फेसबुक पर हमारी छोटी बहन प्रियंका कौशल, पत्रकार, रायपुर (ग्लिब्स न्यूज पोर्टल संपादक) जिनके राष्ट्रवादी विचारों का मैं स्वयं कायल हुं या यूं कहें मैं प्रशंसक हुं, उन्होंने एक पोस्ट लिखा जिसका संदर्भ है 'सेंटा क्लॉज़' ! प्रस्तुत है यह अंश ..
''अभी 25 दिंसबर के दौरान मैंने महसूस किया कि हम अपने बच्चों को सेंटा क्ल़़ॉज की काल्पनिक दुनिया में जीना सिखा रहे हैं, बच्चे सेंटा के सपने देख रहे हैं कि कोई बूढ़ा आएगा और उन्हें तरह-तरह के गिफ्ट देगा, जबकि उसका अस्तित्व ही नहीं है। जबकि 22 से 27 दिसंबर तक चलने वाले शहीदी दिवस की जानकारी हमारे बच्चों को नहीं है। 27 दिसंबर का हमारे जीवन में क्या महत्व हैं, ना ही हम जानते हैं, ना ही हम अपने बच्चों को अपनी विरासत के बारे में बता पा रहे हैं। हम अपने बच्चों को नहीं बता रहे हैं कि सिक्खों के दसवें गुरु गोविंदसिंह जी के वीर बच्चों को 27 दिसंबर के दिन दीवार में जिंदा चुनवा दिया गया था। वे 9 और 7 साल के शूरवीर बालक जोरावर सिंह और फतेह सिंह हंसते-हंसते देश के नाम पर कुर्बान हो गए। लेकिन मुंह से उफ्फ तक नहीं की। तय हमें करना है कि हमें बच्चों को सपनों की दुनिया में जीना सिखाना है या उन्हें अपने पूर्वजों की शौर्यगाथाएं सुना हकीकत की पथरीली जमीन पर चलना सीखाना है। ''
बहन प्रियंका जी आपकी चिन्ता जायज है क्योंकि - वास्तव में 'कृष्णमास' को 'क्रिसमस' में परिवर्तित कर दिया गया, २२ से २७ दिसम्बर तक चलने वाले शहीदी को भूला दिया गया, अन्तरिक्षीय ज्ञान को देने वाले षड्वेदांग ज्योतिष के 'वत्सरीय मौलिक' सूर्य सिद्धांत को कल्पनाओं भरा बताया गया जबकी यह शुद्धतम 'काल विज्ञान' है, वहीं उपरोक्त बातों को झुठलाने वालों ने ही २५ दिसम्बर को भारतीय अवकास घोषित कराकर भारतीय ऐतिहासिकता, पौराणिक एवं वैदिक साईंटीफिक सिद्धांतो को दरकिनार करते हुए इन लोगों ने जानबूझकर 'संत' के इस देश भारत को 'सैंटा' क्लॉज जैसे काल्पनिक कु-संस्कृति में झोंक दिया गया ! जिसका भारत से कोई लेना देना ही नहीं है !
- आचार्य पण्डित विनोद चौबे, भिलाई, 9827198828
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