उत्तर प्रदेश की करुण पुकार...
कोई मेरी भी तो सुनो
कोई मेरी भी तो सुनो
मैं उत्तर प्रदेश हुँ। मैने देश को बाल्मीकि, संत तुलसीदास, कबीरदास, सूरदास, प्रेमचंद, निराला, जयशंकर प्रसाद, सुमित्रा नंदन पंत, भारतेन्दु हरिश्चंद्र, रामचंद्र शुक्ल, महाबीर प्रसाद द्विवेदी, मैथिलीशरण गुप्त जैसे रचनाकारों को पैदा कियाऔर जिस सूबे की राजनीति ने देश को सर्वाधिक आठ प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी, चौधरी चरण सिंह, राजीव गांधी, विश्वनाथ प्रताप सिंह, चंद्रशेखर और अटल बिहारी वाजपेयी के रूप में दिए हैं। मेरा रूतबा भी काफी मायने रखता है क्योंकि मैं देश का सबसे बड़ा प्रदेश हुँ। मेरी साख पर जातिवाद व सम्प्रदायवाद इन दोनों ने बट्टा लगा दिया है। अभी मैं मात्र एक जातिवाद और समाजवाद का प्रयोगशाल बनकर रह गया हुँ। कोई भी आता है तो सबसे पहले जातीय समीकरण का ही प्रयोग करता है। बाहर किसी प्रदेश में जाता हुं तो मुझे दुतकारा जाता है क्योंकि मैं सबसे बड़ा प्रदेश होने के बावजूद भी क्षेत्रीय पार्टीयों के त्रिकोंणीय या फिर चतुष्कोंणीय चुनाव परीणाम के कारण मेरा वर्चस्व केन्द्र सरकार में टुकड़ों में बंट जाता है जो हमारे शक्ति को क्षीण करता जा रहा है। गंगा-जमुनी संस्कृति का उद्गम स्थल रहा उत्तर प्रदेश आज अपनी पहचान के संकट से गुजर रहा है। धर्म व जाति आधारित राजनीति का बोलबाला है और विकास के रथ का पहिया टूटकर किंचड़ जा फंसा है महाभारत के कर्ण ने अकिंचन बन सहायता की गुहार भले न की हो लेकिन आज उत्तर प्रदेश अपने करूण स्वर से जरूर पुकारने को मजबूर है, क्योंकि मराठी मानुष की आवाज उठा पहले बालासाहब ठाकरे और अब राज ठाकरे जैसे नेताओं ने तो घोर अपमान किया ही जिसे राजनीतिक वोट भुनाने के लिए राहुल गांधी ने तो भिखारी शब्द का प्रयोग कर उत्तर प्रदेश के बेबसी को जगजाहिर कर दिया। लंबे अरसे बाद पूर्ण बहुमत से बसपा ने सरकार बनाने में सफल भी रही, किन्तु उनके पार्टी के विधायक व मंत्रीयों के द्वारा लड़की और महिलाओं पर अनाचार जैसे सामाजिक अभिशप्त घिनौने कार्यों से पिछले पांच वर्षों तक उत्तर प्रदेश सुर्खियों में रहा। ऐसे में उत्तर प्रदेश की दर्द भरी यह कराहें भरना लाजमी है।
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