ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे

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गुरुवार, 7 दिसंबर 2017

शनि अपनी उच्च राशि में शुभ फलदायी होता है, दृष्टी हानिप्रद है

शुक्र की राशि तुला में शनि उच्चस्थ होते हैं और मेष में नीचस्थ। जिस भाव में बैठते हैं उसका भला करते हैं परंतु 3री, 7वीं और 10वीं दृष्टि से अनिष्टता प्रदान करते हैं। कभी एक परिमाण से फलादेश का परिणाम नहीं देखा जाता है।शनि की कुल दशा 19 वर्ष होती है और इसके अलावा साढ़ेसाती तथा दो ढैय्या का समय जोड़ा जाए तो शनि किसी के भी जीवन को लगभग 31 साल तक प्रभावित करता है। शनि 30 वर्ष में उसी राशि में पुन: लौटता है इसलिए किसी के जीवन में तीन से अधिक बार साढ़ेसाती नहीं लगती। अक्सर एक व्यक्ति 3री साढ़ेसाती के आस-पास परलोक सिधार जाता है। यही कारण है कि जीवन में अधिकतर उपाय शनि के ही किए जाते हैं।
पंचम भाव का वक्री शनि प्रेम संबंध देता है।लेकिन जातक प्रेमी को धोखा देता है। वह पत्नी एवं बच्चे की भी परवाह नहीं करता है।
१) पांचवे भाव में शनि के बारे फलदीपिका में बताया गया है कीऐसा जातक शैतान और दुष्ट बुद्धि वाला होता है । तथा ज्ञान , सुत , धन तथा हर्ष इन चारों से रहित होता है अर्थात इनके सुख में कमी करता है ।
२) ऐसा जातक भ्रमण करता है अथवा उसकी बुद्धि भ्रमित रहती है ।
३) अगर पंचम भाव में शनि हो तो वह आदमी ईश्वर में विश्वास नहींकरता और मित्रों से द्रोह करता है तथा पेट पीड़ा से परेशान , घूमनेवाला ,आलसी और चतुर होता है।
४)  जिनके पंचम भाव में शनि होता है , उसकादिमाग फिजूल विचारों से ग्रस्त रहता है।
५)  व्यर्थ की बातों में वह अधिक दिमाग खपाता है एवं मंदमती होता है। आय से ज्यादा खर्च अधिक करता है।
६) यदि शनि उच्च का होकर पंचम हो तो जातक के पैरों में कमजोरी लादेता है।
७) पीड़ित शनि लॉटरी , जुआ , सट्टा , अथवा रेस के माध्यम से धन की हानि करता हैं ।
८) मेष , सिंह , धनु राशि का शनि, जातक में अहम का उदय करता है । जातक अपने विचारों को गोपनीयरखता है ।
९) अनिश्चित वार्तालाप का आदी होता है । जातक किसी प्रकार की स्वार्थसिद्धिमें कुशल होता है ।
शनि किसी के जीवन में क्या फल देगा, शुभ प्रभाव होंगे या अशुभ , इसका विवेचन, कुंडली के 12 भावों, 12 राशियों, 27 नक्षत्रों, शनि की दृष्टि, उसकी गति, वक्री या मार्गी स्थिति, कारकत्व, जातक की दशा, गोचर, साढ़ेसाती या ढैय्या, ग्रह के नीच, उच्च या शत्रु होने या किसी अन्य ग्रह के साथ होने, ग्रह की डिग्री, विशेष योगों, कुंडली के नवांश आदि के आधार पर किया जाता है, केवल एक सूत्र से नहीं।
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-ज्योतिषाचार्य पण्डित विनोद चौबे,
संपादक- ',ज्योतिष का सूर्य' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका, भिलाई, दुरभाष क्रमांक - 9827198828

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