सर्वप्रथम आप सभी राष्ट्र समर्पित एवं राष्ट्रीय भावनाओं से ओत-प्रोत देश के सभी स्वयंसेवकों को विजयादशमी एवं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्थापना दिवस के अवसर पर अनंत बधाईयां एवं मंगलमयी शुभकामनाएं..
साथियों,
बात 27 सितंबर 1925 को विजयादशमी के अवसर पर महज़ चार स्वयंसेवकों के साथ डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार ने संघ की स्थापना की, जो आज विश्व की सबसे बड़ी स्वयंसेवी संस्था बन चुकी है !
जब डॉ. हेडगेवार को असहयोग आन्दोलन में भाग लेने के कारण एक वर्ष का सश्रम कारावास मिला, तो उन्होंने बंदीगृह में इस समय का उपयोग चिन्तन और विचार विमर्श के लिए किया। उनके चिन्तन का मूल बिन्दु यह था कि हम हिन्दू बल, विद्या, बुद्धि और कला-कौशल में संसार में किसी से कम न तो कभी थे और न आज हैं। फिर भी क्या कारण है कि दूर-दूर देशों से आये हुए मुट्ठीभर लुटेरों ने भी हमें दास बना लिया और हजारों वर्ष तक हम विदेशियों के गुलाम रहे? इस प्रश्न का उत्तर खोजने के लिए उन्होंने अपने जेल के साथियों, नेताओं तथा अन्य बहुत से लोगों से विचार-विमर्श किया। सभी ने अपनी-अपनी बुद्धि के अनुसार इस प्रश्न का उत्तर दिया, परन्तु डाक्टर जी संतुष्ट नहीं हुए। अन्ततः वे इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि हिन्दू समाज का बिखरा होना ही हमारी अधिकांश समस्याओं का मूल कारण है। उन्होंने यह भी सोचा कि जब तक हिन्दू समाज संगठित नहीं होगा, तब तक या तो आजादी मिलेगी ही नहीं और यदि मिल भी गयी तो ज्यादा दिनों तक टिकेगी नहीं। इसलिए हिन्दू समाज का संगठित होना अत्यावश्यक है।
यों तो हिन्दू समाज में तब भी अनेक संगठन कार्य कर रहे थे, परन्तु सबकी दृष्टि संकीर्ण थी अर्थात् वे एक विशेष वर्ग को संगठित करना चाहते थे। परन्तु डाक्टर साहब ने सोचा कि संगठन ऐसा होना चाहिए जिसमें सभी वर्गों के हिन्दू बेखटके आ सकें और साथ-साथ प्रेमपूर्वक कार्य कर सकें। इसलिए उन्होंने संघ की कल्पना की। उनके मस्तिष्क में भगिनी निवेदिता की एक बात गूँज रही थी कि यदि हिन्दू प्रतिदिन केवल 10 मिनट भी सामूहिक प्रार्थना कर लें, तो ऐसी अजेय शक्ति उत्पन्न होगी, जिसे कोई तोड़ नहीं सकेगा। इसलिए डाक्टर साहब ने प्रतिदिन एक निश्चित स्थान पर एकत्र होकर एक घंटे का कार्यक्रम करने का नियम बनाया।
संघ का प्रारम्भ दशहरे के दिन सन् 1925 में किया गया। नागपुर के एक उपेक्षित से मैदान में 10-12 किशोर बालकों के साथ खेलकूद और व्यायाम करके डाक्टर साहब ने संघ प्रारम्भ किया। उस समय तक संघ का कोई नाम भी नहीं रखा गया था। संघ का नाम ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ काफी बाद में सन् 1928 में रखा गया था और तभी डाक्टर साहब को उनके सहयोगियों द्वारा संघ का पहला सरसंघचालक नियुक्त किया गया। मात्र 10-12 बालकों से प्रारम्भ हुआ संघ आज विशाल वटवृक्ष का रूप ले चुका है, इस समय भारत भर में 35 हजार से अधिक स्थानों पर संघ की दैनिक शाखायें और 10 हजार से अधिक स्थानों पर साप्ताहिक शाखाएँ लगती हैं। संघ का मूल स्वरूप दैनिक शाखाओं का है, लेकिन साप्ताहिक शाखाएँ ऐसे लोगों के लिए चलायी जाती हैं, जो संघ से जुड़ना तो चाहते हैं, पर प्रतिदिन नहीं आ सकते। इसी प्रकार कहीं-कहीं मासिक एकत्रीकरण भी होते हैं।
संघ में आने वालों को स्वयंसेवक कहा जाता है। इसका अर्थ है- अपनी ही प्रेरणा से समाज की निःस्वार्थ सेवा करने वाला। संघ की कोई सदस्यता नहीं होती। जैसे दूसरे संगठनों में लोग वार्षिक चन्दा देकर पर्ची कटवाकर सदस्य बन जाते हैं, वैसा संघ में नहीं होता। शाखा में आना ही इसकी सदस्यता है। शाखायें सबके लिए खुली हुई हैं। जो भी व्यक्ति इस देश को प्यार करता है और यहाँ की संस्कृति और महापुरुषों का सम्मान करता है, वह संघ की शाखाओं में आ सकता है। संघ में सभी जातियों के हिन्दू और बहुत से मुसलमान-ईसाई भी आते हैं। लेकिन संघ में एक-दूसरे की जाति पूछना या बताना मना है। सभी हिन्दू हैं, इतना ही हमारे लिए पर्याप्त है। इस देश से प्यार करने वाले मुसलमानों और ईसाइयों को भी हम क्रमशः मुहम्मदपंथी और ईसापंथी हिन्दू ही मानते हैं। इसलिए उन सबका भी स्वागत है।
जो स्वयंसेवक संघ में जितना अधिक नियमित होता है और जितना अधिक समय देता है, वह उतना ही अच्छा स्वयंसेवक माना जाता है। पारिवारिक दायित्वों से मुक्त रहकर अपना पूरा जीवन संघ के कार्य में लगा देने वाले हजारों व्यक्ति भी हैं, जिन्हें प्रचारक कहा जाता है। संघ के खर्च के लिए किसी से चन्दा नहीं लिया जाता, बल्कि साल में एक बार सभी स्वयंसेवक अपनी-अपनी सामथ्र्य के अनुसार गुरुदक्षिणा देते हैं। उसी से संघ का काम चलता है। संघ में किसी व्यक्ति विशेष को गुरु नहीं माना जाता, बल्कि परम पवित्र भगवा ध्वज ही हमारा गुरु है। गुरु दक्षिणा भी उसी को समर्पित की जाती है।
संघ में महिलायें नहीं आतीं। वास्तव में महिलाओं के लिए संघ जैसा ही एक अलग संगठन है, जिसका नाम है राष्ट्र सेविका समिति। उसकी भी तमाम स्थानों पर दैनिक और साप्ताहिक शाखायें लगती हैं।
डाक्टर साहब संघ को एक बिजलीघर कहा करते थे, जहाँ बिजली पैदा की जाती है। वह बिजली अलग-अलग जगह जाकर तमाम कार्य करती है। इसी प्रकार संघ के स्वयंसेवक विभिन्न क्षेत्रों में जाकर देश हित में कार्य करते हैं। वामपंथी विचारधारा के लोगों एवं हिन्दुयीज्म के घोर विरोधियों द्वारा कई अनर्गल आरोप लगाया गया, जो बिल्कुल गलत साबित हुयीं हैं ! सच्चाई तो यह है कि आरएसएस समाज के हर वर्ग के सुख, दु :ख में तत्परता के साथ सेवा और भावनात्मक रुप से सदैव तत्परता से लगे रहने वाली राष्ट्रवादी संस्था है !
हां, भारत को हिन्दु राष्ट्र घोषित किये जाने की पक्षधर है आरएसएस ... इसमें बुराई क्या है, इसका तो स्वागत करना चाहिये और आज 30 सितंबर 2017 को विजयादशमी के उष:काल में पथसंचलन के बाद प्रात: 08:30 बजे माननीय सरसंघ चालक डॉ. मोहनराव मधुकरराव भागवत (2009 - अब तक) जी का लाईव संबोधन सुनकर ''राष्ट्र देवो भव:" का संकल्प लें !
-आचार्य पण्डित विनोद चौबे
संपादक- ''ज्योतिष का सूर्य''
राष्ट्रीय मासिक पत्रिका,
शांति नगर, भिलाई
मोबाईल नं 9827198828
http://ptvinodchoubey.blogspot.in/2017/09/blog-post_29.html?m=1
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें