ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे

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शुक्रवार, 15 दिसंबर 2017

वास्तु अनुरुप घर या फैक्ट्री में भी क्यों होता है धन,जनहानि एवं गृहक्लेश ?

आज कल के 'ऑटोकेड-सॉफ्टवेयर-धारी-वास्तु विशेषज्ञों' की भरमार है, ये लोग ऊपरी वास्तु का खूबसूरत नक्शा बना अवश्य देते हैं, लोगों द्वारा गृहप्रवेश कर रहा भी जाता है, बावजूद उस घर में सुख शांति मिलेगा, व्यापार में लाभ होगा, संतानलाभ मिलेगा इसकी सुनिश्चितता कैसे होगी..? यह सवाल इसलिये उठता है क्योंकि मेरे पास प्राय: कई ऐसे लोग आते हैं जिनके मकान १०० फिसदी वास्तु अनुरुप बनी होती है परन्तु, सुख, सुविधा, लाभ तो नहीं मिलता बल्कि गृहक्लेश बढ़ जाता है !  साथियों मैं (आचार्य पण्डित विनोदचौब) स्पष्ट कर दूं की इस लेख के माध्यम से मैं आपको डराने का बिल्कुल भी काम नहीं कर रहा, बल्कि हम लोगों को 'वास्तु सौख्यम्', 'वास्तु सौरभ' आदि ग्रंथो में भूमि-शोधन यानी मिट्टी के शोधन की प्रक्रिया रंग और  गंध के द्वारा 'शल्य शोधन' आदि का वर्णन मिलता है जिसका शुभाशुभ प्रभाव भी बताया गया है, मैं उसी संदर्भ में चर्चा कर रहा हुं, जिसे आपको अवश्य पढ़ना समझना चाहिये !  आपने देखा होगा पूरी तरह से वास्तु अनुरुप भवन निर्माण करने के बाद भी उस भवन के स्वामी का प्रवेश करने पर बेहद नुकसानदायक होता है, और यदि भूमि के अन्दर शल्यदोष है तो ऐसे स्थान पर बने भवन के स्वामी को गृह प्रवेश करते ही या तो मृत्यु हो जाती है, या तो ऐसी असाध्य बिमारियों का सामना करना पड़ता है की उस भवन स्वामी को धीरे धीरे अपनी जान गंवानी पड़ती है, ऐसे घर में वैवाहिक मांगलिक कार्य भी नहीं हो पाते ! कभी कभी तो गृहप्रवेश के 6 वर्षों के बाद अचानक उस व्यक्ति को चारों तरफ से खासे परेशानियों का सामना करना पड़ता है, या परिवार में लगातार किसी ना किसी माध्यम से वहां के रहवासी परिजनों की मृत्यु होने लगती है, उसका कारण है नीचे की वास्तु यानी जिस मिट्टी पर भवन निर्माण किया गया है उस भूमि के अन्दर दोष है, जो भवन निर्माण के कुछ दिनों बाद विपरीत प्रभाव पड़ना चालू होता है, यह फ्लैट्स में भी लागू होता है ! मैने कई ऐसे फ्लैट्स को भी देखा है जो इस दोष से प्रभावित हैं ! मेरा (आचार्य पण्डित विनोद चौबे, 9827198828)  यह आलेख आपको डराने के मकसद से नहीं लिखा है, बल्कि वैदिक वास्तु में जो एक विधा थी 'मृदा शोधन' यानी विशेष तकनीक से मिट्टी के गंध को परीक्षण करने की थी, उसका लाभ लेकर हम आने वाली परेशानियों से कैसे बच सकते है, इसके लिये हमने यह आलेख प्रस्तुत किया है, यदि आप इस प्रकार की 'मृदा शोधन' कराना चाहते हैं तो उसके लिये आप हमारे निवास शांतिनगर भिलाई स्थित 'बगलामुखी पीठ' पर आकर संपर्क कर सकते हैं ! यह कार्य सप्ताह के हर मंगलवार एवं रविवार को होता है, साथियों इसके लिये कुछ शुल्क भी सुनिश्चित है, कृषि-भूमि हेतु 1100/₹. भवन हेतु 2100/ ₹ , व्यावसायिक परिसर हेतु 5100/ ₹ औद्योगिक भूखण्ड हेतु 11000/₹ (मार्ग व्यय अतिरिक्त) संपर्क सूत्र - 09827198828
प्राचीन वास्तु शास्त्र का शास्त्रीय एवं वैज्ञानिक आधार कम होते जा रहा है
फैशन बन गया है वास्तुशास्त्र और बढ़ता जा रहा है  अन्ध विश्वास की ओर.
वैदिक काल से ही ज्योतिष शास्त्र अति पुरातन परम्परा मे मानव जीवन के विविध पक्षों पर अति सूक्ष्मता से विचार करता आ रहा है. जिस क्रम से मानव सभ्यता का विकास हुआ उसी क्रम से  विविध रूपो मं इस चमत्कारी विद्या का भी विकास हुआ. जीवन मं आने वाली प्राकृतिक - अप्राकृतिक विनाशकारी आपदाओं, घटने वाली घटनाओं और होने वाली बीमारियों को जानने, बाधारहित घर का निर्माण तथा भूमिगत पदार्थो के आधार पर भूमि का शुभ और अशुभ फलों के ज्ञान सहित भूमि का गृहनिर्माण में कितनी उपयोगिता आदि के बारे में ज्योतिष संहिता के भाग में चार पुरुषार्थो के साधन का महत्वपूर्ण अंग है जिसके अन्तर्गत प्रत्येक व्यक्ति का अपना घर होना चाहिये. क्योंकि इसके बिना व्यक्ति के मौत और स्मार्त कर्म पूर्ण फल नही देते. यदि उक्त कर्म किसी दूसरे की भूमि या घर में करते हैं तो उसके पूण्य फल का भागीदार भूमि स्वामी या गृहपति बन जाता है. जैसा कि भविष्यपुराण में उल्लेखित किया गया है।
गृहस्थस्य क्रिया: सर्वा न सिद्धयन्ति गृहं बिना।
यतस्तस्माद, गृहारम्भ प्रवेश समयौ ब्रुवे॥
परगेहे कृता: सर्वे श्रौतस्मार्ट क्रिया: शुभा:।
न सिद्धयन्ति यतस्मार्त भुमीश: फलमुरश्नुते॥
उपरोक्त पैराणिक कथन से दान में सर्वाधिक महापुण्य कन्यादान होता है. और आज कल के बदलते परिवेश में विवाह करने व कराने का अधिकतम कार्य होटल, रेस्टोरेंट, लॉज, सामुहिक भवन सहित आस पास के मैदान में टेन्ट के छांïव तले ही सम्पन्न होते हैं. इस प्रकार यदि प्रमाणितका के तरफ जाते हैं तो होटल, रेस्टोरेन्ट या सार्वजनिक स्थलों पर केवल रिसेप्शन ही सम्भव है. यहां आपको बताना आवश्यक होगा कि समाजिक विसंगति अथवा बाहरी दिखावा रूपी फैशन इतना हावी हो चुका है कि वास्तु को नियमों व शर्तो को ताक पर रखते हुये इसे अन्ध विश्वास कायम कर अपने आपको एक माडर्न मानव सभ्यता का परिचय देते हैं. परिणाम आप लोगों के सामने है. दिन प्रतिदिन पति-पत्नी में बढ़ती दूरियां पति द्वारा पत्नि को मार देना अथवा पत्नि के अवैध सम्बन्धों के अन्धेरी रात में अपने पति का ही कत्ल करा देना आदि घृणीत कार्यो में पिछले उदशक में भारी वृद्धि हुयी है.
वस्तुत: पौराणिक व शास्त्रीय धर्म सूत्र एक दूसरे से आत्म मिलन कराता है. तथा फैशन रूपी माडर्न सभ्यता के फिल्मी स्टाईल सूत्र क्षण मात्र के लिये ऊपरी मन से मिलन होता है. क्योंकि होटलों में विवाह की वेदी पर बैठे वर-वधू छोटी उम्र से ही फिल्मी अंदाज फिल्माया गये करतब देखे हैं. और उसी चित्र पट को माता पिता बखूबी परोसने में वास्तु एवं पुराणों के धर्म सूत्र को नजर अंदाज कर देते हैं. और परिणाम की बिटिया के विवाहोपरान्त चन्द दिनों में अपने माता पिता के शरण में आ जाती है. अथवा सलाखों के पीछे होती है. या तिसरा घृणित कार्य मानी स्वयं प्रभु के प्यारे हो जाती है. खैर बाते बहुत है किन्तु मै आपको सार गर्भित शब्दों में यहाँ ज्योतिष का सूर्य के माध्यम से बताना  चाहूँगा कि भारतीय संस्कृति की धुरी शास्त्रीय धर्मसूत्र जीवन को सुधार का बेहतर बनाता है. फैशन पर आधारित सभी कृत्य चाहे वह बनावटी धर्म कृत्य अथवा आधुनिक बनावटी वास्तु शास्त्रीयों के कपोल कल्पित वास्तु के सिद्धान्त यह केवल अन्ध विश्वास के तरफ धकेलने का एक सुनियोजित स्वार्थ पारायणता है जिससे समाज का भला कम लेकिन कपोलकल्पित वास्तु शास्त्रीयों का एक मोटी रकम के रूप में बेहतर भला जरूर होता है. जरूरत है हमें सम्भलने का....
-आचार्य पण्डित विनोद चौबे, संपादक- 'ज्योतिष का सूर्य' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका, भिलाई, जिला-दुर्ग (छ.ग.) मोबा.नं. 9827198828
नोट: वास्तु परामर्श हेतु शुल्क इस प्रकार है :
1) 21000/ नक्शा से लेकर भवन निर्माण पर्यंत 3 वीजिट(मार्ग व्यय अतिरिक्त) अतिरिक्त वीजिट का अलग से राशि प्रदान करना होगा !

     2) 51000/ कामर्शियल वास्तु परामर्श
1 वीजिट(मार्ग व्यय अतिरिक्त) अतिरिक्त वीजिट का अलग से राशि प्रदान करना होगा !

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