ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे

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शुक्रवार, 29 सितंबर 2017

'लालदेव' सिंह और 'रक्त-ध्वज-धारी' इन 'रावण भक्त' रक्तबीजों पर चर्चा

आप सभी सुहृदजनों ने मेरे जन्मदिन पर बधाई दी हम आपके आभारी हैं ! मैं कई दिनों से सोच रहा था कि, विगत दिनों दशहरा पर अनजाने में व्हाट्सएप, फेसबुक के जरीये 'रावण भक्ति' से ओत-प्रोत ऐसे ऐसे आलेखों को आप लोग फॉरवर्ड कर रहे थे, जो बिल्कुल भारतीय सांस्कृतिक संरचना का तोड़क तथा हिन्दुत्व जीवन शैली या विचारों का विरोधी था ! फिर भी वगैर पढ़े, व समझे आप और, भारत के बाहर अमेरिका आदि अन्य कुछ देशों में बैठे हिन्दुत्व विरोधी कुछ लोगों द्वारा प्रायोजित संदेशों को हमारे हिन्दुओं द्वारा ही एक दूसरे को प्रसारित किया जाता है, जो  हम अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मारते रहे , जिसे देख कर मुझे असह्य पीड़ा होती रही थी !
भिलाई के सुन्दर नगर स्थित श्री लालदेव सिंह (पुष्पेश सिंह) के यहां (३/१०/२०१७ मंगलवार) पारिवारिक कार्यक्रम में शामिल होने गया वहां मेरी मुलाकात श्री नरेन्द्रनाथ सिंह परिहार जी से हुई, चर्चा हो रही थी 'रावण' की ! मैने उनकी बातों को १५ मिनट तक बहुत ध्यान से सुना तो पाया कि वह बार बार 'रावण' के प्रशंसनीय कार्यों की ओर मेरा ध्यानाकर्षण कराना चाहते हैं परिहार जी, बात भी सही है वह बहुत विद्वान था किन्तु वह जीतना बड़ा विद्वान था उतना ही बड़ा विदूषक भी था जिसे झूठलाया नहीं जा सकता ! हालाकि  बीच बीच में मैं स्वयं को उस चर्चा से बाहर निकालना चाह रहा था क्योंकि मुझे एक अन्य कार्यक्रम में जाना था, किन्तु मुझे लगा कि नहीं ये जो श्री परिहारजी कह या बोल रहे हैं यह उन्हीं सोशल मीडिया पर एक्टिव्ह हिन्दुत्व विरोधियों के द्वारा फैलायी गई उलूल-जुलूल संदेश है, जिससे यह प्रभावित होकर रावण की प्रसंशा कर रहे हैं, फिर मैने अपने सारे कार्यक्रमों की श्रृंखला को समेटकर चर्चा आरंभ की !

श्री परिहार जी के साथ इस चर्चा में मौजूद रिटायर्ड बैंक प्रबंधक श्री विजय बहादुर सिंह जी भी थे जिन्होंने प्रश्न किया कि - धर्म , मजहब के खलनायकों में नायक की तलाश क्यों ? क्या यही नायकत्व ऋषि विश्वश्रवा का पुत्र रावण कर रहा था ?? क्या उसी रावण, महिषासुर, रक्तबीज नामक आसुरी शक्तियों के विचारधारा के समर्थक 'रावण भक्त' वाम विचारधारा वाले लोग हैं..?

(मैंने उत्तर दिया) तो वामपंथ एक नास्तीकता की विचारधारा है , वामपंथी विचारधारा के पितृपुरुष  'कार्ल मार्क' का कहना है की ''धर्म अफीम का नशा है जिसकी पिनक में शोषितों का और शोषण किया जाता है ! सोशलिस्ट वामपंथ कहता है की दुनियां से अमीरी - गरीबी विदा होना चाहिए एवं समानता की अर्थव्यवस्था लागू होना चाहिए , मजदूर - मांलीक मे भेद ना हो ! "
इनकी विचारधारा निश्चित ही बहुत प्रभावपूर्ण थी , लेकिन जमीनी हकीकत इससे कोसों दुर है । ऐसे ही लोगों को फॉलो करने वाले आज देश के कई राज्यों में 'रक्त-ध्वज-धारी रक्तबीज" ने हिंसा पर उतारु होकर उन्हीं वंचितो शोषितों को प्रताड़ित करते हैं, मैं स्वयं छत्तीसगढ़ के भिलाई में रहता हुं, छत्तीसगढ की इतनी संवेदनशील रमन सरकार के विकासात्मक ठोस प्रयास के बावजूद आज भी कई वन्य इलाकों  के सड़कों को बमो द्वारा उड़ाकर गड्ढों में तब्दिल करते हैं, इसलिए बात करुंगा छत्तीसगढ़ का कर रहा हुं ! छत्तीसगढ के बस्तर से लेकर जगदलपुर सहित तमाम वन्य ग्रामों तक इन्हीं विचारधारा के लोगों ने विकास नहीं होने दिया..और गरीब जनता को ढाल बनाकर स्वयं उनके लाशों पर नृत्य करते हैं, अरे भई रावण भक्तों  रावण की सोने की लंका से भी सीख नहीं ली ! रावण तो शोषितों, वंचितो के लिये सोने की लंका बना दिया था, और आप लोग सड़को को गड्ढा बना रहे हो, जो स्वयं में विरोधाभासी है,  वन्य सुदुर इलाकों को मुख्यधारा से जोड़कर सामाजिक विकास करने की दिशा में यत्न करो !
इन लोगों ने रावण का यूज इसलिये किया क्योंकि आजकल के बच्चों को 'राम के आदर्शों'' पर चलने की बजाय उन्हें पब पार्टियों, डीजे की कानफोडू थाप पर शराब के नशे मे धुत्त 'गलबहिंया' नृत्य  करने वाले कुछ मनबहक हिन्दुओं के बच्चों को इस ''रावणीय चरित्रों'' के प्रति आकर्षित किया जा सके ! जिसका परिणाम साफ साफ आपको 'जे एन यु' और उसके समान अन्य कुछेक महाविद्यालयों के महज़ दो चार छात्र जो वामपंथी कब्जे मे रह रहे हैं,  उन्हें ''राम, कृष्ण सहित सनातनी दिव्य महापुरुषों के प्रति नकारात्मकता'' भरने का ये लोग सतत प्रयास करते हैं ! तभी तो जब भी उन महापुरषों से जुड़े पर्व आते हैं तो उसके पहले यही तत्व अनर्गल आलेखों के साथ सक्रीय हो जाते हैं, ध्यान रहे ये लोग ''रावण के पक्षधर कम, राम के विरोधी ज्यादा हैं" देखीएगा श्री परिहार जी, श्री सिंह जी.. अभी दीपावली आने वाली है, योगी आदित्यनाथ जी ने ऐलान किया है उस दिन ''दीपोत्सव" मनाने की ! ये लोग फिर सक्रिय हो जायेंगे ! एक वामी कह रहे थे, गोरखपुर में मेडीकल कालेज में कई घरों के दीपक बुझाने वाले अब अयोध्या में दीपक जलाने जा रहे हैं, तो इनकी ऐसी घटिया सोच कितनी घिनौनी है जिसे कहना कम, हमे समझना ज्यादा होगा! तभी 'रक्त-ध्वज-धारी इन रावण भक्त रक्तबीजों से बच पायेंगे, या आने वाली पीढ़ी को बचा पायेंगे ! (अगला किश्त दूसरे लेख में क्रमश: पढ़ें, यह आलेख मैं एवं श्री परिहारजी, सिंह जी के बीच की चर्चा है जो श्री लालदेव सिंह जी के यहां हो रही है)

- आचार्य पण्डित विनोद चौबे
संपादक- ''ज्योतिष का सूर्य'' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका, शांतिनगर, भिलाई
मोबाईल नं 9827198828
(विशेष सूचना : वास्तु एवं वैदिक ज्योतिष के द्वारा घर या प्लॉट के मिट्टी को सूंघकर (मृदा-शोधन) आगामी दीपावली तक स्थगित है, दीपावली के बाद ही गृह-दोष को जानने का एक मात्र वैदिक वास्तु पद्धति "मृदा शोधन" का कार्य मैं प्रारंभ कर पाऊंगा) http://ptvinodchoubey.blogspot.in/2017/09/blog-post_56.html?m=1

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