सिद्धान्त ज्योतिष ने खगोल शास्त्र, विश्व के वैज्ञानिकों को एस्ट्रोनामी के रूप में प्रदान किया है।
सर्वप्रथम श्रद्धेय भाई अवध राम पान्डेय जी मेरा इस प्रकार का प्रश्न करने का मतलब यह था की ज्योतिष केवल आज जन्म कुन्डली के निर्माण एवं जातक फल-कथन तक ही सिमित रह गया है और कुछ लोग उसी को ज्योतिष मान चुके हैं, लेकिन सिद्धान्त ज्योतिष के तरफ कोई ज्योतिषी अपना ध्यान आकर्षित नही करता क्योंकि टी.वी. चैनलों से लेकर समाचार पत्रों में दर्जनों ज्योतिषीयों की लम्बी फेहरिश्त है जिनमें प्रायः कुछ ऐसे ज्योतिषी हैं जो रेलवे बुक-स्टॉलों में लगे अप्रमाणित ग्रन्थों को पढ़कर अपना व्यवसाय, जैसे रत्न, भाग्यशाली यंत्रों को बेचने के अलावा उनको ज्योतिष की मूलभूत ज्ञान के प्रचार प्रसार या अपने अध्ययन कठोरता लाने की तनिक भी कोशिश नहीं करते।
ऐसे मार्केटींग में माहीर कथित ज्योतिषीयों के कार्ड, और लालकिताब जैसे अप्रमाणित ज्योतिष को ही भाई राजेन्द्र अग्रवाल जी शायद इसी को ज्योतिष मानते हैं , ऐसे लोंगों की संख्या काफी है ।
मैं पिछले वर्ष दिल्ली में आयोजित एक सम्मेलन में गया था। उसमें इसी सन्दर्भ पर अपने शोध पत्र की बातें आप सभी मित्रों को बताना चाहता हुँ--
वैज्ञानिक की माने या ज्योतिष की : इंग्लैंड की प्रतिष्ठित संस्था रॉयल एस्ट्रोनॉमिकल सोसाइटी 1922 में ही विज्ञान कांग्रेस में घोषणा कर चुकी है कि राशि 12 नहीं 13 है। यानी सूर्य और अन्य ग्रह 13 राशि मंडल (तारा मंडल) से होकर गुजरता है। इस तेरहवें तारा मंडल को वैज्ञानिकों ने नाम दिया है- ओफियुकस अर्थात यह एक यूनानी देवता नाम है। उक्त अधिवेशन में वैज्ञानिकों ने यह हवाला देते हुए कहा कि- ज्योतिष शास्त्र की कुछ गणितीय समस्याएँ थी जिस कारण से 13वीं राशि को शामिल नहीं किया गया। पहली समस्या यह कि 13 का पूर्ण भाग नहीं हो सकता। कुंडली को 13 खानों में बाँटना मुश्किल था। ग्रहों को 30 डिग्री से कम का ज्यादा गति को आधार बनाने पर भारतीय-ज्योतिष गणना में दिक्कतें होतीं पर
360 डिग्री को 12 हिस्सों में बाँटना आसान हैं। विषम संख्या से कई तरह कि विषमताएँ पैदा होती है शायद इसिलिए 13वीं राशि को नजरअंदाज किया गया। दूसरी ओर पाश्चात्य जगत में 13 का अंक अशुभ माना जाता है लेकिन भारतीय परम्परागत ज्योतिष के तटस्थता बनाये रखने के कारण पाश्चात्य ज्योतिष भी 12 पर अड़ा रहा। अर्थात भारतीय-ज्योतिष विषय पुरे विश्व में अपना लोहा मनवा चुका है इससे तो यही साबित होता है।
हालाँकि वैज्ञानिकों की माने तो राशियाँ तो 88 होना चाहिए। दरअसल वैज्ञानिकों ने हमारी आकाशगंगा को 88 तारा मंडलों में विभक्त किया है। तारामंडल अर्थात कुछ या ज्यादा तारों का एक समूह। इन तारा मंडलों में से ज्योतिष अनुसार 12 और वैज्ञानिकों अनुसार 13-14 तारा मंडलों में सूर्य और सौर्य परिवार के अन्य ग्रह भ्रमण करते हैं जिस वक्त चंद्र वृश्चिक तारा मंडल या राशि में भ्रमण कर रहा है उस काल में यदि किसी का जन्म हुआ है तो उसकी राशि वृश्चिक मानी जाएगी। तारा मंडल दरअसल मील के पत्थरों की तरह है जिससे आकाश गंगा के विस्तार क्षेत्र का पता चलता है। ऐसी कई आकाश गंगाएँ है।
जरूरी नहीं की ग्रह सिर्फ 12 से 13 राशियों में ही भ्रमण करते रहते हैं। कुछ ग्रह सैकड़ों सालों में तो कुछ थोड़े ही सालों में बारह राशियों को छोड़कर 88 में से किसी भी राशि में कुछ काल के लिए भ्रमण करने लगते हैं, तब ऐसे में शुभ और अशुभ विचारों के बारे में क्या सोचना चाहिए यह तय नहीं है।
मित्रों स्वार्थ परायणता को छोड़कर इस भारती प्रच्य-विद्याओं पर एक धरोहर समझ कर शोध करना चाहिए क्योंकि मैने जो बाते की हैं वह सिद्धान्त ज्योतिष की बातें की हैं जो थोड़ा कठिन तो पर यही सिद्धान्त ज्योतिष ने खगोल शास्त्र, विश्व के वैज्ञानिकों को एस्ट्रोनामी के रूप में प्रदान किया है।
ज्योतिषाचार्य पं.विनोद चौबे महाराज
सम्पादक, ज्योतिष का सूर्य (हीन्दी मासिक पत्रिका)
भिलाई, दुर्ग (छ.ग.)-09827198828
सर्वप्रथम श्रद्धेय भाई अवध राम पान्डेय जी मेरा इस प्रकार का प्रश्न करने का मतलब यह था की ज्योतिष केवल आज जन्म कुन्डली के निर्माण एवं जातक फल-कथन तक ही सिमित रह गया है और कुछ लोग उसी को ज्योतिष मान चुके हैं, लेकिन सिद्धान्त ज्योतिष के तरफ कोई ज्योतिषी अपना ध्यान आकर्षित नही करता क्योंकि टी.वी. चैनलों से लेकर समाचार पत्रों में दर्जनों ज्योतिषीयों की लम्बी फेहरिश्त है जिनमें प्रायः कुछ ऐसे ज्योतिषी हैं जो रेलवे बुक-स्टॉलों में लगे अप्रमाणित ग्रन्थों को पढ़कर अपना व्यवसाय, जैसे रत्न, भाग्यशाली यंत्रों को बेचने के अलावा उनको ज्योतिष की मूलभूत ज्ञान के प्रचार प्रसार या अपने अध्ययन कठोरता लाने की तनिक भी कोशिश नहीं करते।
ऐसे मार्केटींग में माहीर कथित ज्योतिषीयों के कार्ड, और लालकिताब जैसे अप्रमाणित ज्योतिष को ही भाई राजेन्द्र अग्रवाल जी शायद इसी को ज्योतिष मानते हैं , ऐसे लोंगों की संख्या काफी है ।
मैं पिछले वर्ष दिल्ली में आयोजित एक सम्मेलन में गया था। उसमें इसी सन्दर्भ पर अपने शोध पत्र की बातें आप सभी मित्रों को बताना चाहता हुँ--
वैज्ञानिक की माने या ज्योतिष की : इंग्लैंड की प्रतिष्ठित संस्था रॉयल एस्ट्रोनॉमिकल सोसाइटी 1922 में ही विज्ञान कांग्रेस में घोषणा कर चुकी है कि राशि 12 नहीं 13 है। यानी सूर्य और अन्य ग्रह 13 राशि मंडल (तारा मंडल) से होकर गुजरता है। इस तेरहवें तारा मंडल को वैज्ञानिकों ने नाम दिया है- ओफियुकस अर्थात यह एक यूनानी देवता नाम है। उक्त अधिवेशन में वैज्ञानिकों ने यह हवाला देते हुए कहा कि- ज्योतिष शास्त्र की कुछ गणितीय समस्याएँ थी जिस कारण से 13वीं राशि को शामिल नहीं किया गया। पहली समस्या यह कि 13 का पूर्ण भाग नहीं हो सकता। कुंडली को 13 खानों में बाँटना मुश्किल था। ग्रहों को 30 डिग्री से कम का ज्यादा गति को आधार बनाने पर भारतीय-ज्योतिष गणना में दिक्कतें होतीं पर
360 डिग्री को 12 हिस्सों में बाँटना आसान हैं। विषम संख्या से कई तरह कि विषमताएँ पैदा होती है शायद इसिलिए 13वीं राशि को नजरअंदाज किया गया। दूसरी ओर पाश्चात्य जगत में 13 का अंक अशुभ माना जाता है लेकिन भारतीय परम्परागत ज्योतिष के तटस्थता बनाये रखने के कारण पाश्चात्य ज्योतिष भी 12 पर अड़ा रहा। अर्थात भारतीय-ज्योतिष विषय पुरे विश्व में अपना लोहा मनवा चुका है इससे तो यही साबित होता है।
हालाँकि वैज्ञानिकों की माने तो राशियाँ तो 88 होना चाहिए। दरअसल वैज्ञानिकों ने हमारी आकाशगंगा को 88 तारा मंडलों में विभक्त किया है। तारामंडल अर्थात कुछ या ज्यादा तारों का एक समूह। इन तारा मंडलों में से ज्योतिष अनुसार 12 और वैज्ञानिकों अनुसार 13-14 तारा मंडलों में सूर्य और सौर्य परिवार के अन्य ग्रह भ्रमण करते हैं जिस वक्त चंद्र वृश्चिक तारा मंडल या राशि में भ्रमण कर रहा है उस काल में यदि किसी का जन्म हुआ है तो उसकी राशि वृश्चिक मानी जाएगी। तारा मंडल दरअसल मील के पत्थरों की तरह है जिससे आकाश गंगा के विस्तार क्षेत्र का पता चलता है। ऐसी कई आकाश गंगाएँ है।
जरूरी नहीं की ग्रह सिर्फ 12 से 13 राशियों में ही भ्रमण करते रहते हैं। कुछ ग्रह सैकड़ों सालों में तो कुछ थोड़े ही सालों में बारह राशियों को छोड़कर 88 में से किसी भी राशि में कुछ काल के लिए भ्रमण करने लगते हैं, तब ऐसे में शुभ और अशुभ विचारों के बारे में क्या सोचना चाहिए यह तय नहीं है।
मित्रों स्वार्थ परायणता को छोड़कर इस भारती प्रच्य-विद्याओं पर एक धरोहर समझ कर शोध करना चाहिए क्योंकि मैने जो बाते की हैं वह सिद्धान्त ज्योतिष की बातें की हैं जो थोड़ा कठिन तो पर यही सिद्धान्त ज्योतिष ने खगोल शास्त्र, विश्व के वैज्ञानिकों को एस्ट्रोनामी के रूप में प्रदान किया है।
ज्योतिषाचार्य पं.विनोद चौबे महाराज
सम्पादक, ज्योतिष का सूर्य (हीन्दी मासिक पत्रिका)
भिलाई, दुर्ग (छ.ग.)-09827198828
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