ज्योतिष मे 12 वर्ष से 20 वर्ष तक के आयु के छात्रों पर सर्वाधिक शुभाशुभ प्रभाव यदि किसी ग्रह का होता है तो वह है बुध, और केतु ! जबकी मंगल, राहू, शनि,अदि ग्रहों का नाम सुनकर ही आम आदमी की घिग्गी बंध जाती है,किन्तु बुध और केतु को बेचारे समझ कर इन्हें भाव ही नहीं दिया जाता.इस कारण ये अन्दर ही अन्दर कितना नुकसान कर जाते हैं पता ही नहीं चल पाता.
यदि जन्मांक में शुभ स्थान पर बुध, केतु हों अस्तंग़त अथवा नीच राशि के ना हों तो वह जातक बेहद कम संसाधनों में भी ऑटो, मैकेनिकल तथा नवीन उपकरणों का महान रिसर्च यानी शोधकर्ता साईंटिस्ट होता है, अत: बुध और केतु को इतने हलके मत लें ! यदि आपके बच्चे की कुण्डली में उपरोक्त योग बन रहा है तो आप अॉटो, मैकेनिकल तथा उपकरणीय सब्जेक्ट दिलाकर पढायें..ताकी वह बालक और अच्छा से अच्छा नेम, फेम प्राप्त कर सके ! अत: किसी योग्य ज्योतिषी से कुण्डली समीक्षा अवश्य करायें....
वही, बुध, केतु अशुभ है तो जातक को वाणी दोष यानी हकलाना, जानकारी रहते हुए भी टीचर के सामने या परिक्षा में निर्णायक उत्तर ना दे पाना आदि अशुभ बुध, केतु का लक्षण है ! उपाय ते विस्तृत फीर कभी आपको इस बारे में चर्चा करूंगा.. फिलहाल मै.. आपको सूचित करते हुए बताना चाहुंगा की यदि उपरोक्त लक्षण किसी बच्चे में दिखता है और आप दिल्ली या बेंगलोर तरफ के रहने वाले हैं तो आप उसकी सम्यक जानकारी के लिये संपर्क करें ...क्योंकि मेरा आठ दिन का दिल्ली एवं बेंगलोर प्रवास हो रहा है जो इस प्रकार है 17,18,19 दिल्ली एवं 21,22_23,24 बेंगलोर में उपस्थित रहुंगा अत: वैदिक ज्योतिष परामर्श हेतु संपर्क करें 09827198828 (एक परिवार के एक सदस्य को नि:शुल्क ज्योतिष परामर्श, बाकी सशुल्क परामर्श रहेगा) अब आईये मूल विषय पर ध्यानाकर्षण आपका कराता हुं !
आपने कभी किसी भीतरघाती व ईर्ष्यालु इंसान को देखा है? अरे वही जो बस मन ही मन जलना ,चिढना जानता है. पर कभी आपके सामने आपके लिए अपनी फितरत को प्रदर्शित नहीं करता.आपकी गाडी से लिफ्ट मांगकर आता है और मौका देखकर उसी की हवा निकाल देता है और वापसी में आपको बिना बताये ही किसी और के साथ निकल जाता है.या जाते जाते आपके वाहन पर पत्थर से निशान मार जाता है.
व्यवहार की मधुर लगने वाला, मीठी मीठी बातें करने वाला लेकिन उसके चापलूसी भरे व्यवहार के कारण उसे कह कुछ नहीं कह पाते.और वह समय समय पर आपके ऊपर गुप्त प्रहार करने से नहीं चूकता.
बस तो साहब यही हाल ज्योतिष में केतु और बुध का है.बुध की दोनों राशियाँ द्विस्वभाव हैं अततः नैसर्गिक रूप से इसका व्यवहार भी द्विस्वभाव है.जहाँ यह सूर्य को छोड़ कर आगे निकला ,या सूर्य की आँख बचाकर उससे पीछे रह गया तो तब आप इसकी खुरापातों को ढंग से समझ लेंगे.यह आपको परेशान करने से नहीं चूकेगा.जातक की या तो बुआ (पिता की बहन) होती नहीं है,या जातक के अपनी बुआ से सम्बन्ध ठीक नहीं रह पाते.जिस कारण वह व्यवसाय में सदा धोखा खाता है या पर्याप्त परिश्रम के के बाद भी फल प्राप्त नहीं करता. केतु विश्वासघात करने वाला ग्रह है .ये जहाँ अकेला होगा उस भाव से आपको निश्चिन्त करने का प्रयास करेगा.आपको उस भाव से सम्बंधित कमी नहीं खलने देगा किन्तु जब उस भाव के फलित की आवश्यकता पड़ेगी तो आपको वहां से कोई सहायता प्राप्त नहीं होगी.
उदाहरण के लिए आपको घर से निकलते हुए अपने बटुए के भरे होने का अहसास होगा किन्तु मौके पर आपका बटुआ खाली होगा.इसी प्रकार केतु यदि पंचम भाव में अकेला होगा तो आपको कभी अपनी शिक्षा का लाभ जीवन में नहीं मिल पायेगा . यह आपको पहले तो खुद ही बेफिक्र करेगा उसके बाद आपकी लापरवाही का फायदा उठाकर आपको धोखा दे देगा,और आप अपनी ही आत्मुग्हता में डूबे रहेंगे . और इसी कारण सदा पीछे रह जायेंगे. कारण कभी आपकी समझ में नहीं आएगा. आपको सदा विश्वास रहेगा की ससुराल से आपको बहुत मदद मिलने वाली है किन्तु समय पर आपको एक फुग्गा भी वहां से नहीं मिलेगा.कहा यह जायेगा की हम चाहते तो बहुत हैं तुम्हारी मदद करना किन्तु मजबूर हैं.ये खेल केतु महाराज का होता है.होकर भी वस्तु का न होना. मरीचिका, दृष्टिभ्रम कुछ भी कहिये.
ज्योतिष शास्त्र में बताये गए छह गंडमूल में से क्या आपने ध्यान दिया की तीन का स्वामी बुध है और तीन का केतु. देखा इन के व्यवहार के कारण इस और ध्यान ही नहीं जाता, जबकी हर व्यक्ति के दिनचर्या पर विशेष प्रभाव डालता है, विशेष रुप से बच्चों के शिक्षा, एवं व्यवहार पर !
--आचार्य पण्डित विनोद चौबे
(वैदिक ज्योतिष, वास्तु एवं हस्तरेखा विशेषज्ञ) संपादक- 'ज्योतिष का सूर्य' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका,शांतिनगर, भिलाई, मोबाईल नं. 9837198828
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