" वैदिक संस्कृति में वर्णित कई ऐसे प्रसंग है जो आज की आधुनिक संस्कृति के वैज्ञानिकों के लिये चुनौती बना हुआ हैं !"
मित्रों, नमस्कार ! आज दिल्ली के द्वारका सेक्टर-३ में 'महामृत्युञ्जय अनुष्ठान' शुरु होना है, इसके लिये कल वेदियों के निर्माण एवं तैयारी को लेकर थोड़ी व्यस्तता अवश्य है, लेकिन कुछ संदर्भ आपके समक्ष अवश्य रखूंगा !'
गौरतलब है भारतीय मनीषियों ने हर विषय पर गहन शोध किया, उन शोधक ऋषियों के उत्तरवर्ती विद्वद्जनों ने शोधपूर्ण सनातन धर्म ग्रंथों में लिपिबद्ध भी किया ! परन्तु सनातन-धर्म-द्वेषियों नें समय समय पर सनातनत्व के अस्तीत्व पर सवाल उठाते रहे, इन असुर वामियों ने ऐसे ऐसे कुतर्क प्रस्तुत किये जो वास्तव में तथ्यविहीन थे, लेकिन इन्होंने सनातन धर्म-ग्रंथों के प्रसंगों, पर्वों तथा पर्यावरणीय, भौगोलिक या अन्तरिक्षीय संदर्भों का जितना ही विरोध किये वह उतना ही खरा सोना की भांति मजबूत व साक्ष्य प्रमाणों के साथ साईंस को नतमस्तक करते हुए उनको मानने के लिये विवश किया ! अभी देखिये ना 'राम सेतु' जिसके अस्तित्व पर सवाल उठाये गये और उसे इन सनातन-द्वेषी वामियों तथा खांग्रेसियों महज
कपोलकल्पित बताने व सिद्ध करने का भरसक कोशीश किया परन्तु अमरिकी साईंस चैनल ने उसे प्रमाणित किया की वह तकरीबन सात हजार वर्षों पूर्व मानविकीय तकनीकियों से निर्माणित राम सेतु ही है जिसका प्रसंग हिन्दुओं के धर्मग्रंथ वाल्मीकि रामायण में मिलता है ! विमान संहिता जो बिना ईंधन और वगैर क्रु-मेम्बरों तथा वगैर पाईलट या वगैर किसी रडार के वह 'पुष्पक' विमान रावण द्वारा उड़ाया जाता था ! उसी प्रकार राम, कृष्ण एवं अन्य ऐसे कई पौराणिक महापुरुषों के जीवन प्रसंग पर आधारीत कई घटनाएं हैं जो, भारतीय वास्तु कौशल, अन्तरिक्ष-ज्ञान या प्रत्येक ग्रहों की परस्पर दूरियां, उनके रुप, स्वरुप, गुण दोष आदि जिसका जिक्र ज्योतिष में की गई है जो 'साईंस वर्षों से अध्ययन रत होने बाद भी उतनी सफलता नहीं प्राप्त कर सका है जो उसके लिये चुनौती है' साथियों मैं (आचार्य पण्डित विनोद चौबे 9827198828) स्वयं ज्योतिषी हुं, मैने देखा है कि आज के सहस्त्रों वर्ष पूर्व के अन्तरिक्षीय घटनाओं का सटीक पूर्वानुमान केवल ज्योतिष ही लगा सकता है, आज का साईंस तो सोच भी नहीं सकता ! दिलचस्प बात तो यह है कि हमारे ऋषियों ने ही ग्रहों की आकृति एवं उनकी प्रकृति के अनुरुप नामकरण किया, और आज वे लोग झुठलाते फिरते हैं जिनका वजूद ही मात्र १२०० से १६०० वर्ष से है, ऐसे चाईना परस्त कथित फासिस्ट, क्रास-भक्त, लेनीनवादी वामियों पर तरस आती है ! खैर, हम भारतीयों को जहां २५ दिसम्बर को 'तुलसी पुजनोत्सव' मनाया जाना चाहिये था वहां हम 'क्रिसमस' मनाये जाने को सौभाग्य समझने की गलती कर रहे हैं !
मित्रों, कभी कभी कुछ विषय होते हैं जिनपर चर्चा होती है तो कुछ ऐसा 'प्रसंग बन जाता है, जिसे आप लोगों के समक्ष प्रस्तुत करने के लिये बाध्य हो जाता हुं' ! देखिए ना कल मुझसे एक सज्जन से *वैदिक-वास्तु* के कुछ उद्धरणों को लेकर विस्तृत चर्चा हुई थी ! कुछ विषयों को लेकर मेरा मन वैदिक-भौगोलिक एवं ज्योतिष-खगोलिक ज्ञान सागर में गोता लगा रहा था, उसी समय अचानक मेरा ध्यान *मठाम्नाय (महाअनुशासनम्)* नामक शंकराचार्य जी द्वारा वर्णित पीठाचार्य के अधिकार क्षेत्र के भौगोलिक- क्षेत्र वर्णन पर गया और प्रसंग मिला 'जय और विजय' के राज्य के भौगोलिक क्षेत्र का, मुझे बेहद आश्चर्य हुआ की आस्ट्रेलिया के उस टापू पर जिसे 'जय और विजय' के राज्य की राजधानी 'वामन' नामक टापू आज भी आधुनिक खोजकर्ताओं की पहुंच से कोषों दूर है, और चुनौति भी ! इस क्षेत्र का आँखो देखा हाल परिमाप सहित प्रस्तुत है श्री आदि शंकराचार्य जी के पीठों के अधिकार क्षेत्र में ! आस्ट्रेलिया के उत्तर में और फिलिपींस के दक्षिण-पूर्व में विद्यमान पापुआ द्वीप पर एक राज्य है जिसका नाम है - "जय-विजय," जिसकी राजधानी का नाम है - "वामन" - आश्चर्य है कि प्राचीन काल में भारतीय वैदिक संस्कृति कैसे इन सुदूर टापुओं तक पहुंची होगी, जिन टापुओं पर आज तक आधुनिक संस्कृति भी नहीं पहुंची है।
संदर्भ- मठाम्नाय (महाअनुशासनम्)
- आचार्य पण्डित विनोद चौबे, (ज्योतिष, वास्तु एवं हस्तरेखा विशेषज्ञ) भिलाई मोबाईल नं.9827198828
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें