब कहीं न कहीं कमी हम लोगो में है, हम दुसरों की  खामियां ढूंढने  में लगे रहते हैं जबकि वही खामियां हमारे अन्दर भी होती हैं।
-ज्योतिषाचार्य पं.विनोद चौबे महाराज

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