साथियों आज यानी मार्गशीर्ष शुदी पुर्णिमा को दत्तात्रेय का अद्भुत व विलक्षण घटनाक्रमों तथा प्रसंगो में जहां त्री-उच्च महाशक्तियों के समक्ष मातृ वात्सल्य को महत्वपूर्णता दी गई है, वहीं दूसरी ओर वैष्णव, शैव सम्प्रदायों में बंटे लोगों को एक सूत्र में बांधने तथा वैदिक यज्ञ विधानों एवं तंत्र की क्रिया विधान प्रयोगों को एक साथ समायोजित करने वाला यह अवतरण हुआ भगवान दत्तात्रेय आप सभी देश वासियों की वह हर मनोकामना पूर्ण करें जिसका आपके मनस में हिलोरे मार रही हैं, साथ ही 'अन्तर्नाद' व्हाट्सएप ग्रुप / 'ज्योतिष का सूर्य' मासिक पत्रिका/ ब्लॉग पाठकों सहित फेसबुकिया मित्रों आपके ऊपर प्रभु दत्तात्रेय सदैव कृपा बनी रहे, नित नये आयाम को प्राप्त करते रहें यही हमारी मंगल कामना ! आईये अब हम भगवान दत्तात्रेय जी के बारे में समझने का प्रयास करें 'दत्तात्रेय:' शब्द , दत्त:+ आत्रेय: इति दत्तात्रेय: या की संधि से बना है।
त्रिदेवों यानी त्रि-उच्च महाशक्तियों द्वारा प्रदत्त आशीर्वाद 'दत्त:'… अर्थात् महर्षि अत्रि की धर्मपत्नि अनुसूईया जी को पुत्र रुप में प्रदत्त आशीर्वाद 'दत्तात्रय' !
अगहन पूर्णिमा को प्रदोषकाल में भगवान दत्त का जन्म होना माना गया है। दत्तात्रेय में ईश्वर और गुरु दोनों रूप समाहित हैं और इसलिए उन्हें ‘ परब्रह्ममूर्ति सदगुरु ‘ और ‘ श्री गुरुदेव दत्त ‘ भी कहा जाता है।
प्रथम वेद ऋग्वेद के पंचम मण्डल के द्रष्टा वेद को प्रतिष्ठित करने वाले महर्षि अत्रि की पत्नि और ऋषि कर्दम जिन्हें प्रजापति भी कहा गया उनकी की कन्या अनुसूया के ब्रह्मकुल में जन्मा यह दत्तावतार लक्ष्मी, पार्वती एवं सरस्वती से सेवित हैं ! मुझे स्मरण आ रहा है कि जब मैं (आचार्य पण्डित विनोद चौबे, 09827198828) नागपुर में आयोजित श्रीमद्देवीभागवत कथा में इस प्रसंग को रखा था तो हमारे कुछ विद्वानों इस विषय पर मुझे एक दिवस विस्तृत कथा करने का आग्रह किया था, जबकी उस दिन मुझे 'रूद्राक्ष महिमा' पर बोलना था! तो आईये अब विषय पर वापस चलते हैं ! रज-तम-सत्व जैसे त्रिगुणात्मक इस अवतार में एकत्व का दर्शन है, जैसा की मैने उपर चर्चा की है,शैव और वैष्णव दोनों मतों के भक्तों को आराध्य के दर्शनों का अविभाज्य मार्गदर्शक पंथ 'दत्त पंथ' के प्रणेता भी दत्तात्रेय हैं ! शैवपंथी उन्हें शिव का अवतार और वैष्णव विष्णु अवतार मानते हैं। वहीं नाथ, महानुभव, वारकरी, रामदासी के उपासना पंथ में श्रीदत्त आराध्य देव हैं। कुल मिलाकर लगभग सभी पंथों में इनकी स्वीकार्यता है ! जैसा की आपको ज्ञात है दत्तात्रेय का रुप-स्वरुप ! तीन सिर, छ: हाथ, शंख-चक्र-गदा-पद्म, त्रिशूल-डमरू-कमंडल, रुद्राक्षमाला, माथे पर भस्म, मस्तक पर जटाजूट, एकमुखी और चतुर्भुज या षडभुज इन सभी रूपों में श्री गुरुदेव दत्त की उपासना की जाती है। दत्तात्रेय ने परशुरामजी को श्री विद्या-मंत्र प्रदान किया था। शिवपुत्र कार्तिकेय को उन्होंने अनेक विद्याएं दी थी। भक्त प्रह्लाद को 'अनासक्ति-योग' का उपदेश देकर उन्हें श्रेष्ठ राजा बनाने का श्रेय भी भगवान दत्तात्रेय को ही है। महाराष्ट्र और कर्नाटक मे इन्ही के नाम से एक “ दत्त संप्रदाय “ भी है।
मान्यता है कि दत्तात्रेय नित्य प्रात:काल काशी की गंगाजी में स्नान करते थे। इसी कारण काशी के मणिकर्णिका घाट की दत्त पादुका दत्त भक्तों के लिए पूजनीय है।
इसके अलावा मुख्य पादुका स्थान कर्नाटक के बेलगाम में स्थित है। दत्तात्रेय को गुरु रूप में मान उनकी पादुका को नमन किया जाता है। गिरनार क्षेत्र दत्तात्रय भगवान की सिद्धपीठ है , इनकी गुरुचरण पादुकाएं वाराणसी तथा आबू पर्वत आदि कई स्थानों पर हैं।
माना गया है कि भक्त के स्मरण करते ही भगवान दत्तात्रेय उनकी हर समस्या का निदान कर देते हैं इसलिए इन्हें “ स्मृति गामी व स्मृतिमात्रानुगन्ता “ भी कहा गया है। अपने भक्तों की रक्षा करना ही श्री दत्त का ‘आनंदोत्सव’ है।
श्री गुरुदेव दत्त , भक्त की इसी भक्ति से प्रसन्न होकर स्मरण करने समस्त विपदाओं से रक्षा करते हैं। दत्तात्रेय को शैवपंथी शिव का अवतार और वैष्णवपंथी विष्णु का अंशावतार मानते हैं। दत्तात्रेय को नाथ संप्रदाय की नवनाथ परंपरा का भी अग्रज माना है। यह भी मान्यता है कि रसेश्वर संप्रदाय के प्रवर्तक भी दत्तात्रेय थे।
भगवान दत्तात्रेय से वेद और तंत्र मार्ग का विलय कर एक ही संप्रदाय निर्मित किया था।
आदि शंकराचार्य के मुताबिक : –
समस्त दैहिक – दैविक और भौतिक सुखों, आरोग्य, वैभव, सत्ता, संपत्ति सभी कुछ मिलने के बाद यदि मन गुरुपद की शरण नहीं गया तो फिर क्या पाया।’ दत्तात्रय भगवान का रूप तथा उनका परिवार भी आध्यात्मिक संदेश देता है ,
उनका भिक्षुक रूप अहंकार के नाश का प्रतीक है … कंधे पर झोली , मधुमक्खी के समान मधु एकत्र करने का संदेश देती है ।
उनके साथ खड़ी गाय , कामधेनु है जो कि पृथ्वी का प्रतीक हैं । चार कुत्ते , चारों वेदों के प्रतीक माने गए हैं … गाय और कुत्ते एक प्रकार से उनके अस्त्र भी हैं, प्राय: आपने देखा होगा कि- गाय अपने सींगों से प्रहार करती है और कुत्ते काट लेते हैं। बावजूद दत्तात्रेय के यहां समरुपता दिखती है !
औदुंबर अर्थात ‘ गूलर वृक्ष ‘ दत्तात्रय का सर्वाधिक पूज्यनीय रूप है … इसी वृक्ष मे दत्त तत्व अधिक है।
भगवान शंकर का साक्षात रूप महाराज दत्तात्रेय में मिलता है और तीनो ईश्वरीय शक्तियो से समाहित महाराज दत्तात्रेय की साधना अत्यंत ही सफ़ल और शीघ्र फ़ल देने वाली है। महाराज दत्तात्रेय आजन्म ब्रह्मचारी,अवधूत,और दिगम्बर रहे थे ,वे सर्वव्यापी है और किसी प्रकार के संकट में बहुत जल्दी से भक्त की सुध लेने वाले है,
यदि मानसिक रूप से , कर्म से या वाणी से महाराज दत्तात्रेय की उपासना की जावे तो साधकों को शीघ्र ही सफलता प्राप्त हो जाती है।
साधना विधि : –
श्री दत्तात्रेय जी की प्रतिमा,चित्र या यंत्र को लाकर लाल कपडे पर स्थापित करने के बाद चन्दन लगाकर,फ़ूल चढाकर,धूप की धूनी देकर,नैवेद्य चढाकर दीपक से आरती उतारकर पूजा की जाती है,पूजा के समय में उनके लिये पहले स्तोत्र को ध्यान से पढा जाता है, फ़िर मन्त्र का जप किया जाता है, उनकी उपासना तुरत प्रभावी हो जाती है और शीघ्र ही साधक को उनकी उपस्थिति का आभास होने लगता है।
साधकों को उनकी उपस्थिति का आभास सुगन्ध के द्वारा,दिव्य प्रकाश के द्वारा,या साक्षात उनके दर्शन से होता है।.
श्री दत्तात्रेयस्तोत्रम्
जटाधरं पाण्डुरंगं शूलहस्तं दयानिधिम्।
सर्वरोगहरं देवं दत्तात्रेयमहं भजे ॥१॥
जगदुत्पत्तिकर्त्रे च स्थितिसंहारहेतवे।
भवपाशविमुक्ताय दत्तात्रेय नमोस्तुते॥२॥
जराजन्मविनाशाय देहशुद्धिकराय च।
दिगंबर दयामूर्ते दत्तात्रेय नमोस्तुते॥३॥
कर्पूरकान्तिदेहाय ब्रह्ममूर्तिधराय च।
वेदशास्स्त्रपरिज्ञाय दत्तात्रेय नमोस्तुते॥४॥
ह्रस्वदीर्घकृशस्थूलनामगोत्रविवर्जित!
पञ्चभूतैकदीप्ताय दत्तात्रेय नमोस्तुते॥५॥
यज्ञभोक्त्रे च यज्ञेय यज्ञरूपधराय च।
यज्ञप्रियाय सिद्धाय दत्तात्रेय नमोस्तुते॥६॥
आदौ ब्रह्मा मध्ये विष्णुरन्ते देवः सदाशिवः।
मूर्तित्रयस्वरूपाय दत्तात्रेय नमोस्तुते॥७॥
भोगालयाय भोगाय योगयोग्याय धारिणे।
जितेन्द्रिय जितज्ञाय दत्तात्रेय नमोस्तुते॥८॥
दिगंबराय दिव्याय दिव्यरूपधराय च।
सदोदितपरब्रह्म दत्तात्रेय नमोस्तुते॥९॥
जंबूद्वीप महाक्षेत्र मातापुरनिवासिने।
भजमान सतां देव दत्तात्रेय नमोस्तुते॥१०॥
भिक्षाटनं गृहे ग्रामे पात्रं हेममयं करे।
नानास्वादमयी भिक्षा दत्तात्रेय नमोस्तुते॥११॥
ब्रह्मज्ञानमयी मुद्रा वस्त्रे चाकाशभूतले।
प्रज्ञानघनबोधाय दत्तात्रेय नमोस्तुते॥१२॥
अवधूत सदानन्द परब्रह्मस्वरूपिणे ।
विदेह देहरूपाय दत्तात्रेय नमोस्तुते॥१३॥
सत्यरूप! सदाचार! सत्यधर्मपरायण!
सत्याश्रय परोक्षाय दत्तात्रेय नमोस्तुते॥१४॥
शूलहस्त! गदापाणे! वनमाला सुकन्धर!।
यज्ञसूत्रधर ब्रह्मन् दत्तात्रेय नमोस्तुते॥१५॥
क्षराक्षरस्वरूपाय परात्परतराय च।
दत्तमुक्तिपरस्तोत्र! दत्तात्रेय नमोस्तुते॥१६॥
दत्तविद्याड्यलक्ष्मीश दत्तस्वात्मस्वरूपिणे।
गुणनिर्गुणरूपाय दत्तात्रेय नमोस्तुते॥१७॥
शत्रुनाशकरं स्तोत्रं ज्ञानविज्ञानदायकम्।
आश्च सर्वपापं शमं याति दत्तात्रेय नमोस्तुते॥१८॥
इदं स्तोत्रं महद्दिव्यं दत्तप्रत्यक्षकारकम्।
दत्तात्रेयप्रसादाच्च नारदेन प्रकीर्तितम् ॥१९॥
इति श्रीनारदपुराणे नारदविरचितं
श्रीदत्तात्रेय स्तोत्रं संपुर्णमं।।
- आचार्य पण्डित विनोद चौबे,
संपादक- 'ज्योतिष का सूर्य' मासिक पत्रिका
शांति नगर, भिलाई, मोबाईल नं. 9827198828
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