''यारी'' है पर सच्ची नहीं...
ज्योतिषाचार्य पंडित विनोद चौबे
पाकिस्तान राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी की 'दरगाह कूटनीति' काफी सफल रही, जिस तरह से भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को पाकिस्तान आने का न्योता दिया गया, और इन्होंने स्वीकार भी कर लिया, यह दोनों देशों के संबंधों को और मजबूत करेगा. राष्ट्रपति जऱदारी की निजी यात्रा के दौरान दिल्ली में सभी मुद्दों पर खुल कर बातचीत करना बहुत ही महत्वपूर्ण है. यह यात्रा दोनों देशों के हित में कहा जाना चाहिए। किन्तु यह आसिफ अली जरदारी की 'दरगाह कूटनीति के इस 'याराना' में कितनी सच्चाई है, यह तो हफिज सईद पर कार्यवाई के मामले में पाकिस्तान कितना कठोर कदम उठाता है, जल्द ही सामने आ जायेगा। हालाकि पाक राष्ट्रपति के पाकिस्तान पहुँचते ही यूसूफ रजा गिलानी ने एक बयान देते हुए कहा कि- भारत को हफिज सईद के खिलाफ कोई ठोस सबूत देना चाहिए. जो कि भारत द्वारा अमेरिका को ठोस सबूत मुहैया कराये जाने पर ही अमेरिका ने सईद पर 51करोड़ इनाम रखते हुए यह कहा कि भारत के मुम्बई हमले में सईद ही मास्टरमाईन्ड था। वही रिपोर्ट भारत सरकार पाकिस्तान को भी भेज चुका है, ऐसे में जरदारी की यह यारी है पर सच्ची नहीं.? सच तो ये है कि जऱदारी की भारत यात्रा के मायने अब पूरी तरह जियारत कम सियासत ज्यादा दिखता है, क्योंकि प्रधानमंत्री मनमोहन और जऱदारी के बीच कमरे में अकेले मुलाक़ात से साफ़ हो जाता है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह इस मौके का पूरा फायदा उठाना चाहते हैं। भारत और पाकिस्तान के रिश्तों को नयी दिशा देने के लिए। यह स्पष्ट है किसारा जोर दोनों देशों के व्यापारिक संबंधों औरआतंकवाद के खात्मा को नयी दिशा देने पर होगा।
दिलचस्प बात यह है कि ऐसा घटनाक्रम उस वक्त हो रहा है, जब जऱादरी को पाकिस्तान का एक कमज़ोर राष्ट्रपति माना जा रहा है. पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट से टकराव और सेना के साथ अनबन ने उनकी स्थिति काफी नाज़ुक बना दी है. और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी खुद को राजनीतिक तौर पर घिरा हुआ महसूस कर रहे हैं. आये दिन भ्रष्टाचार के आरोपों और देश के प्रतिष्ठित संस्थानों से टकराव की खबरों ने मौजूदा सरकार को विवादों के ऐसे भंवर में ला दिया है जिसके लिए उसे राजनीतिक तौर पर बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है. तो एक तरफ कमजोरी और दूसरी तरफ बेबसी. एक ऐसा राजनीतिक मिश्रण जो किसी भी कूटनीतिक आदान प्रदान के लिए सबसे बुरी खबर माना जायेगा.
जऱदारी बेशक कमज़ोर दिखाई देते हैं. मगर पाकिस्तान की नियती का फैसला करने वाली सेना और आईएसआई की विश्वसनीयता और भी धूमिल हो गयी है. ओसामा बिन लादेन को एबटाबाद में ढूंढ़ कर उसे मौत के घाट उतार देने की घटना का सबसे बड़ा खामियाजा वहां की सेना को भुगतना पड़ा है. इससे पहले पाकिस्तानी अवाम सिर्फ अपने राजनेताओं को निकम्मा मानती थी.
अब देखना यह है कि भारत द्वारा हाफिज सईद पर कार्यवाई की निरंतर मांग किये जाने के बावजूद पाक हमेशा सबूत मांगता आया है, अमेरिका का पिछलग्गू बना भारत के लिए ऑपरेशन लादेन जैसा हाफिज सईद पर भी कोई ठोस कार्यवाई करता है, या इस दरगाह-सियासत की भेंट चढ़ा यह सईद मामला क्या कूटनीतिक चाल से अमेरिका भी ठंडे बस्ते में डालकर अभी और कुछ दिन प्रतिक्षा करेगा, क्योंकि जिस प्रकार से जरदारी-मनमोहन मुलाकात को चीन ने सराहा है उससे तो यही लगता है कि भारत के साथ कोई लंबी चाल चली जा रही है, जिसका प्रमाण जरदारी के तयशुदा यात्रा के ठीक दो-तीन दिन पहले अमेरिका ने हफिज सईद के उपर 50 करोड़ रूपये की इनाम-राशि की घोषणा करते हुए कहा था कि- मुम्बई में हुए आतंवादी हमले में हाफिज-सईद का हाथ था, जिसका पुख्ता सबूत है। उसी सबूत को पाक क्यों नहीं मान रहा है। इससे यही साफ होता है कि- 'यारी' है पर सच्ची नहीं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें