ग्रहण योग को वैदिक ज्योतिष के अनुसार कुंडली में बनने वाला एक अशुभ योग माना जाता है जिसका किसी कुंडली में निर्माण जातक के जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में समस्याएं पैदा कर सकता है। वैदिक ज्योतिष में ग्रहण योग की प्रचलित परिभाषा के अनुसार यदि किसी कुंडली में सूर्य अथवा चन्द्रमा के साथ राहु अथवा केतु में से कोई एक स्थित हो जाए तो ऐसी कुंडली में ग्रहण योग बन जाता है। कुछ वैदिक ज्योतिषी यह मानते हैं कि किसी कुंडली में यदि सूर्य अथवा चन्द्रमा पर राहु अथवा केतु में से किसी ग्रह का दृष्टि आदि से भी प्रभाव पड़ता हो, तब भी कुंडली में ग्रहण योग बन जाता है। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि यदि किसी कुंडली में सूर्य अथवा चन्द्रमा पर राहु अथवा केतु का स्थिति अथवा दृष्टि से प्रभाव पड़ता है तो कुंडली में ग्रहण योग का निर्माण हो जाता है जो जातक के जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में उसे भिन्न भिन्न प्रकार के कष्ट दे सकता है। ग्रहण का शाब्दिक अर्थ है खा जाना तथा इसी प्रकार यह माना जाता है कि राहु अथवा केतु में से किसी एक के सूर्य अथवा चन्द्रमा के साथ स्थित हो जाने से ये ग्रह सूर्य अथवा चन्द्रमा का कुंडली में फल खा जाते है ।
राहु तथा केतु प्रत्येक राशि में लगभग 18 मास तक रहते हैं, सूर्य एक राशि में लगभग एक महीने तक रहते हैं तथा चन्द्रमा एक राशि में लगभग अढ़ाई दिन तक रहते हैं। मान लीजिए कि राहु एक समय में वृश्चिक राशि में स्थित हैं तथा केतु वृष राशि में स्थित हैं। जब जब सूर्य गोचर करते हुए इन दोनों राशियों में से किसी एक राशि में आएंगे तथा एक महीने तक इस राशि में रहेंगे, इस बीच संसार में जन्म लेने वाले प्रत्येक जातक की कुंडली में ग्रहण योग होगा क्योंकि सब जातकों की कुंडलियों में सूर्य राहु अथवा केतु के साथ ही स्थित होंगें। इसी प्रकार चन्द्रमा भी गोचर करते हुए जब जब इन दोनों राशियों में से किसी एक में आएंगे तो कुंडली में ग्रहण योग का निर्माण हो जाएगा। सूर्य तथा चन्द्रमा दोनों के ही 12 राशियों में से किन्ही दो विशेष राशियों में स्थित होने की संभावना 6 में से 1 अर्थात हर छठी कुंडली में होगी इसलिए हर छठी कुंडली में सूर्य तथा हर छठी कुंडली में ही चन्द्रमा के कारण बनने वाला ग्रहण योग बनेगा। सूर्य तथा चन्द्रमा दोनों में से किसी एक के राहु केतु के साथ स्थित होने की संभावना लगभग हर तीसरी कुंडली में बनती है तथा यदि इस ग्रहण योग की परिभाषा में वर्णित राहु केतु के दृष्टि प्रभाव को भी गिन लिया जाए तो लगभग 75% कुंडलियों में ग्रहण योग बन जाता है। इसका अर्थ यह निकलता है कि संसार के लगभग सभी जातक ही ग्रहण योग से पीड़ित होते हैं तथा इस योग के कारण कष्टों का सामना करते हैं।
यह आंकड़े निश्चिय ही वास्तविकता से बहुत परे हैं तथा इसी लिए किसी कुंडली में ग्रहण योग का निर्माण होने के लिए उपर बताए गए नियमों के अतिरिक्त अन्य नियम भी होने चाहिएं। किसी कुंडली में राहु अथवा केतु द्वारा ग्रहण योग का निर्माण करने के लिए सबसे पहले उस कुंडली में राहु तथा केतु का अशुभ होना अति आवश्यक है क्योंकि शुभ होने की स्थिति में ये ग्रह सूर्य अथवा चन्द्रमा के साथ स्थित होकर भी ग्रहण योग नहीं बनाएंगे बल्कि कुंडली में कोई शुभ योग भी बना सकते हैं। इसके अतिरिक्त राहु, केतु तथा सूर्य चन्द्रमा की कुंडली में स्थिति, बल तथा इन सभी ग्रहों पर अन्य शुभ अशुभ ग्रहों का प्रभाव भी देखा जाता है जो ग्रहण योग के निर्माण तथा फलादेश में बहुत अंतर पैदा कर सकता है। इसके अतिरिक्त भी कुंडली में से कुछ अन्य आवश्यक तथ्यों का निरीक्षण किया जाता है तथा तत्पश्चात ही कुंडली में ग्रहण योग के निर्माण तथा फलों का निर्णय लिया जाता है।
इस लिए किसी कुंडली में केवल राहु अथवा केतु के सूर्य अथवा चन्द्रमा के साथ संबंध के आधार पर ही कुंडली में ग्रहण योग के बनने का निर्णय नहीं लेना चाहिए तथा कुंडली में राहु, केतु, सूर्य और चन्द्रमा के बल, स्वभाव तथा स्थिति तथा नक्षत्रों का भली भांति निरीक्षण करने के पश्चात ही यह निर्णय लेना चाहिए कि कुंडली में इन ग्रहों के संयोग से ग्रहण योग बन रहा है अथवा शक्ति योग जैसा कोई शुभ योग।अगर ग्रहण योग होने के कारण आपको समस्या या मानसिक चिंता का सामना करना पड़ रहा है तो आप हमारे दिल्ली वीजिट का लाभ उठा सकते हैं मैं दिनांक 23 दिसंबर 2017 से 29 दिसम्बर2017 तक दिल्ली के गणेश नगर में स्थित राधाकृष्ण मंदिर में रहुंगा, मिलने का समय अपराह्न 4 बजे से रात्रि 8 बजे तक, परामर्श शुल्क 1100 रुपये मात्र ! 'अप्वाइटमेंट के लिये इस नं. पर संपर्क करें ....
-ज्योतिषाचार्य पण्डित विनोद चौबे,
संपादक- ',ज्योतिष का सूर्य' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका, भिलाई, दुरभाष क्रमांक - 9827198828
ptvinodchoubey.blogspot.in
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें