ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे

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गुरुवार, 7 दिसंबर 2017

कश्मीर और शारदापीठ

नीलमत पुराण में कश्मीर किस
तरह बसा,उसका उल्लेख है।

कश्यप मुनि को इस भूमि
का निर्माता माना जाता है।

उनके नाम पर कश्मीर नाम
पड़ा।

उनके पुत्र नील इस प्रदेश के
पहले राजा थे।

१४ वीं सदी तक बौद्ध एवं
शैव मत यहां पर बढ़ते गए।

काशी के बाद कश्मीर को
ज्ञान की नगरी के नाम से
जाना जाता था।

कश्मीर में ही शारदा पीठ
(ज्ञान पीठ) था,शारदा देवी
का मंदिर भी था।

जब अरबों की सिंध पर विजय
हुई तो सिंध के राजा दाहिर के
पुत्र राजकुमार जयसिंह ने
कश्मीर में शरण ली थी।

राजकुमार के साथ सीरिया
निवासी उसका मित्र हमीम
भी था।

कश्मीर की धरती पर पांव
रखने वाला पहला मुस्लिम
यही था।

अंतिम हिंदू शासिका कोटारानी
के आत्म बलिदान के बाद पर्शिया
से आए मुस्लिम मत प्रचारक
शाहमीर ने राजकाज संभाला।

यहीं से दारूल हरब को
दारूल इस्लाम में तब्दील
करने का सिलसिला चल
पड़ा।

शेख अब्दुल्ला के परदादा
का नाम बाल मुकुंद कौल था।

पूर्वज मूलतः सप्रू गोत्र के
कश्मीरी ब्राह्मण थे।

अफग़ानों के शासनकाल
में पूर्वज रघूराम ने एक सूफी
के हाथों इस्लाम धर्म स्वीकार
कर लिया।

परिवार पश्मीने का व्यापार
करता था,अपने छोटे से निजी
कारख़ाने में शाल और दुशाले
तैयार कराके बाज़ार में बेचता था।

इनके पिता शेख़़ मुहम्मद इब्राहीम
ने शुरू में एक छोटे पैमाने पर काम
शुरु किया।

शेख अब्दुल्ला ने अपनी
आत्मकथा को जो किताबी
रूप दिया है उसमें उन्होंने
इस बारे विस्तार से बताया है।

आजाद कश्मीर का सपना
देखने वाले शेख अब्दुल्ला
ने स्वयं अपनी आत्मकथा
‘आतिशे चीनार’ में स्वीकार
किया है कि कश्मीरी मुसलमानों
के पूर्वज हिंदू थे।
#साभार_संकलित;

चित्र-#ध्वस्त_शारदापीठ;
★★★★★★★★★★
श्री विजय कृष्ण जी के फेसबुक वॉल से

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