रोहिंग्या मुसलमानों के समर्थक भारतीय कैसे हो सकते हैं ? (पढें सारगर्भित आलेख) -पण्डित विनोद चौबे, 9827198828
रोहिंग्या मुसलमानों का समर्थन कर रहे ये कुछेक मुठ्ठीभर भारतीय मुसलमान ये कोई और नहीं बल्कि ये वही लोग हैं जिन्होंने कभी भारतीय सत्ता को स्वीकार हीवनहीं किया ! इन लोगों ने भारत में अल्पसंख्यक होने का संवैधानिक लाभ तो लिया परन्तु भारतीय अखण्डता या भारतीयता से कभी प्रेम नहीं किया ! आपने कईयों बार टेलीविजन न्यूज चैनलों पर लाईव भारत के अस्मिता के विरूद्ध ऐसे लोग स्लाम की दुहाई देते हुए चीखते, चिल्लाते, गो इण्डिया बैक आदि आदि के नारे लगाते दीख पड़ेंगे ! आप जानते हैं ये कौन हैं ? कौन हैं जो चाहते हैं कि म्यामार और वर्मा से भगाये गये आतंकी रोहिंग्या विदेशी मुसलमानों को भारत में रखने या भारतीय नागरिकता देने की वकालत करने वाले इन लोगों ने भारत को ही कभी अपना देश नहीं माना हैं, इनका एकमात्र लक्ष्य रहा है हिन्दुओं को खत्म करना उसके लिये ये लोग बाहरी मुगल लड़ाकों, आतंकियों तथा गैर संवैधानिक गतिवीधियों में संलिप्त लोगों को प्रश्रय देते हैं, बढावा देते हैं, और जब इनके उपर कार्यवाही होती है तब उसे हिन्दु-मुश्लिम का रंग देकर धर्म से जोड़कर उनको भारतीय प्रभुसत्ता को ध्वस्त करने के लिये आमंत्रित करते हैं ! उसी का एक हिस्सा है रोहिंग्या विदेशी मुसलमानों का समर्थन करना, जबकि इन्हीं लोगों ने कश्मीर से कश्मीरी पंडितो को कश्मीर से निर्वसित कर इतनी प्रताड़ना दी,लेकिन इस मुद्दे पर मानवाधिकार आज तक चुप है, और अल्पसंख्यकों के सामने बहुसंख्यक हिन्दु नक्कारा राजनीति के समक्ष नतमस्तक है ! इन रोहिंग्या मुसलमानों के समर्थकों को समझने के लिये आईये थोड़ा आपको इतिहास में दरअसल कल्हण के वक्त 1148 ई. से 1295 तक कश्मीर में हिन्दु शासन था, उस समय दया और उदारता के प्रतीक कश्मीर के राजा सिंहदेव (1295 ई. से 1325 तक ) ने वही गलती की थी जिसको भारतीय स्वतंत्रता के वक्त महात्मा गांधी, नेहरु ने की थी ! इन्होंने यह गलती जानबूझकर की या इन्होंने इतिहास से सीख नहीं ली ! और वही फिर वामपंथियों, देश तोड़क कुछ मुसलमानों के दबाव में रोहिंग्या मुसलमानों के लिये भारत को शरणगाह बनाकर करने जा रही है ! कश्मीर के राजा सिंहदेव ने उस समय के स्वात से शमीर, तिब्बत से रेन्छन शाह तथा दर्दिस्तान से लन्कर चक आये शरणार्थियों को राजा ने आश्रय दिया। उनको सरकारी नौकरी तथा जागीर दी।
और उसके बदले इन गद्दारों ने 1322 ई. में चंगेज खान के वंशज जुल्फी कादिर खान को आक्रमण के लिये निमन्त्रित किया। उसने 70,000 घुड़सवारों के साथ आक्रमण किया और इन गद्दारों की मदद से लाखों हिन्दुओं की हत्या की तथा 50,000 कश्मीरी ब्राह्मणों पर इस कदर बर्बरता गई जिसे बयां करना गड़े मुर्दे को उखाड़ने जैसा होगा, ब्राह्मणों को गुलाम बना कर ले गये। इनमें कई देवसर की बर्फ में मारे गये। राजा सिंहदेव किश्तवार भाग गये तथा उनके सेनापति रामचन्द गगनजिर भागे। शत्रुओं के जाने के बाद रामचन्द ने वापस राज्य पर कब्जा करने की कोशिश की पर तिब्बत से आये जागीरदार रेन्छन ने रामचन्द की हत्या कर उसकी पुत्री से विवाह किया और राजा बन गया। उसने इस्लाम स्वीकार कर सदरुद्दीन नाम से राजा बना।
फिर वही इतिहास 4/1/1990 को कश्मीर में दुहराया गया ! उसका यह मंजर 1322 ई. से कहीं कम ना था, वाकयात् देखकर कश्मीर से 1.5 लाख हिंदू पलायन कर गए। 1947 से ही गुलाम कश्मीर में कश्मीर और भारत के खिलाफ आतंकवाद का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इस आतंकवाद के चलते जो कश्मीरी पंडित गुलाम कश्मीर से भागकर भारतीय कश्मीर में आए थे उन्हें इधर के कश्मीर से भी भागना पड़ा और आज वे जम्मू या दिल्ली में शरणार्थियों का जीवन जी रहे हैं। घाटी से पलायन करने वाले कश्मीरी पंडित जम्मू और देश के विभिन्न इलाकों में में रहते हैं। कश्मीरी पंडितों की संख्या 1 लाख से 2 लाख के बीच मानी जाती है, जो भागने पर विवश हुए। जिनकी आजतक वापसी नहीं हो पाई जबकी अपने ही देश में उनकी वापसी नहीं हो पाई ! और इसके लिये इतनी सक्रियता कभी मुश्लिम समाजसेवियों, मानवाधिकार ने या मान. न्यायालय ने कभी नहीं दिखाई ! लानत है हमारे देश के ऐसे सिस्टम पर, और कांग्रेस, वामियों की ऐसी घिनौनी राजनीति को क्यों ना श्वात की घाटी में दफ्न कर देना चाहिये !
खैर, 25 वर्ष बाद राज्य के बाद सिंहदेव के भाई उदयन देव ने 1327 ई. में पुनः राज्य पर कब्जा किया। 1343 ई. में उसके मरने पर उसके मन्त्री शाह मिर्जा ने कब्जा किया और शमसुद्दीन के नाम से राजा बना। 1347 में उसके मरने पर उसके लड़के जमशेद को हरा कर उसका छोटा भाई अल्लाउद्दीन अली शेर राजा बना। उसके लड़के शाह उद्दीन (1360-1378) ने फिरोजशाह तुगलक की अधीनता स्वीकार की। उसके बाद 1554 ई. तक उसके वंशज राज करते रहे। उसके बाद सिंहदेव के समय दरद से आये लंकर चक के वंशजों ने 1588 ई तक शासन किया। उसके बाद 1753 ई. तक मुगलों के सूबेदारों ने शासन किया। मुहम्मद शाह दुर्रानी के आक्रमण के बाद कश्मीर 1819 ई. तक अफगान सूबेदारों के अधीन रहा।
पण्डित गवास लाल -कश्मीर का संक्षिप्त इतिहास के पन्नों को पलटते ही आंखे चौंधिया जायेंगी हमारे हिन्दु भाईयों, आखिर हमने मौकापरस्तों को हमने 60 वर्षों तक देश की सत्ता दिया, और बदले में क्या मिला ? टू-जी, थ्री-जी और कथित गांधी परिवार !
हिन्दू राज्य- 1819 ई. में यह सिख राजाओं के सूबेदारों के अधीन रहा। इनमें 1841-46 तक मुस्लिम सूबेदार थे। अंग्रेजों द्वारा सिखों की पराजय के बाद महाराजा गुलाब सिंह ने 16/3/1986 ई. में कश्मीर अंग्रेजों से खरीद लिया। उनके पुत्र रणवीर सिंह के नाम पर रणवीर पेनल कोड है। उनके पुत्र प्रताप सिंह तथा उनके पुत्र हरिसिंह 1947 तक राजा रहे। वे स्वाधीनता के बाद भारत में मिलना चाहते थे। पर भारत के प्रधानमन्त्री नेहरू ने कहा कि कश्मीर (जम्मू, लद्दाख नहीं) मुस्लिम बहुल है अतः राजा हरि सिंह का विचार कश्मीर के लोगों की इच्छा नहीं है। केवल शेख अब्दुल्ला ही कश्मीर के प्रतिनिधि हो सकते हैं (उनसे नेहरू का रक्त सम्बन्ध कहा जाता है)। उसके बाद शेख अब्दुल्ला का परिवार और उनके दामाद गुलाम मुहम्मद मुख्यमन्त्री बने। बीच में उनके समर्थक मुफ्ती मुहम्मद सईद भी मुख्य मन्त्री बने। उनकी पुत्री अभी मुख्य मन्त्री हैं। नेहरू ने बिना जनमत संग्रह् के कश्मीर का विलय अस्वीकार किया जो बाद में पाकिस्तान की मांग हुयी। भारतीय संविधान में एक अलग धारा जोड़ी गई वही है कश्मीर का अभिशाप धारा 370 ! जिसके अनुसार वहां के राज प्रमुख या संविधान सभा की सहमति से ही राष्ट्रपति कोई निर्णय ले सकते है। राज प्रमुख पद समाप्त होने पर यह धारा स्वतः समाप्त होनी थी, पर कांग्रेस की इच्छा के कारण यह अभी तक भारत में पूरी तरह नहीं मिल पाया है। उसी की वजह से कांग्रेस+ शेख अब्दुल्ला+ पाकिस्तान का संयुक्त षडयंत्र और परस्पर में मिलीभगत का ही दुष्परिणाम 19/1/1990 को कश्मीरी पंडितों को कट्टरपंथियों की निर्मम बर्बरता का शिकार होना पड़ा, और हम भारतीय हिन्दु मूकदर्शक बने रहे, वहीं आज विदेशी रोहिंग्या मुसलमानों को भारत में रखे जाने की भारतीय कुछ मुसलमान मानों एड़ी-चोटी एक किये हुए हैं, आखिर हिन्दु कब जागेगा ? यह अहम सवाल है ! वह भी तब जब भारत के ही हिन्दु भारत में ही निर्वसित जीवन यापन कर रहे हैं क्योंकि 4/1/1990 को उसी कश्मीर में 20,000 हिन्दुओं की हत्या कर बाकी 7 लाख को कश्मीर से भगा दिया गया जो अभी तक अपने ही देश में प्रवासी बने हुये हैं।
- पण्डित विनोद चौबे, संपादक- 'ज्योतिष का सूर्य' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका, भिलाई, दुर्ग, छ.ग. 9827198828
(कॉपी-पेस्ट कर लेख को तोड़ा-मरोड कर कहीं भी प्रयोग करते पाये जाने पर वैधानिक कार्यवाही की जावेगी , सर्वाधिकार सुरक्षित 'ज्योतिष का सूर्य' राष्ट्रीय मासिक पत्र)
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