"जीव हिंसा न कर्तव्या भूत हिंसा विशेषत:"
हिन्दुओं ने बलि कुप्रथा को महर्षि याज्ञवल्क्य ने तकरीबन पांच हजार वर्ष पूर्व ही रोक लगा दी थी, जो लगभग खत्म हो चुका है. कुछ मंदिरों में यह प्रथा चल भी रही है तो वह भी गैर हिन्दुओं के धर्मानुयायी के 'कुर्बानी' के प्रथा में काटे जाने बकरों की अपेक्षा न के बराबर है.... हालाकि मेरा अनुरोध है हमारे सनातनावलम्बी इस बलि प्रथा को बिल्कुल खत्म कर दें... लेकिन कुर्बानी के नाम पर बकरों के अलावां काला, भूरा, पीला, हरा, बैगनी तथा सफेद नीरीह, अनबोलता जानवरों,पशुओं की हत्या करने वाले गैर हिन्दु लोग कब मानेंगे..? इस पर कभी रोक लगाई जा सकती है, 'गांधी जी को अपना प्रेरक मानने वाले लोगों ने ' अहिंसा परमो धर्म: ' का उन लोगों पर क्यों नहीं लागू कर पाये...यह अहम सवाल है !
लेकिन आज देश के हर युवाओं को चाहे, वह हिन्दु हो या गैर हिन्दु सभी को एकजूट हो कर इस 'कुर्बानी' या 'बलि प्रथा' को मिल बैठकर खत्म किया जाना चाहिये !
- पण्डित विनोद चौबे संपादक- 'ज्योतिष का सूर्य' मासिक पत्रिका http://ptvinodchoubey.blogspot.in/2017/09/blog-post_59.html?m=1
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