कैसे रह पायेगा मेरा भारत महान.???
1. शास्त्रीय संगित की जगह अब कोला-वेरी-डी
2. संस्कृत की जगह इंगलिश और जर्मनी-भाषा-साहित्य
3. नैतिक शिक्षा के जगह अब इंटर्नेट की शिक्षा (छोटे बच्चों को )
संस्कृत को दरकिनार करना भारत के लिए संकट खड़ा कर सकता है।
पिछले दिनो हर स्कूलों में सप्ताह में एक दिन नैतिक-शिक्षा का पाठ पढ़ाया जाता था लेकिन आज बदलते दौर नें उसका स्थान कोलावेरी डी जैसे पाश्चात्य संगितों ने ले लिया है और वास्तविक शास्त्रीय संगित की शिक्षा न के बराबर ही रह गयी है । ठिक उसी प्रकार नैतिकता के पाठ पढ़ाने वाले स्कूल अब छोटी उम्र में प्रोजेक्ट-वर्क-फाईल बनाने के नाम पर उन्हें नेट की शिक्षा देने लगे हैं। नेट की शिक्षा खराब नहीं है परन्तु आज के विभत्स कथित एक वर्ग ने जो इन्टर्नेट पर अश्लीलता फैला रखी है उससे बच्चों पर गलत प्रभाव पड़ता है । पिछले दिनों एक छात्र नें अपने अध्यापिका को ही चाकू से गोदकर मार डाला था। यदि उन बच्चों में तनिक भी नैतिक शिक्षा का समावेश होता तो शायद ऐसा घिनौना कदम नहीं उठाता। आज नैतिकता का मूल स्थान संस्कृत साहित्य हैं जिनको आज के कथित पढ़े-लिखे एक वर्ग ने दरकिनार कर दिया है। साथ ही शासन (केन्द्र व राज्य) अनेक भारतीय भाषाओं की जननी कही जाने वाली संस्कृत कई भारतीय धर्मग्रंथों की भाषा भी है। जिस भाषा ने भारत में अपना बचपन बिताया वह अब अपना यौवन विदेशों में बिता रही है। भारतीयों की बेरूखी की शिकार देववाणी संस्कृत को विदेशों में भरपूर दुलार व सम्मान मिल रहा है। यदि आज समय रहते हम नहीं जागे तो कल को हमारी आने वाली पीढियाँ हमसे यही पूछेंगी कि आखिर यह संस्कृत क्या है और इसे किसने बनाया था? संस्कृत को केवल कर्मकांड की भाषा कहने की भूल करने वाले नासमझ लोगों को पढ़े-लिखे शिक्षितों की संज्ञा देती है,जो जान-बूझकर संस्कृत को नकार रहे हैं।
पिछले दिनो हर स्कूलों में सप्ताह में एक दिन नैतिक-शिक्षा का पाठ पढ़ाया जाता था लेकिन आज बदलते दौर नें उसका स्थान कोलावेरी डी जैसे पाश्चात्य संगितों ने ले लिया है और वास्तविक शास्त्रीय संगित की शिक्षा न के बराबर ही रह गयी है । ठिक उसी प्रकार नैतिकता के पाठ पढ़ाने वाले स्कूल अब छोटी उम्र में प्रोजेक्ट-वर्क-फाईल बनाने के नाम पर उन्हें नेट की शिक्षा देने लगे हैं। नेट की शिक्षा खराब नहीं है परन्तु आज के विभत्स कथित एक वर्ग ने जो इन्टर्नेट पर अश्लीलता फैला रखी है उससे बच्चों पर गलत प्रभाव पड़ता है । पिछले दिनों एक छात्र नें अपने अध्यापिका को ही चाकू से गोदकर मार डाला था। यदि उन बच्चों में तनिक भी नैतिक शिक्षा का समावेश होता तो शायद ऐसा घिनौना कदम नहीं उठाता। आज नैतिकता का मूल स्थान संस्कृत साहित्य हैं जिनको आज के कथित पढ़े-लिखे एक वर्ग ने दरकिनार कर दिया है। साथ ही शासन (केन्द्र व राज्य) अनेक भारतीय भाषाओं की जननी कही जाने वाली संस्कृत कई भारतीय धर्मग्रंथों की भाषा भी है। जिस भाषा ने भारत में अपना बचपन बिताया वह अब अपना यौवन विदेशों में बिता रही है। भारतीयों की बेरूखी की शिकार देववाणी संस्कृत को विदेशों में भरपूर दुलार व सम्मान मिल रहा है। यदि आज समय रहते हम नहीं जागे तो कल को हमारी आने वाली पीढियाँ हमसे यही पूछेंगी कि आखिर यह संस्कृत क्या है और इसे किसने बनाया था? संस्कृत को केवल कर्मकांड की भाषा कहने की भूल करने वाले नासमझ लोगों को पढ़े-लिखे शिक्षितों की संज्ञा देती है,जो जान-बूझकर संस्कृत को नकार रहे हैं।
ज्योतिषाचार्य पं.विनोद चौबे, 09827198828, भिलाई दुर्ग (छ.ग.)
(संपादक, ''ज्योति, का सूर्य'' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका)
(संपादक, ''ज्योति, का सूर्य'' राष्ट्रीय मासिक पत्रिका)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें